विपुल रेगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए 2000 रुपये के नोट वापस लेने का फैसला किया है। सरकार ने 2016 में नोटबंदी करने के साढ़े छह साल बाद यह निर्णय लिया है। इस निर्णय से भारतीय अर्थव्यवस्था की साख बुरी तरह प्रभावित होगी। भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े नोट को बंद करने के बाद नोटबंदी के निर्णय पर सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर तो खुलकर लिखा जा रहा है कि बिल गेट्स और नंदन नीलेकणी ने नोटबंदी का विनाशकारी आयडिया आगे बढ़ाया था।
नोटबंदी को लेकर मैन स्ट्रीम मीडिया भले ही चुप बैठा हो लेकिन सोशल मीडिया मुखर होकर बोल रहा है। योहान टेंगरा नामक ट्विटर हैंडल से नोटबंदी को लेकर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे सरकार के होश उड़ा देने के लिए काफी है। इस हैंडल से मीडिया के कुछ समाचारों और लेखों का हवाला देकर कहा गया है कि नोटबंदी का कारण काला धन नहीं था बल्कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को गति देने के लिए अर्थव्यवस्था को दिया गया एक झटका था।
आरोप लगाया गया है कि नोटबंदी का विनाशकारी विचार बिल गेट्स, नंदन नीलेकणी ने रिजर्व बैंक के नचिकेता मोर की सहायता से केंद्र में पहुंचाया था। नचिकेता सन 2013 से 2017 तक आरबीआई बोर्ड के सदस्य बने रहे थे। ‘द डिप्लोमेट’ में छपे एक लेख में दावा किया गया कि केंद्र सरकार ने काले धन का नेरेटिव केवल जनता को समझाने के लिए बनाया था। नीलेकणी के मुताबिक ये एक झटका था, जो डिजिटलीकरण को गति देने के लिए दिया गया था।
योहान टेंगरा नामक ट्विटर हैंडल से कहा गया है कि नोटबंदी के बाद डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए नीलेकणी को लाया गया था। विश्व बैंक के एक्जिकिटिव ऑफिस के सदस्य सुनील चाको ने भी अपने आरोप में बिल गेट्स और नीलेकणी के नाम लिए हैं। इन सब जानकारियों से संदेह होता है कि नोटबंदी के अभियान में बहुत भारी गड़बड़ी थी। इस समय भारत की अर्थव्यवस्था 270 लाख करोड़ की है। इनमे से 3.6 लाख करोड़ के दो हज़ार के नोट हैं। ये हमारी पूरी अर्थव्यवस्था का लगभग 1.2 प्रतिशत है।
सरकार इसे लीगल टेंडर क्यों नहीं मान रही, ये एक सवाल है क्योंकि ये पैसा आम जनता के पास है। 3.6 लाख करोड़ हमारी अर्थव्यवस्था का इतना छोटा हिस्सा है कि इसे डिमॉनीटाईज करना तुगलकी फरमान जैसा है। इस निर्णय से भारत की साख को झटका लगा है। 2016 में की गई नोटबंदी से देश में छुपाए गए काले धन का कभी पता नहीं चल सका था। नोटबंदी के बाद देश का पंद्रह लाख करोड़ वापस बैंकों में आ गया था। दुनिया के बड़े देशों के सबसे बड़े नोट कभी बंद नहीं किये गए। डॉलर, पौंड कभी बंद नहीं किये गए।
सरकार के इस कदम से कैशलैस इकोनॉमी का ख़्वाब धरा रह गया। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में नगदी पंद्रह लाख करोड़ से बढ़कर 30 लाख करोड़ हो गई। सवाल ये है कि मोदी सरकार के प्रयासों के बावजूद देश में कैश तेज़ी से बढ़ गया। दो हज़ार के नोट के बंद होने की घोषणा के साथ ही देश के नागरिकों के लिए एक और पीड़ाभरा अध्याय शुरु हो चुका है। कोई गारंटी नहीं है कि मात्र 3.6 लाख करोड़ के नोट बंद करने से काला धन वापस आ जाएगा।