डॉ विनीता अवस्थी. (योगिनी -एक योद्धा) घोड़ों की टापो की आवाज पास आती जा रही थी कम से कम 8-10 खूंखार विशालकाय देह घुड़सवार, विभिन्न आयुद्धों से सुसज्जित -तीर कमान, नुकीले भाले, खड़ग, हस्त नख तथा हाथों में आग्नेय विस्फोटक पदार्थ लिए घोड़ों को दौडाते चले जा रहे थे सामने अंधेरे रास्ते आसपास घने पेड़ों का झुरमुट दुर्गम मार्ग और सीधी पहाड़ी चढ़ाई कुछ भी उनके मार्ग में अवरोध नहीं पैदा कर पा रहा था हुंकारते ,ललकारते वह बड़े जा रहे थे इतने में एक सैनिक चिल्लाया” दाई ओर वह देखो” बाकी सैनिकों ने भी अपनी गर्दन वही मोड़ी।
अग्नि शिखा सा लहराता एक भगवा रंग का वस्त्र उड़ता दिखा दूसरा सैनिक चिल्लाया “वह रही पकड़ो” सब ने अपनी घोड़ों की दिशा उस ओर मोड़ दी जंगल कि वह पहाड़ी रात घोड़ों की टापोऔर सैनिकों की आवाजों से और भयानक होती जा रही थी बीच-बीच जंगली जानवरों की आवाज, कभी किसी पक्षी की आवाज और घने पेड़ों की टहनियां तेज हवाओं से नीचे झुक झुक कर मानो मार्ग रोक रही थी सभी कुछ वातावरण को और स्याह व डरावना बनाता जा रहा था सौ कदम की की दूरी पर ही एक घुड़सवार निर्भीक, निश्चिंत और आत्मविश्वास से पूर्ण अपने घोड़े को छोटे नाले से पार करवा रहा था
पर आश्चर्य.. यह तो कोई 22 -23 वर्ष की लंबी सुगठित देह की एक स्त्री थी “योगिनी” आश्रम में गुरुदेव ने उसे यही नाम दिया था नाला पार करवा के एक क्षण के लिए योगिनी ने मुड़ के देखा गर्व से ग्रीवा उठाकर उन खूंखार घुड़सवारो पर एक उपहास भरी दृष्टि डाली.. उसके होठों पर एक विद्रूप सी मुस्कान खेल गई उसने पुनः ऐड लगाकर अपने घोड़े की गति बढ़ा दी, कंधे पर तीर कमान पैरों में दो कटार बंधी ,एक योद्धा से वस्त्र कसे हुए अपने लक्ष्य पर अंधेरे को चीरती वह बड़ी जा रही थी कमर पर बंधीहुए लाल पोटली पर उसका हाथ गया उसने तसल्ली की वह बहुमूल्य धरोहर उसके पास सुरक्षित है दृष्टि उठाकर आकाश में देखा
तारे अपना विशिष्ट योग बना रहे थे गुरुदेव के बताए हुए नक्षत्र में ही उसे नदी पार करनी थी। एक बहुत बड़े उद्देश्य के लिए मैंने उसे चुना था उसकी क्षमताओं पर विद्या पर उन्हें पूर्ण विश्वास था बस उसे अपने क्रोध पर नियंत्रण करने को बार-बार उन्होंने बोला था। असुर जैसे सैनिकों की भद्दी टिप्पणियां उसकी क्रोध की अग्नि को मानोआहुति दे रही थी एक लंबा श्वास लेकर उसने आकाश की तरफ देखा हर एक क्षण मुट्ठी की रेत की तरह से चलता जा रहा था
घोड़ों के दौड़ने की आवाज पास आती जा रही आगे बढ़कर उसने घोड़े की ऐड़ लगाई कुछ सौ कदम की दूरी पर नदी के प्रवाह के आवाज सुनी जा सकती थी उससे पहले कुछ दूरी पर एक खुली मैदान नुमा जगह थी योगीने अपना घोड़ा कुछ कदम पीछे ले लिया उसे घोड़े को वहां से छलांग लगाकर पार करवाना था और कुछ ही क्षण की देरी उसे मुसीबत में डाल सकती थी एक बार पुनः उसकी दृष्टि गहन अंधकार में टिमटिमाते तारों पर गई प्रतिक्षण तारों की बदलती स्थिति में उसके कर्म और भाग्य दोनों बदल सकते थे। अभी एक सैनिक ने अपनी आसुरी भाषा में एक रस्सी से बंधा पाषाण यंत्र चलाया योगिनी के घोड़े के पीछे के पैरों से बन गया, यह दोनों छोर से बंधा एक मजबूत रस्सी से बना यंत्र था।
योगिनी का घोड़ा’ श्वेतकेतु लड़खड़ा गया योगिनी ने क्रोध से भर कर पीछे मुड़ कर देखा एक सैनिक जिसने यंत्र चलाया था वह उतर गया था घोड़े के पीछे दो घुड़सवार और खड़े थे साथ ही लगभग सात आठ दौड़ते हुए आकर रुक रहे थे अपने घोड़े श्वेतकेतु को घायल देखकर उसके क्रोध का बांध टूट गया उस पर असुर सैनिकों की हंसी अभद्र हंसी दे उसकी क्रोध अग्नि में आहुति का काम कर दिया वो उछल कर नीचे उतरी और एक तीखी पर निर्णायक दृष्टि उसने सभी पर डाली
जिस सैनिक में उसके घोड़े को घायल किया था वह बड़े आत्मविश्वास से आगे बढ़ा पीछे खड़ा एक सैनिक जो संभवतः सेनापति चीख कर बोला बोला“यही तुम्हारा पुरस्कार है जाओ ले लो” आगे वाला सैनिक एक भयानक हंसी हंसता हुआ अभी कुछ ही कदम चला था कि अचानक बिजली सी कौधी और उसका मस्तक नीचे धड़ से कटा गिरा था बाकी सब को कुछ समझ ही नहीं आया। यहां योगिनी ने मृत्यु का तांडव शुरू कर दिया था, उसने उसी समय यह भाप लिया था कितनी देर में उन्हें इन सबको मौत के घाट उतारना है
उस सैनिक की दुर्गति देखकर पीछे के सैनिक कुछ तो चौक गए तो कुछ क्रोधित होकर आगे बढ़े तब तक योगिनी ने अपनी कमर से एक छोटी बांसुरी नुमा कोई यंत्र निकाला उसमें कुछ बांधकर तीर की तरह चलाया कुछ लोहे की सुई नुमा पैनी सुईया उनके गर्दनो पर जाकर बिंध गई जिसे दो लिखो नहीं आराम से निकाल लिया और गुराते हुए आगे बढ़े पर अभी कुछ ही कदम चले अचानक नीचे गिर पड़े बाकी सब भयातुर दृष्टि से उन्हें आंखें फाड़े देख रहे थे सब की दृष्टि अभी खड़ी योगिनी पर थी। अपनी अपनी तलारे लेकर वह क्रोध से उस पर टूट पडे।
इधर योगिनी ने भी अपने दोनों हाथों में तलवारे निकाल ली थी़ फिर उस भयानक जंगल में तलवारों के टकराने की आवाज और कुछ दर्दनाक चीखें ही सुनाई दे रही थी, कुछ ही देर में नरमुंड व शवों का अंबार सा लग गया और नीचे धरती पर एक छोटा रक्त का ताल सा बन गया। लग रहा था की एक बिजली से कौधं रही है और एक के बाद एक शवो का ढेर लग रहा है अब सिर्फ सेनापति शवो के इस ओर और उधर योगिनी ही बचे थे..
योगिनी ने पुनः अपने कमर पर लाल कपड़े में अनोखी वस्तु जो एक अमूल्य मणि थी उस पर हाथ फेरा की दृष्टि एक दूसरे से टकराई और लगभग चीखते हुए दोनों एक दूसरे पर प्रहार करने दौड़ पड़े सेनापति ने संभवत योगिनी को एक सामान्य स्त्री ही समझने की गलती कर ली थी अपने सैनिकों की मृत्यु देखकर उसने आपा खो दिया वह लगभग 40 की उम्र का एक वीर और धूर्त सेनापति था उसे समझ में आ गया कि इस वीरांगना को बल से काबू नहीं किया जा सकता उसका शौर्य और पराक्रम देकर वह स्वयं भी चकित था दोनों में घमासान युद्ध शुरू हो गया पर आश्चर्य बिजली की फुर्ती से जिस तरह योगिनी हर वार से स्वयं को बचाकर उस पर प्रहार कर रही थी
वह स्वयं आश्चर्यचकित हो गया इतने में दोनों की तलवारे टकराई और सेनापति के हाथ से तलवार की मूठ छूट गई उसने छल का सहारा लिया वह घुटनों पर बैठ गया और बोला “मार दो मुझे देवी मार दो” योगिनी ने कहा अपने महाराज से बोलो “यह गुरुदेव की धरोहर है” मणि का विचार त्याग दें शवोकी तरफ उसने तलवार से इशारा किया यही परिणीति पूर्ण राज्य की होगी”
“जी देवी” सेनापति ने डरने का ढोंग किया। योगिनी ने देखा आकाश में कुछ क्षण बचे थे उसने नदी पार करने के लिए। उसने पीछे घूम कर अपने घोड़े को बुलाया और एक ही छलांग पर उस पर सवार हो गई उसने जैसे हीसेनापति को देखा़़़ वह वहां नहीं था…