नीरा राडिया टेप मामले को लेकर कई बार टीवी में बहस हो चुकी है और अलग-अलग तरह से खबरें भी आ चुकी हैं, लेकिन पीगुरु वेबसाइट ने उस हिस्से का खुलासा किया है जिस पर कभी कोई चर्चा तक नहीं हुई। रतन टाटा के निजी सहायक वेंकट तथा नीरा राडिया के बीच 29 मार्च 2009 को हुई बातचीत से जहां ममता बनर्जी को हराने के लिए पानी की तरह पैसे बहाने का खुलास हुआ है, वहीं राजनीतिक दलों को दो किश्तों में पैसे देने का भी खुलासा हुआ है। इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी किस प्रकार रतन टाटा की शर्तों के मुताबिक दो किश्तों में पैसे लेने को तैयार थी। रतन टाटा ने राजनीतिक दलों को फंडिंग करने के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाया था।
Unheard Niira Radia Tapes – Ratan Tata pays political parties in two instalments in covert ways https://t.co/i5RaErwlix via @PGurus1
— Subramanian Swamy (@Swamy39) January 10, 2019
रतन टाटा और ममता बनर्जी की दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। तभी तो साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी दुश्मन ममता बनर्जी की पार्टी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए रतन टाटा ने अपने धन का उपयोग किया था। फिर भी ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के 42 लोगसभा सीटों में से 19 पर जीत मिली थी। यहीं से ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का उत्थान होना शुरू हुआ था। पहले ममता बनर्जी ने कम्युनिस्टों द्वारा नंदीग्राम में किए गए नरसंहार के खिलाफ आंदोलन किया और फिर उसके बाद उन्होंने रतन टाटा द्वारा अपने नैनो प्रोजेक्ट के लिए सिंगूर में स्थापित प्लांट का विरोध किया। ममता बनर्जी के विरोध के कारण रतन टाटा को सिंगूर में अपना प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा था।
इस टेप के खुलासे से यह तो साफ हो जाता है कि चुनाव के दौरान रतन टाटा द्वारा दिए गए पैसे के ऐवज में ही पूर्व मुख्यमंत्री बुद्ददेव भट्टाचार्य की सरकार ने सींगूर में रतन टाटा को कौड़ी के भाव में किसान की जमीन दे दी थी। किसान का हितैषी कहने वाली कम्युनिस्ट सरकार ने किसानों की आजीविका के साथ खिलवाड़ किया था। रतन टाटा को जो जमीन दी गई थी वह कृषि योग्य भूमि थी। सिंगूल के किसानों की जमीन ही उनकी आजीविका थी। लेकिन वेस्ट बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार ने किसानों की आजीविका छीनने में थोड़ी भी देर नहीं की थी।
इस टेप से यह भी खुलासा हुआ है कि रतन टाटा ने देश की राजनीतिक पार्टियों को पैसे देने के लिए ही इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाया था। लेकिन जैसे ही इसका खुलासा हुआ रतन टाटा ने सुप्रीम कोर्ट के वकील दिनेश व्यास से बयान दिला दिया कि यह ट्रस्ट टाटा ग्रुप का नहीं है। जबकि दोनों के बची हुई बातचीत से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए टाटा कंपनियों के पैसे इस ट्रस्ट में जाते थे।
इस टेप में एक और खुलासा हुआ है कि रतन टाटा ने उन राजनीतिक दलों से मोड ऑफ पेमेंट को लेकर एक समझौता किया था। इस समझौते के तहत यह शर्त रखी गई थी कि पहली किश्त तो चुनाव से पहले दी जाएगी लेकिन दूसरी किश्त चुनाव के परिणाम आने के बाद दी जाएगी। इतना ही नहीं दूसरी किश्त की रकम चुनाव में परफार्मेंस के आधार पर बदली भी जा सकती है। रतन टाटा की इस शर्त से सभी राजनीतिक पार्टियां यहां तक कि सोनिया गांधी तक सहमत थीं।
URL : why Ratan Tata pays political parties in two instalments in covert ways !
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