विपुल रेगे। बॉक्स ऑफिस की गुत्थियों को समझ पाना इतना आसान होता तो कुकुरमुत्तों जैसे उग आए युट्यूबर्स गत शुक्रवार अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज का बिगड़ा हुआ भविष्य बता देते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहले दिन पहले शो के बाद आए पब्लिक ओपिनियन में ये विश्वास दिलाया गया कि अक्षय कुमार ने बॉक्स ऑफिस हिला डाला है। हालाँकि इस बार अक्षय से बॉक्स ऑफिस सरका भी नहीं। सोशल मीडिया पर फिल्म को लाखों लोगों ने समर्थन दिया था लेकिन वे भी फिल्म देखने नहीं पहुंचे।
भारत के फ़िल्मी दर्शकों की हिन्दी पट्टी में ये ग़लतफ़हमी ज़ोर पकड़ चुकी थी कि अपने समर्थन से किसी फिल्म को ब्लॉकबस्टर बनाया जा सकता है। ये ग़लतफ़हमी कंगना रनौत की धाकड़ और अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज के औंधे मुंह गिरने के बाद लगभग दूर हो चुकी है। पिछले तीन-चार वर्ष से राष्ट्रवादियों के एक धड़े ने उन फिल्म कलाकारों को समर्थन से उपकृत करने की परिपाटी चलाई, जो राष्ट्रीय मुद्दों पर ऐसे बयान देते थे, जो एक पार्टी और उसके समर्थकों को बड़े अच्छे लगते थे।
इस खेल में हिंदुत्व कहीं नहीं था। इसमें राजनीति और कला का लाभांश का आपसी आदान-प्रदान था। अब ये खेल समाप्त होने को है। कल ही कंगना रनौत ने भाजपा की निलंबित नेत्री के समर्थन में बयान दिया लेकिन उसकी कोई गूंज महसूस नहीं हुई और वह कथ्य नेपथ्य में चला गया। सम्राट पृथ्वीराज को लेकर छद्म वातावरण निर्मित किया गया था। तीन दिन में ही वह छिन्न-भिन्न हो गया। कुकुरमुत्तों की भांति उग आए युट्यूबर्स को फिल्म विधा का ज्ञान नहीं है।
वे तो शुक्रवार को पहले दिन-पहले शो में माइक और कैमरा लेकर दर्शक के सामने जम जाते हैं। इन युट्यूबर्स को मालूम होना चाहिए कि प्रथम दो दिन अक्षय कुमार के प्रशंसक फिल्म देखने आते हैं। वे हर फिल्म की प्रशंसा करते हैं। पहले दिन फिल्म देखने वाले प्रशंसक भावुक होते हैं। फिल्म खराब होने पर भी वे अपने प्रिय सितारे की बुराई नहीं करते। उस भीड़ में कोई एकाध सच्चा रिव्यू देता है तो ये युट्यूबर्स उसे एडिटिंग में निकाल फेंकते हैं।
पृथ्वीराज फेल हुई क्योंकि डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने उसे धारावाहिक की तरह बनाया। भव्यता केवल सेनाओं की सजावट में दिखाई दी। अक्षय कुमार और मानुषी मुख्य भूमिकाओं के लिए अनफिट थे। ऐतिहासिक तथ्य फेब्रिकेटेड किये गए। हिन्दी के स्थान पर उर्दू भर दी गई। निर्माता ने इतना पैसा खर्च किया लेकिन पृथ्वीराज का राज दरबार पंचायत जैसा दिखाया। कितनी गलतियों का उल्लेख किया जाए।
अब फिल्म देखने की अपील करने वाले खिसियानी दलील पेश कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि हेटर्स के दुष्प्रचार के कारण फिल्म पिट रही है। लोग गलत प्रचार के कारण फिल्म देखने नहीं जा रहे। ऐसे भोले लोगों को एक बार सिनेमा शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए। उनको फिल्मों के देश और विदेश के व्यापार की गहरी जानकारी लेनी चाहिए। उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि किस निर्देशक को किस विशेषता के लिए जाना जाता है।
फेसबुक पर तलवार भांजने वाले लोग कहते हैं कि अक्षय के लिए नहीं पृथ्वीराज के लिए ये फिल्म देखो। जब निर्माता और निर्देशक ने पृथ्वीराज के इतिहास का कचूमर बना कर रख दिया हो, तो उस दूषित इतिहास को देखने के लिए लोगों से अपील क्यों करते हो। इसलिए कि अक्षय कुमार ने एक बार प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया था। उसके बाद सोशल मीडिया पर सक्रिय एक धड़े ने समझ लिया कि इसके बदले में उसको जीवन भर खीर खिलानी है।
इनके सोचने से बॉक्स ऑफिस चलता तो कंगना की धाकड़ सुपरहिट हो जाती। बॉक्स ऑफिस केवल ये देखता है कि दर्शक फिल्म से कितना संतुष्ट है। शुक्रवार के बाद बॉक्स ऑफिस का व्यवहार बदल जाता है। फिर या तो आप उसकी लहरों पर सवार हो जाते हो या वह आपको डुबो देता है। पृथ्वीराज की असफलता ने ये अध्याय सीखा दिया है कि समर्थन से फिल्म नहीं चलाई जा सकती। समर्थन से एक अच्छी फिल्म को धक्का देकर अच्छी शुरुआत दी जा सकती है। जैसे आप सबने द कश्मीर फाइल्स को दी थी।
इस फिल्म का ट्रेलर ही बहुत निराशाजनक था। उससे ही फिल्म कैसी होगी अंदाज़ा हो गया था। बाकी बॉलीवुड ने विगत ऐतिहासिक फिल्मों के साथ कैसा मजाक किया है हम सबके सामने है। रही बात सरकारी यूटूबर की, धोखा कुछ समय के लिए हो सकता है, उसके बाद तो सब खुल ही जाता है। झूठ उस पानी के समान है, जो ज़मीन पर टिक नहीं पाता। सबकी अपनी परिणीति होती है, कंगना भी अपनी परिणीति पर पहुंची, अक्षय भी और बाकी लोग जो झूठ का आवरण ओढ़े बैठे है अपनी परिणीति पर पहुंचेंगे। बॉलीवुड नए युग का कोठा है, जहाँ सिर्फ विलासिता बिकती है। धर्म और ज्ञान से इसका कोई लेना देना नहीं है।