आईएसडी नेटवर्क। 94वें अकादमी पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फीचर की श्रेणी में भारतीय डाक्यूमेंट्री ‘राइटिंग विद फायर’ को नॉमिनेशन मिलने के बाद फिल्म उद्योग में ख़ुशी का माहौल दिखाई दे रहा है। ‘राइटिंग विद फायर’ एकमात्र भारतीय प्रस्तुति है, जिसे ऑस्कर में अवार्ड जीतने की आशा दिखाई दे रही है। राइटिंग विद फायर के साथ तीन डॉक्यूमेंट्री और मुकाबले में है। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय डाक्यूमेंट्री के लिए अभी आधा ही सफर तय हुआ है।
रिंटू थॉमस और सुष्मिता घोष के निर्देशन में बनी ‘राइटिंग विद फायर‘ दलित महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे एक समाचार पत्र ‘खबर लहरिया’ पर आधारित है। पत्रकारिता पर आधारित इस डाक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि कैसे एक दलित महिला अख़बार चलाने में आ रही समस्याओं का सामना करती है। ‘राइटिंग विद फायर’ डॉक्यूमेंट्री अब तक 20 से ज्यादा अवॉर्ड जीत चुकी है।
‘खबर लहरिया’ एक मीडिया संगठन है, जो मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में कार्य करता है। ये विशेष रुप से बुंदेलखंड क्षेत्र में ग्रामीण मुद्दों को उठाता है। खबर लहरिया सन 2002 में एक अख़बार के रुप में शुरु हुआ था और बाद में इसका यूट्यूब चैनल भी शुरु किया गया। इस भारतीय डाक्यूमेंट्री के ऑस्कर जीतने की संभावनाएं इस तथ्य में छुपी है कि उसके द्वारा भारत का कितना नकारात्मक स्वरुप प्रस्तुत किया गया है।
ऐसे उदाहरण अतीत में भारत देख चुका है, जब उसकी पुरस्कार योग्य फिल्मों को अस्वीकार कर दिया गया और उन फिल्मों को चयनित और पुरस्कृत किया गया, जिनमे भारत की गरीबी और सिस्टम की गंदगी उभारकर दिखाई जाती है। ऑस्कर के डाक्यूमेंट्री ( फ़ीचर) में ‘राइटिंग विद फायर’ के साथ अन्य तीन डॉक्यूमेंट्रीज ASCENSION, ATTICA, FLEE, SUMMER OF SOUL भी स्तरीय और पुरस्कार प्राप्त डॉक्यूमेंट्रीज हैं।
इनमे FLEE को एक प्रयोगधर्मी डाक्यूमेंट्री माना जा सकता है। इसका विषय भी सामाजिक न होकर आपसी संबंध है। इसके कई दृश्यों को एनिमेशन में ढाला गया है इसलिए ये कुछ रोचक हो जाती है। ATTICA की कहानी सन 1971 में अमेरिका की एक जेल में हुए दंगों पर आधारित है। कुल मिलाकर भारतीय डाक्यूमेंट्री ‘राइटिंग विद फायर’ की राह इतनी सुगम नहीं होने वाली है।
भारतीय मीडिया इस नॉमिनेशन को इस तरह प्रस्तुत कर रहा है, जैसे इस डाक्यूमेंट्री ने अवार्ड ही जीत लिया हो। ‘राइटिंग विद फायर’ ने अभी ऑस्कर की मुख्य रेस में कदम ही रखा है और मीडिया का ऐसा अतिरेक अंतरराष्ट्रीय फिल्म जगत में भारत की जग हंसाई करा सकता है।