क्रिश्चियन रिलिजन में गिरिजाघर में पाप स्वीकारोक्ति के नाम पर महिलाओं के साथ ब्लैकमेल का खेल सालों से चलता आ रहा है। इसलिए इसे रोकने के लिए चर्च में कन्फेशन की प्रथा को खत्म कर देना चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि इससे महिलाओं को ब्लैकमेल किया जाता है। क्रिश्चियन रिलिजन पर सुधार की बात सामने आते ही क्रिश्चियन नेता और महिला अधिकार एक्टिविस्टों को मिर्ची लग जाती है। वे लोग तत्काल हिंदू धर्म पर प्रहार करना शुरू कर देते हैं। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा है कि चर्च में पादरी कन्फेशन की आड़ में दबाव डालकर महिलाओं से उनके राज उगलवाते हैं और ब्लैकमेल करते हैं। हाल ही में मलंकारा सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च के उन चार पादरियों पर एक महिला का यौन शोषण करने का मामला सामने आया है, जिनके सामने उन्होंने कबूल किया था। लेकिन केरल के हाईकोर्ट ने चारों को सशर्त जमानत दे दी है।
मुख्य बिंदु
* राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने केंद्र सरकार को भेजा चर्च में स्वीकारोक्ति खत्म करने का प्रस्ताव
* महिला सुधार पर प्रस्ताव आते ही क्रिश्चियन नेताओं, वामियों तथा महिला सुधारवादियों कट्टरता आई सामने
लेकिन रिलिजन की आड़ लेकर क्रिश्चियन नेता से लेकर महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ने का दिखावा करने वाली एक्टिविस्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। सुधार के मसले को भी ये लोग पार्टी और रिलिजन के चश्मे से देखना शुरू कर देते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि चूंकि रेखा शर्मा की पृष्ठभूमि भाजपा की रही है इसलिए वह इस मसले को आधार बनाकर अल्पसंख्यक रिलिजन पर हमला कर रही हैं। इस मसले पर बोलते हुए कविता कृष्णमूर्ति जैसे लोगो को शर्म तक नहीं आती कि वे कैसे खुद को प्रगतिवादी कहती हैं? वह किस मुंह से ऐसे रूढिवादी प्रथा के पक्ष में खड़ी हैं?
मालूम हो कि जेएनयू पृष्ठभूमि वाली कविता कृष्णन अखिल भारतीय प्रगतिवादी महिला संगठन की सचिव हैं। उन्होंने चर्च में स्वीकारोक्ति को खत्म कर महिलाओं के यौन शोषण रोकने के प्रस्ताव को मूर्खतापूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि चूंकि राष्ट्रीय महिला आयोग भाजपा के नेतृत्व में चल रहा है इसलिए उन्होंने इस घटना के माध्यम से अल्पसंख्यक रिलिजन पर हमला कर रही हैं। कृष्णन को रेखा शर्मा की आलोचना करने से पहले उसे रोकने का इससे बेहतर कोई मसौदा तैयार कर देना चाहिए। वैसे तो कविता जैसी प्रगतिवादी, जिनके लिए देह की स्वतंत्रता और फ्री सेक्स ही प्रगतिवाद है, उनसे इससे अधिक की अपेक्षा की भी नहीं जा सकती। क्योंकि इन्होंने हिंदुओ को अपमान करना हिंदू धर्म को गाली देना ही इन्होने अपना धर्म मान लिया है।
कविता की ही तरह महिला अधिकारों की वकील फ्लेविया एग्नेस का कहना है कि महिला आयोग का काम यौन उत्पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय सुनिश्चित करना है न कि किसी अल्पसंख्यक रिलिजन को उपदेश देना। गौरतलब है कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने जालंधर में पादरियों द्वारा बलात्कार करने तथा केरल स्थित मलाकांर सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च में एक महिला के साथ हुए यौन शोषण के आलोक में यह प्रस्ताव दिया था। उन्होंने अपने प्रस्ताव में कहा था कि चूंकि चर्च में पादरी अपने सामने महिलाओं से स्वीकारोक्ति के नाम पर सारे राज खुलवा लेते हैं और फिर उसका फायदा उठाकर उन्हें अपना शिकार बनाते है। इस प्रकार के कई मामले सामने आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रथा का चर्च के पादरी बेजा फायदा उठाते हैं। इसलिए इस प्रथा को बंद करना जरूरी है।
प्रगतिवादियों को जहां राष्ट्रीय महिला आयोग के इस कदम की सराहना करनी चाहिए लेकिन उल्टा उसकी आलोचना करनी शुरू कर दी है। वैसे भी ऐसी कोई भी अनर्गल प्रथा खत्म कर देनी चाहिए जिससे महिलाओं का अस्तित्व दांव पर लगा हो। लेकिन रिलिजन के नाम पर अंधे ये लोग किसी सार्थक सुधार का कभी समर्थन नहीं करेंगे। क्योंकि इनकी अपनी दुकान बंद हो जाएगी।
URL: Women’s Rights Activist kavita krishnan Condemn NCW’s Recommendation To Abolish Confession
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