विदेशी पैसे का इस्तेमाल कर, ईसाई मिशनरियों ने लालच देकर, उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों तथा आन्ध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में पिछले 70 सालों में गरीब, आदिवासियों का धर्म-परिवर्तन कराया! अगर कमज़ोर तबके का हिन्दू मुसलमान बना तो वह सैकड़ों साल के मुग़ल सत्ता के दबाव में और अगर आदिवासी ईसाई बना तो वह पहले अंग्रेज़ी हुकूमत के दबाव में और आज़ादी के बाद विविध प्रलोभन के वशीभूत होकर!
नतीजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश और उड़ीसा में जब धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून लाया गया तो इसके प्रावधानों को ईसाई मिशनरी स्टेंस्लास ने चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायलय में कहा कि प्रचार के अन्दर धर्म-परिवर्तन निहित है। सन 1977 के फैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने स्टेंस्लास के तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहा कि प्रचार में धर्म-परिवर्तन निहित नहीं है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश ने भी धर्म-परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाया। लेकिन सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियो ने इस तरह की हिम्मत नहीं दिखाई क्योंकि इनको मुसलमान वोट से वंचित होने का ख़तरा था।
इमरजेंसी के तत्काल बाद जनता पार्टी से चुने गए लोक सभा सदस्य ओम प्रकास त्यागी ने ‘धर्म की स्वतन्त्रता’ एक प्राइवेट मेम्बर विधेयक सदन के पटल पर रखा जिसमें दबाव, प्रलोभन, या धोखे से धर्म परिवर्तन को निषिद्ध किया गया था लेकिन संसद भंग हो गयी और विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया। क्या जबरन लालच देकर धर्म परिवर्तन के खिलाफ कठोर कानून नहीं बनना चाहिए?