महामूर्ख हिंदू क्यों होता ? हरदम मैं ये सोचा करता ?
अनपढ़ की तो बात छोड़िये , पढ़ा-लिखा बेवकूफी करता ।
सबके साथ की बातें करता , डीएनए भी यही मिलाता ;
सबके विकास के चक्कर में ,अपनों का विश्वास तोड़ता ।
जिनसे आशा नहीं वफा की , उन पर जान निछावर करता ;
मानवता के पक्के-दुश्मन , उनसे प्यार – मोहब्बत करता ।
कातिल की तलवार के आगे , अपनी गर्दन रख देता है ;
जहां कहीं भी दिखे कुल्हाड़ी , उस पर पांव मार देता है ।
हजार- बरस से धोखा खाया , अब भी नहीं सुधरते हैं ;
अभी भी धोखा खाने को , तैयार हमेशा रहते हैं ।
पता नहीं क्या रोग लगा है ? शत्रु को मित्र समझते हैं ;
इसी रोग के कारण हिंदू , बर्बरता से मरते हैं ।
जाने कितने दंगे झेले ? कितने नर-संहार हुये ?
पन्द्रह करोड़ के लगभग हिंदू ,असमय दुनिया से विदा हुये ।
इतना खून बहा है इनका , नदियां पानी भरती थीं ;
परम – पवित्र जो हिंदू – नारी , जौहर में जल मरती थी ।
पर हिंदू इतने अक्ल के अंधे , अब तक आंखें मूंदे हैं ;
तथाकथित हिंदूवादी दल , सेक्युलर कुयें में कूदें हैं ।
इनकी केवल ये ही इच्छा , दुश्मन इनकी तारीफ करें ;
चाहे राष्ट्र भाड़ में जाये , पर ये तो तफरीह करें ।
मरते दम तक इनकी इच्छा , नोबेल – प्राइज मिल जाये ;
सेक्यूलरिज्म का नशा है इतना, बस नाली में गिर जायें ।
तजे मूर्खता हिंदू अपनी , ज्ञान की धारा आयी है ;
सोशल मीडिया अमृत बरसाता,शामत धिम्मी की आयी है ।
झूठे इतिहास का जहर कट रहा, हिंदू सच्चाई जान रहा है ;
दगाबाज जो हिंदू – नेता , उनका भेद खुल रहा है ।
वामी ,कामी ,धिम्मी नेता , सब की पोल खुल चुकी है ;
अब तो हिंदू – राष्ट्र बनेगा , हिंदू जनता ठान चुकी है ।
विकल्पहीन अब नहीं है हिंदू , कट्टर – हिंदू दल आया है ;
“एकजुट-जम्मू”,”एकजुट-हिंदू” , “एकजुट-भारत”आया है ।
इस चुनाव में बाजी पलटे , पाखंडी चुनाव में हारेगें ;
परम – साहसी , राष्ट्रभक्त और कट्टर – हिंदू आयेंगे ।
ताकतवर हिंदू – कदमों को , कोई नहीं रोक पायेगा ;
राष्ट्र को धोखा देने वाला , अब तो मुँह की खायेगा ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”