आईएसडी नेटवर्क। 1957 के बाद से 1978 तक लगातार पांच बार कांग्रेस कर्नाटक में चुनाव जीतती रही है। इतने समय में मतदान प्रतिशत 51.3% से बढ़कर 71.9% हो गया। कांग्रेस 1972 में भी सत्ता में लौटी जब वोट 63.1% से गिरकर 61.57% हो गया था। कर्नाटक का चरित्र सरकार बदलने का रहा है और इस बार देखना है कि क्या कर्नाटक सरकार बदलेगा या अपना नियम।
(hindi.bqprime से साभार)
विधानसभा चुनाव में अधिक उत्साह दिखाता है कर्नाटक
कर्नाटक के मतदाता लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में अधिक उत्साह के साथ वोट करते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 1989 से 2019 के दौरान 30 साल में हुए लोकसभा चुनाव में औसतन 64.3% वोट पड़े। लगभग इसी अवधि में विधानसभा चुनावों में औसत 68.4% वोट पड़े। इसका अर्थ यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव के मुकाबले 4.1% अधिक मतदान हुआ।
आम चुनाव में भाजपा भारी लेकिन विधानसभा में टक्कर कड़ी
बीते तीन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों को मिली बढ़त और जीत का अगर विश्लेषण करें तो एक पार्टी के रूप में भाजपा बाकी दलों पर भारी नजरआती है। 2009, 2014 और 2019 के आम चुनावों में कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से भाजपा 140, 132 और 170 सीटों पर बढ़त बनाती दिखी। मगर, विधानसभा चुनावों में यह बढ़त घटी। भाजपा ने 2008 और 2019 के विधानसभा चुनावों में 110 और 104 सीटें जीती, जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा महज 40 सीटें जीत सकी थी।
कांग्रेस के नजरिए से देखें तो 2013 के विधानसभा चुनाव में उसे 122 सीटें जीती थीं, जबकि एक साल बाद 2014 में हुए आम चुनाव में उसकी बढ़त घटकर 77 रह गयी थी। तीसरे दल के रूप में JDS का अधिक प्रभाव 2013 के विधानसभा चुनाव में दिखा था जब उसने 62 सीटें जीती थीं। बाकी चुनावों में भी उसकी मौजूदगी महत्वपूर्ण रही है। हालांकि लोकसभा चुनावों में विधानसभावार बढ़त के नजरिए से JDS का प्रदर्शन भी फीका रहा है।
सरकार बदलने में विश्वास करते हैं कर्नाटक के लोग
आपातकाल से पहले और बाद की सियासत में बड़ा फर्क कर्नाटक में देखने को मिलता है। जहां आपातकाल से पहले के सभी चुनाव कांग्रेस ने जीते थे। वहीं, आपातकाल के बाद कर्नाटक के मतदाताओं ने अपना रुख बदला। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस और जनता पार्टी या जनता दल या फिर बीजेपी की सरकारें बदल-बदल कर आती-जाती रही हैं। इस दौरान दोहराई जाने वाली सरकार भाजपा की ही रही है।
आपातकाल के बाद से कर्नाटक के मतदाताओं का व्यवहार राज्य में सरकार बदलने का रहा है। हालांकि, 2018 के चुनाव में सत्ता परिवर्तन के बावजूद भाजपा ने विधायकों से दल-बदल और इस्तीफे दिलाकर सरकार बदलने में कामयाबी हासिल की थी। तब राजनीति ने मतदाताओं के व्यवहार को बदलने में कामयाबी हासिल की थी। हालांकि जब बीजेपी ने सत्ता हासिल कर ली और अपने दल में आए विधायकों के इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में उन्हें फिर अपने टिकट से चुनाव मैदान में भेजा तो वोटरों ने भाजपा के फैसले को सही ठहराया।
बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा के लिए कर्नाटक के मतदाता अपने व्यवहार में फिर से बदलाव करेंगे? सत्ताधारी दल को बनाए रखने के लिए वे वोट करेंगे? या इससे उलट आपातकाल के बाद वाले रुख को बनाए रखते हुए सत्ताधारी दल के खिलाफ वोट डालेंगे? चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि आपातकाल के बाद वाला मतदाताओं का रुख यानी सरकार के खिलाफ वोट करने वाला रुख एक बार फिर दोहराया जाने वाला है। मगर, भाजपा भी ऐसी पार्टी है जो UP, उत्तराखण्ड जैसे प्रदेशों में सरकार नहीं दोहराने के रिकॉर्ड को पलट चुकी है। हां, एक बात साफ है कि कम से कम कर्नाटक में वोट घटने या बढ़ने से इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा।