यह वह दौर था, जब पश्चिम में केवल एक रिलीजन था-यहूदी। एक लड़की किसी लड़के से प्रेम करती थी। शादी से पूर्व ही वह लड़की गर्भवती हो गयी। बिना शादी के कोई लड़की गर्भवती हो जाए भला यह समाज कैसे बर्दाश्त करता? समाज ने तय किया कि उस लड़की को बीच चौराहे पर पत्थर मार-मार कर मार डाला जाए। पश्चिम का यह जंगली शासन आज भी कई मजहबी देशों में है! इसे मजहबी लोग शरिया कानून कहते हैं। चूंकि वह मजहब भी यहूदी धर्म की मूल शाखा से ही निकला है, इसलिए वह जंगली कानून यहां बना हुआ है!
एक भलामानुष वहां पहुंचा और उसने बरसते पत्थरों के बीच जाकर उस लड़की की रक्षा की। समाज ने कहा, ‘हट जाओ! यह पापिन है!’
उसने कहा, ‘नहीं यह मासूम है, इसे मत मारो! मैं इसे अपने साथ रखूंगा।’
‘अपने साथ रखूगा! मतलब?’ ‘मैं इससे मैरिज करूंगा!’ उस भलेमानस ने कहा।
उस व्यक्ति की पहले से ही एक पत्नी थी। लेकिन चूंकि उसने उस लड़की की जान बचाने के लिए उससे दूसरी शादी की थी, इसलिए पहली पत्नी ने ज्यादा विरोध नहीं किया।
उस लड़की ने बड़े ही सुंदर बेटे को जन्म दिया। बेटा बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा का धनी था। पश्चिम के उस जंगली समाज के बीच वह कुछ अलग था, जिसे उसके सामाजिक पिता ने महसूस किया। उस समय दुनिया का सबसे समृद्ध व ज्ञानवानों का देश भारत था। जंगली पश्चिमी समाज के पास जब पहनने के लिए कपड़े तक नहीं थे, तब भारत शिल्क के कपड़ों का व्यापार करता था। आज के जम्मू-कश्मीर, पीओके से होकर भारत का शिल्क रूट था, जिससे पश्चिम और भारत के बीच व्यापार होता था।
वह बच्चा जब 12 साल का हुआ तो उसके पिता को चिंता हुई कि यदि वह इस जंगली पश्चिमी समाज में रहा तो जंगली बन जाएगा। उस वक्त पूरी दुनिया में विश्वविद्यालय सिर्फ भारत में था। पश्चिमी लोग तो पढ़ना-लिखना तक नहीं जानते थे, जो आज हमारा इतिहास लिखे बैठे हैं, अपने फायदे के लिए!
तक्षशिला की परंपरा में उस वक्त नालंदा विश्वविद्यालय था। जहां पढ़ना, रहना, खाना सब निशुल्क होता था! उसी पश्चिमी सोच वाली जमात के शासन में, उसी पश्चिमी गिरोह से फंड लेने वाली जमात ने ‘राइट टू फूड’, ‘राइट टू एजुकेशन’ देकर हमें भिखमंगा और अशिक्षित साबित करने का प्रयास किया है! लूटा इनके ही पूर्वजों ने और दानवीर भी बन यही रहे हैं!
हां तो, वह बच्चा नालंदा में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत कश्मीर, लद्दाख, तिब्बत, नेपाल तक पहुंचा और बुद्ध के ध्यान और नाथपंथ की कठोर योग साधना से गुजरा। बौद्ध धर्म ने उसे शाक्यमुनी पद्मसंभव का अवतार माना तो नाथपंथ में उसे चेतननाथ ने दीक्षा दी और उसे ‘ईशानाथ’ का नया नाम दिया!
आज उसी नाथपंथ का एक महंत उप्र का मुख्यमंत्री है तो सबसे अधिक विरोध उन्हीं पश्चिमी देश के पत्रकारों और भारत में पश्चिमी सोच वाले तथाकथित सेक्यूलर गिरोह द्वारा किया जा रहा है! जबकि उस पश्चिम का पूरा रिलीजन ही जिस व्यक्ति के नाम पर खड़ा है, वह कभी इसी नाथपंथ में दीक्षित हुआ था! नाथपंथ के अद्भुत इतिहास को समझने के लिए आप मेरी आगामी पुस्तक ‘राज-योगी: गोरखनाथ से आदित्यनाथ तक’ को नीचे दिये अमेजन के लिंक पर जाकर बुक कर सकते हैं!
हां तो वह बच्चा 30 साल की उम्र में अपने देश फिलिस्तीन पहुंचा। उस हिंसक, बर्बर और जंगली समाज में अहिंसा, पुनर्जन्म, योग, ध्यान, साधना की बातें हवा के ठंडे झोंके की तरह थी! लोग उसके पास खिंचते चले आए। उस वक्त फिलिस्तीन रोमन शासन के अधीन था। पूरा पश्चिमी समाज का विश्वास दरक रहा था, इसलिए जिस तरह उसकी मां को पत्थर मारा गया, उसी तरह उसे क्रूस पर लटकाने का निर्णय किया गया।
उस वक्त वहां का गर्वनर पोंटियस बहुत अच्छा था और उसने ऐसी व्यवस्था की कि कुछ समय तक क्रूस पर लटकाने के बाद ही उसे उतारकर रातों रात शिल्क रूट से भारत रवाना कर दिया गया। उसने जहां से ज्ञान हासिल किया था, वहीं फिर शेष जीवन गुजारने के लिए पहुंचा। वह वहां 112 साल तक जीया और लोगों के बीच रहा। कश्मीर में आज भी उसका मकबरा और कील ठोकने के कारण हुए जख्म वाले पैरों के निशान ‘रोजेबल टॉम्ब’ में मौजूद हैं!
उस असभ्य और ज्ञानविहीन समाज ने कालांतर में एक पाखंड खरा किया। तीन-चार पीढियां गुजर जाने के बाद पहले चार-जालसाजों ने मिलकर और फिर उसके बाद इन जालसजों के सबसे बड़े बाप ने क्रूसीफिकेशन की नयी कहानी गढ़ी और उस व्यक्ति के नाम पर एक नया रिलीजन ही खड़ा कर दिया। आज उस सबसे बड़े जालसाज के नाम पर चल रही मिशनरी स्कूलों में भारतीय अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए ऐसे पगलाए रहते हैं कि पूछो मत! कुछ सदी में ही नालंदा से मानसिक दरिद्रता तक का भारत का यह सफर पश्चिमी शासन व सोच वालों की देन है!
जिस समाज का इतिहास, रिलीजन सबकुछ झूठ की बुनियाद पर खड़ा है, वहां के मक्कार लोगों ने हमें यह सिखाने का प्रयास किया कि तुम्हारा कोई इतिहास नहीं, तुम्हारी कोई संस्कृति नहीं, तुम्हारा कोई धर्म नहीं, द्रविड़ों को हराकर तुम आर्य इस देश पर काबिज हुए हो..आदि आदि! और इसी मूढ़ता को उसी पश्चिम की अन्य विचारधारा-मार्क्सवाद, वामपंथ, सेक्यूलरपंथ आदि में दीक्षित भारतीय (कु)बुद्धिजीवियों ने आगे बढाया! लेकिन हमारी संस्कृति का ये कुछ नहीं बिगाड़ पाए, न आगे ही बिगाड़ पाएंगे! बरगद के जड़ों को उखाड़ना आसान तो नहीं?भारतीय संस्कृति, सभ्यता और सनातन धर्म वह बरगद है, जिसकी छांव में यह सारी दुनिया रही है और आगे भी रहेगी। उस बरगद की एक शाखा नाथपंथ पर और जानने के लिए पढ़ें-