योगी ! किसी से कभी न दबना , हिंदू – धर्म बचाना है
हिंदू-आशा की प्रखर ज्योति तुम,ज्योतिसे ज्योति जलाना है
“धर्म-ज्योति” पड़ रही है मद्धिम , दावानल इसे बनाना है ;
“धर्म-सूर्य” तुम ही हो योगी , अंधियारे को मिटाना है ।
हजार – बरस से हिंदू पीड़ित , पीड़ा से मुक्ति दिलाना है ;
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , उसी से सब-कुछ पाना है ।
भूल चुका था अपनी शक्ति , हिन्दू “हनुमान” सरीखा है ;
नोटा का “एटम-बम” रखे था,अब उसको ठीक से देखा है ।
हिंदू-जनता का दृढ़ निश्चय है ,”नोटा” हथियार चलाना है ;
अब्बासी-हिंदू को चूड़ी देकर , ता-ता थैया नाच कराना है ।
हिंदू वोट उसी को देगा , धर्म – सनातन का रखवाला ;
किसी भी दल का या निर्दल हो , पर हो धर्म बचाने वाला ।
जहां नहीं ऐसा प्रत्याशी , नोटा का बटन दबाना है ;
चाहे कुछ भी हो जाये , हर हिंदू-द्रोही को हराना है ।
दृढ़ संकल्प यही हिंदू का , हिंदू – राष्ट्र बनाना है ;
केवल कट्टर – हिंदू चुनकर , कट्टर – सरकार बनाना है ।
हर सच्चा-हिंदू ठान चुका है , योगी को आगे लाना है ;
जब सबसे आगे योगी होंगे , तब ही भारत को बचना है ।
योगी ! अपनी टीम बनाओ , सब के सब विश्वासपात्र हों ;
सरकारी-हिंदू एक न रखना , इनसे केवल विश्वासघात हो ।
टुकड़खोर सरकारी – हिंदू , भ्रष्टाचार में माहिर हैं ;
जो भी उसको टुकड़ा फेंके , पूंछ हिलाता हाजिर है ।
भारत की बर्बादी ये ही , हिन्दू – धर्म के शाप हैं ;
आस्तीनों में यही पल रहे , ये जहरीले – सांप हैं ।
भ्रष्टाचार हिंदू का दुश्मन , जड़ से इसे मिटा डालो ;
कानूनी-ताकत जनता को देकर,इसकी जड़ में मट्ठा डालो ।
अभी तो जनता की सुनवाई , कोई नहीं ठीक से करता ;
पुलिस-प्रशासन इतना घटिया,प्रथम-सूचना तक न लिखता।
केवल लीपा-पोती करते , राज्य को धोखा देते हैं ;
बिन रिश्वत कोई काम न होता , अपना-घर ये भरते हैं ।
भ्रष्टाचार है धर्म का दुश्मन , केवल हिंदू पिसता है ;
अब्बासी-हिंदू की यही है ताकत, इसी से साजिश रचता है ।
भ्रष्टाचार जब मिट जायेगा , अब्बासी-हिंदू भी मर जायेगा ;
धर्म – सनातन छा जायेगा , हिंदू – राष्ट्र तब बन जायेगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”