स्वराभास्कर, शोभा-डे जैसी महिलाएं ‘सादेनफ्रायदे’ या ‘मासोकवाद'(Sexual masochism disorder) नामक यौन बीमारी से पीड़ित है। इस बीमारी से पीड़ित महिलाएं या पुरुष कष्ट में यौन-सुख की पूर्ति में लगे होते हैं। इस बीमारी से पीड़ित महिलाएं बलात्कार में भी सुख की तलाश करती रहती हैं! जीवन के नाम पर बलात्कार को जायज ठहराने की कोशिश करती हैं, जैसे अभी स्वरा भास्कर ने अपने लेख में किया है। गौरतलब है कि एक लेख लिखकर पदमावती के जौहर का विरोध करते हुए स्वरा भास्कर ने बलात्कार को जायज ठहराने की जबरदस्त कोशिश की है!
इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं को यौन-तृप्ति तब तक नहीं मिलती, जब तक कि उसमें कष्ट का आवेग न हो! अपने यौन-साथी के हाथों कोड़े से मार खाना, मोमबत्ती के गर्म पिघले रस से बदन को जलवाना, खुद को बंधवाकर बलात्कार करवाना आदि जैसी विकृतियों को भी ये अपनाती हैं।
बलात्कार, जोर-जबरदस्ती की फैंटैसी इनके जेहन में हमेशा चलती रहती है। अभी जीयो पर विक्रम भट्ट की एक वेब सीरीज उपलब्ध है-‘माया’। आप ‘माया’ को देखकर स्वरा भास्कर जैसी यौन-विकृति से जूझती महिलाओं को समझ सकते हैं।
अपने लेख में जितनी बार स्वरा ने ‘वेजाइना’ शब्द का उपयोग किया है, वह उसकी उस ‘मासोकवादी'(masochism) मानसिकता से उपजी है, जिसमें वह स्त्री वेजाइना के कष्ट में आनंद ढूंढ़ रही है। इसलिए पद्मावती का जौहर उसे समझ में नहीं आ रहा है, क्योंकि उसकी पूरी संवेदना ‘वेजाइना-केंद्रित’ है। हालांकि आपको वह स्त्री अधिकार, मानव अधिकार, स्वतंत्र जीवन, बलात्कार के बाद भी जीवन-जैसे अनगिनत यूटोपियाई शब्दों का प्रयोग करने वाली ‘नारीवादी’ के रूप में खुद को पोट्रेट करने का प्रयास स्वरा ने किया है, लेकिन वह भूल गयी कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून भी ‘गरिमापूर्ण मानव जीवन’ को मानवाधिकार का मूल मानता है।
जिसके पास गरिमा नहीं है, उसका जीवन पशुवत है। लेकिन यहां भी इन आधुनिकाओं की यौन-फैंटैसी जन्म लेती है और वह पशु समान स्वच्छंद यौन-जीवन से लेकर पीड़ित यौन जीवन तक में सुख की तलाश में भटकती और उसे पूरे समाज पर थोपने के प्रयास में जुटी रहती हैं।
ऊपर से ऐसी बीमार स्त्रियां दिखने में सामान्य लगती हैं, लेकिन अंदर ही अंदर कष्टकारी यौन क्रिया का ख्वाब बुनती रहती हैं! ऐसी कष्टकारी यौन-क्रिया में बलात्कार भी आता है, जिसके पक्ष में पहले शोभा-डे, फिर स्वरा भास्कर और फिर अनगिनत वामी-कामी महिलाएं उतरी हुई हैं!