ब्रजेश सिंह सेंगर :-
चरित्रहीनता में अव्वल है , शेष सभी में सबसे पीछे ;
विश्व – खुशी के पैमाने में , भारत है सबसे नीचे ।
कारण है अब्बासी – हिंदू , सदा ही झूठे – वादे करता ;
हिंदू इस पर करें भरोसा , जिससे गला कटाके मरता ।
चरित्रहीन मानव कैसा है ? सूअर और कुत्ते जैसा है ;
आहार , निद्रा , भय व मैथुन , पूरा-जीवन ऐसा है ।
पूरा- जीवन व्यर्थ है इनका , लक्ष्य कभी न पायेंगे ;
पशु-योनि से ये आये थे , फिर से वहीं चले जायेंगे ।
अब्बासी – हिंदू नेता कैसा है ? कैसा चौकीदार है ?
नर्क के कीड़े सा जीवन है , नर्क का ठेकेदार है ।
इसके अनुगामी नरक के गामी, कोई नहीं ठिकाना है ;
जीते जी अति कर ले जितनी , ब्याज सहित लौटाना है ।
इस जीवन में भी भोगेंगे , तड़प – तड़प कर मरना है ;
जैसी करनी – वैसी भरनी , कई-जन्मों तक भरना है ।
पता नहीं इनके गुरु कैसे ? सब के सब हैं गुरुघंटाल ;
खुले आम ये धर्म बेचते , कमा रहे हैं केवल माल ।
नब्बे- प्रतिशत हिंदू-बाबा , धर्माचार्य , कथा-वाचक ;
एक नम्बर के लम्पट हैं ये , चरित्रहीनता के वाहक ।
इन्हें धर्म का मर्म न आता , किस्सा-कहानी कहते हैं ;
धर्म का सत्यानाश कर रहे , हिंदू निर्बल बनते हैं ।
धर्महीन हो रहा है हिंदू , अब्बासी-हिंदू नेता का चक्कर ;
मंदिर तोड़ करे गलियारा , हिंदू बना हुआ घनचक्कर ।
ऐसे ही हालात रहे तो , पूरी तरह मिटेगा हिंदू ;
गजवायेहिंद को लेकर आया , नेता जो अब्बासी-हिंदू ।
बेवकूफी हिंदू की देखो , एकदम सीमा पार है ;
उसको हृदय-सम्राट बनाया , जिसको म्लेच्छों से प्यार है ।
सच्चर के छप्पर को लादा , हिंदू नीचे दबा हुआ है ;
जागो हिंदू ! अब तो जागो , वरना अब तू मिटा हुआ है ।
हिंदू लगभग हार चुका है , अपने भीतर की कमियों से ;
स्वार्थ,लोभ,भय,भ्रष्टाचार की , सड़ी-गली इन गलियों से ।
हिंदू ! इनसे बाहर निकलो , सच्चे-धर्म को अपनाओ ;
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , धर्म – सनातन में आओ ।
धर्म – सनातन शक्ति देगा , कमजोरी मिट जायेगी ;
हिंदू जिसको तरस रहा था , अच्छी-सरकार भी आयेगी ।
अच्छी-सरकार है परमावश्यक , अपरिहार्य इसको जानो ;
“स्वर्णिम-गौरव” वापस लौटेगा, परम-सत्य इसको मानो ।
“जय सनातन-भारत”,रचनाकार:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”