डॉ विनीता अवस्थी.अब अचानक ही गर्दन पर भारी हाथ की पकड़ आभास हुई अगले ही क्षण वह घोड़े से नीचे गिर गई अपितु एक ही क्षण में संभल कर उठ खड़ी हुई परंतु अब क्रोध का ज्वालामुखी उसके अंदर फट चुका था यही एक अवगुण उसके योग चर्या में था जिसके लिए उसे बार बार चेतावनी दी थी,
9 वर्ष की उम्र से ही उसकी पवित्र साधना प्रारंभ हो गई थी गुरुदेव की आज्ञा के अनुसार आश्रम में उसकी कुटिया के पास कोई पुरुष नहीं जा सकता था अन्य आश्रम के पुरुषों को उससे 5 हाथ की दूरी से बात करने की आज्ञा थी योगिनी की योग शुचिता के लिए गुरुदेव ने बहुत कठोर नियमों का निर्धारण किया था केवल आश्रम की स्त्रियों को ही उसकी कुटिया में जाने की अनुमति थी।
आज प्रथम बार किसी पुरुष ने उसे छूने धृष्टता करी थी। इतने वर्षों की साधना में अपवित्रता उसे छूकर स्वयं पवित्र हो गई थी। आज प्रथम बार उसके साधना के नियम टूटे थे। उसने पुनः सर उठा कर अपनी आग उगलती आंखों से सेनापति को जिस दृष्टि से देखा एक क्षण के लिए वह दहल सा गया हालांकि वह स्वयं बहुत क्रूर था और उसने कई युद्ध जीते थे आज तो उसका साक्षात मृत्यु से सामना था।
कुछ देर पत्थर की मूर्ति की तरह खड़े रहने के बाद दृष्टि उठाई और सीधे सेनापति आंखों झांका यहां यहां सेनापति ने भी अपनी कटार निकाल ली थी अब दोनों में घमासान युद्ध शुरू हुआ योगिनी के दोनों हाथों में तलवार थी सेनापति एक बाघ की तरह उस पर झपट पड़ा परंतु शीघ्र ही उसे पता चला कि उसका सामना एक शेरनी से है योगिनी के लड़ने का तरीका ऐसा था जैसे शिकारी अपने शिकार को को कुछ देर खेल के फिर तड़पा तड़पा कर मारता है ।
वह पहले उसे आक्रमण करने देती फिर हर वार को बचाकर उसे दुगना घायल कर देती सेनापति को अभी भी यह लग रहा था की वह उसे शीघ्र ही पराजित कर देगा अचानक योगिनी घुटनों के बल नीचे बैठ गई जैसे ही सेनापति ने आक्रमण किया वह फुर्ती से उठकर उसके चारो ओर अग्नि शिखा सी घूम घूम कर वार कर रही थी एक क्षण के लिए सेनापति को कुछ समझ ना आया बस यूं लगा कि एक ज्वाला सी उसके चारों ओर घूम रही हो जब योगिनी एक स्थान पर आकर रुकी उसने पुनः अपना सर उठा कर देखा सेनापति स्थिर खड़ा था वह धीरे-धीरे कदम बढ़ा कर ओर आई…. पर यह क्या सेनापति फटी आंखों उसे से देख रहा था
अचानक उसके घुटने मुड़े और वह आगे की तरफ गिर पड़ा योगिनी ने उसके हाथों, पैरों और को कंधों प्रतीक जोड़ों पर प्रहार कर उन्हें काट दिया था एड़ी, घुटने कोहनी कंधे सबसे रक्त बह रहा था, वह मात्र एक शव की तरह पड़ा था। योगिनी ने अपनी तलवार से उसके हाथों की उंगलियों को छुआ इसी हाथ से उसने उसे पकड़ा था अगले ही वार में उसकी हथेली शरीर से अलग थी… सेनापति को लग रहा था कि उसकी मृत्यु अब आसान नहीं होगी।
योगिनी कुछ कदम पीछे हट कर उस पर और का प्रहार करने वाली थी के अचानक ही उसका पैर किसी कोमल वस्तु से टकराया… एक नन्हा सा हिरन शावक दुबका बैठा था योगिनी ने उसे अपने हाथों से उठाया और एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया। कुछ देर पहले कोई उसे देखता तो वह विश्वास ही ना कर कि जिस क्रूरता से उसने सेनापति को घायल किया था वह इतनी कोमल हृदया भी हो सकती है।
उसके बाद वह धीरे-धीरे चलकर सेनापति के पास पहुंची मैं पीड़ा से बुरी तरह कहरा रहा था योगिनी की मुख्य मुद्रा फिर बदल गई उसने अपने दाएं पैर से जोर से ठोकर मारी सेनापति तीन बार पलट के गिरा और उसका मुंह था योगिनी ने तलवार की नोक से उसकी गर्दन को छुआ अगले ही क्षण जोर का प्रहार दिन के उसी हिस्से पर किया जहां सेनापति ने उसकी गरदन को पकड़कर घोड़े से नीचे पटका था.. और वहां से रक्त की धार फूट पड़ी यही उसकी नियति थी उसे तिल तिल कर तड़पकर मरना था।
एक लंबी सांस भरकर योगिनी ने ऊपर आकाश की तरफ देखा कुछ क्षण देखने के बाद उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खेल गई। अब उसे “अरुंधति तारा” नहीं दिखाई दे रहा था शास्त्रों के अनुसार यह शरीर की मृत्यु से पहले के संकेत हैं वह समझ गई इस जन्म में उसका कार्य यही तक था। अंधकार और गहरा गया था भगवान भास्कर को उदित होने में कुछ समय शेष था।
50 कदम की दूरी पर उचाई पर एक समतल स्थान था से कदम बढ़ाते योगिनी वहां तक पहुंची उसने वहीं समाधि की स्थिति आसन जमा लिया।
अभी गहरी समाधि में गए कुछ ही क्षण बीते थे उसे अपने चेहरे के समीप किसी के साथ लेने का आभास हुआ उसने मुस्कुराते हुए आंखें खोली एकदम उसके चेहरे के पास उसका घोड़ा श्वेतकेतु आंखों में अश्रु लिए खड़ा था। योगिनी ने हाथ से उसे थपथपा कर बोला” श्वेत केतु इस जन्म में इतना ही साथ था”।
अब योगिनी के भी आंखों में अश्रु छलछला आए । कुछ क्षण उसे सहलाने के बाद उसने सामने जंगल की तरफ दृष्टि डाली फिर जोर से चिल्लाकर बोला”वजृवाहन सामने आओ” कुछ ही दूरी में घने जंगल में कुछ खड़खडाहट हुई एक साया धीरे-धीरे सामने आया और लगभग 5 हाथ की दूरी पर खड़ा हो गया कुछ तीन चार साए और खड़े थे। उसने कहा” गुरुदेव के चरणों में प्रणाम कहना ब्रज वाहन मैं मणि को तो सुरक्षित निकाल ले आई स्वयं को अपने क्रोध से ना बचा पाई”।
ब्रज वाहन चुपचाप खड़ा था योगिनी पुनः आंख बंद करके ध्यान में चली गई थी। ब्रज वाहन सोच रहा था कि क्या योगिनी को पता था वह अपने साथियों के साथ उसका पीछा कर रहा था गुरुदेव की आज्ञा से उस पर नजर रखने की उन्हें किसी भी प्रकार योगिनी के कार्य में दखल नहीं देना था ब्रज वाहन ने अपनी पूर्ण यात्रा में देखा था वह किन किन संकटों से घिरी परंतु उसने उन्हें सहायता के लिए पुकारा नहीं वह सिहर गया।
योगिनी ने पुन:अपनी आंखें खोली और बोला” गुरुदेव को कोटि-कोटि वंदन
वंदन करके निवेदन करना की उन्होंने मुझे कार्य पूर्ण किए बिना आने की आज्ञा नहीं दी थी और मैं अपना शरीर यही त्याग रही हूं जब तक उनकी आज्ञा नहीं होगी पुनः जन्म नहीं लूंगी”। इससे पूर्व की ब्रजवाहन कुछ समझ पाता। उस स्थान का तापमान कुछ बढ़ने लगा इतना कि वह और उसके साथी सह ना पाए और कई कदम पीछे हट गए।
योगिनी ने दाएं हाथ को ऊपर उठाया और जोर से पुकारा ” गरुडी” कुछ क्षण में विशाल पक्षी उसके ऊपर मंडराने लगा और सामने आकर बैठ गया योगिनी ने अपनी कमर से एक लाल कपड़ा निकाला जिसमें संभवत कुछ बंधा हुआ था और उस पक्षी के गले में बांध दिया फिर कुछ अस्पष्ट शब्दों में पक्षी के कान में कहा और उसे दाएं हाथ में बैठा कर उड़ा दिया जब तक पक्षी दृष्टि से ओझल ना हो गया वह देखती रही।
उधर सूर्य देव को उदित होने ही वाले थे उस स्थान की ऊर्जा इतनी उग्र हो गई कि उसे योगिनी के घोड़े श्वेतकेतु को लेकर काफी पीछे हटना पड़ा। यूं लग रहा था मानो सूर्य देव की पहली किरण के साथ स्वयं अग्नि उस स्थान पर उतर आई है योगिनी के मंत्रों की ध्वनि उन तक पहुंच रही थी इससे पहले किसी को कुछ समझ आता योगिनी ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में ऊपर उठाएं से बंद करते हुए सूर्य देव को प्रणाम किया इसी के साथ ही एक अत्यंत सौम्या सी अग्निशिखा के उसके शरीर में स्वयं ही जागृत हो गई।
बृजवाहन यह देखकर जडवत हो गया उसने देखा वह अग्निशिखा धीरे-धीरे बढ़ रही है फिर योगिनी का शरीर दिखाई देना बंद हो गया सिर्फ अग्नि पूंज ही जलता दिखाई दिया। और कुछ ही क्षणों में वहां एक पवित्र धूनी थी वे सभी चट्टान की तरह जडवत हो गए थे ब्रज वाहन ने अपने दाएं हाथ में श्वेतकेतु की लगाम थाम रखी थी श्वेतकेतु कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा तब जाकर ब्रजवाहन को होश आया मैं स्वयं घुटनों के बल बैठा श्वेतकेतु को सहलाना आरंभ किया तब तक सूर्य देव ने उन सभी को अपनी किरणों से आह्लादित कर दिया था उनके समक्ष अनोखा दृश्य था बीच में एक धूनी और उसके समक्ष यत्र तत्र व बिखरे शव।
बृजवाहन ने प्रणाम मुद्रा में दंडवत किया उसके सभी साथियों ने भी उसका अनुकरण किया। फिर वह पहाड़ी के नीचे उतर गए।
एक पवित्र आश्रम मैं अत्यंत प्रभावशाली, पवित्र, ज्ञानमय तेज से परिपूर्ण श्वेत वस्त्रों में ध्यान की मुद्रा में बैठे थे यह आश्रम का मध्य स्थान था जो एक खुला परिसर था गुरुदेव कुछ ऊंचे से आसन पर विराजे थे वह शिष्य गण नीचे पद्मासन में बैठे हुए थे कुछ बताते बताते अचानक ही वह रुक गए और आंख बंद करके ध्यान में चले गए।
बाई तरफ आचार्य गण खड़े थे उन्होंने सभी को शांत रहने का इशारा किया फिर सभी ध्यान से गुरुदेव की मुख्य मुद्रा को देख रहे थे उनके चेहरे के बदलते भाव सभी को चिंता में डाल रहे थे तभी एक शिष्य अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित आचार्य के पास आकर खड़ा हुआ। आचार्य ने हाथ से उसे प्रतीक्षा करने का इशारा किया कुछ समय बाद गुरुदेव ने अपने नेत्र खोलें आकाश की तरफ देखा आचार्य ने प्रणाम करके गुरुदेव से निवेदन किया की योगिनी की सहायता के लिए योद्धाओं की दूसरी टुकड़ी जाने को करने को प्रस्तुत है।
गुरुदेव के चेहरे की की भाव भंगिमा अत्यंत गंभीर हो गई उन्होंने हाथ उठाकर मना किया “आवश्यकता नहीं”। उनका व्यक्तित्व कितना गरिमा पूर्ण था उनके समक्ष किसी को प्रश्न करने का साहस नहीं होता था उनकी योग साधना से उनकी आयु का पता लगाना असंभव था श्वेत वस्त्र , श्वेत केश मेरे पर हम भी सफेद दाढ़ी नेत्रों में सागर की अतल गहराई उनके व्यक्तित्व के सामने किसी की भी वाणी स्वयं थम जाती थी।
आचार्य स्वयं निशब्द हो गए गुरुदेव ने उठकर अपनी खड़ाऊ पहनी मैं धीरे धीरे चल कर अपने ध्यान साधना कक्ष में चले गए।
जाते उन्होंने आचार्य से कहा आश्रम के बहार बाई तरफ के पहले वृक्ष की की ओर जाओ वहां गरून होगी उसके पास जो भी हो लेकर आ जाना। आचार्य का हृदय किसी आशंका से तेजी से धड़कने लगा था वह बड़े-बड़े कदमों से चलते हुए आश्रम के बाहर पहुंचे। अभी उनकी दृष्टि पेड़ पर गई थी की वही विशाल पक्षी उड़ता हुआ कंधे पर आकर बैठ गया उसके गले में एक लाल कपड़े में बंधा कुछ देखकर उन्होंने तुरंत ही उसे खोला वह साथ में एक संदेश भी था।
उनके हाथ कांप रहे थे यह तो “योगिनी को लेकर आना था” वह बुदबुदाए। आश्रम का वातावरण तुरंत ही बदल गया सभी को किसी अनहोनी की आशंका हो गई थी आचार्य तुरंत की वह वस्तुएँ लेकर गुरुदेव के समक्ष उपस्थित हो गए।
“गुरुदेव यह तो वही मणि तथा एक संदेश है
परंतु योगिनी.”. आचार्य ने कहा। गुरुदेव ने हाथ उठाकर उन्हें चुप रहने को कहा ‘विधि का विधान है आचार्य जब तक हम अपने अंदर के सभी शत्रुओं को पराजित नहीं कर देते तब तक मुक्ति नहीं मिलती”। वह वहीं है” गुरुदेव ने कहा उसने लक्ष्य पूरा तो कर दिया मणि सुरक्षित पहुंचा दी संदेश संभाल के रख लो आचार्य गुरुदेव ने आदेश दिया। उनके के कदमों में मानो जान ही नहीं थी वह प्रणाम करके धीरे-धीरे कक्ष से निकल आए। बाहर सभी आचार्यों तथा शिष्यों की दृष्टि उन पर जमी थी उन्हें सभी के प्रश्नों का सामना करना था।
इसी समय उसी पहाड़ी पर प्रकृति अपना विचित्र रूप दिखा रही थी अनेक गिद्ध रूपी विशाल पक्षी उतर आए और उन शवों की मात्र नेत्रों को चोट मार मार कर निकालने लगे मानो योगिनी पर कुदृष्टि डालने की सजा दे रहे हो। कुछ ही देर में उस पहाड़ी पर अनेकों पक्षी आ गए कुछ घंटों मे वहां शवों का नामोनिशान नहीं था। यह उस पहाड़ की चोटी का स्थान था उसके कुछ नीचे अचानक ही भूस्खलन होने लगा ऊपर जाने के रास्ते में बड़े-बड़े चट्टान आदि गिरने लगे कुछ ही देर में वह भाग बाकी की दुनिया से मानो कट सा गया हो।
कुछ ही देर में अतिवृष्टि के कारण स्थान के नीचे आसपास छोटा सा पहाड़ी नाला बन गया ,पहाड़ की वह चोटी ऊंचे से घिरी थी कुछ वृक्ष तो इतने ऊंचे थे कि उनके तने पहाड़ी के नीचे और टहनियां आदि उस ऊंचे स्थान के आसपास फैली हुई थी जहां योगिनी ने स्वयं को योग- अग्नि से स्वाहा किया था किया था।
आश्चर्यजनक रूप से स्थान की भस्म ज्यों की त्यों थी जब यह प्रलय थमी तब उस स्थान की रूपरेखा ही बदल गई थी मानो प्रकृति स्वयं उस स्थान की रक्षक बन गई हो । ऐसे ही समय की धारा बहती रही योगिनी के भस्म के स्थान पर एक अद्भुत चट्टान बन गई थी आसपास प्रकृति ने अपने इतने रंग निखारे मानो प्रकृति स्वयं ही उसे वहां पूज रही हो। उस स्थान पर गिद्ध आधी पक्षियों का भी निवास था के स्थान के ऊपर कोई पक्षी नहीं उड़ा करता था आसपास के वृक्षों की टहनियां वहां तक आती थी और अपने अद्भुत पुष्पों से मानो स्थान का श्रृंगार कर रही हो।
गुरुदेव ने वहां भी योगिनी का स्थान सुरक्षित कर दिया था उस पवित्र स्थान के नीचे भयानक जानवर अजगर, चीते आदि का वास था उस पहाड़ी नाले में भयानक सर्प आदि थे। वर्षों, दशकों , सहस्त्र वर्षों के बाद भी स्थान कोई भी मनुष्य नहीं पहुंच पाया था।
योगिनी का रूप उस चट्टान ने ले लिया था वह उसके तप की भांति अचल , अडिग वहीं विराजित थी।
समय की आकाशगंगा विधि अनुसार बहती रही
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यह 2020 था के ठीक उस पहाड़ी के नीचे नीचे एक साया भागते भागते पहुंच गया था यह और कोई नहीं मेजर अर्जुन पाकिस्तानी कैंप से बचकर दुश्मनों की आंखों में धूल झोंक कर देश के महत्वपूर्ण दस्तावेज छुपा कर भाग रहे थे उनके पीछे पाकिस्तानी कमांडो लगे थे हालांकि मेजर अर्जुन स्वयं एक कमांडो थे घने जंगलों में जीना ट्रेनिंग का हिस्सा था पर दुश्मनों के हेलीकॉप्टर चक्कर काट रहे थे और नीचे कमांडो के दस्ते से शिकारी कुत्तों के साथ नहीं टेक्नोलॉजी की बंदूकों के साथ उन्हें ढूंढ रहे थे।
मेजर अर्जुन की वर्दी कई जगह से फट चुकी थी ऊंची जगहों से छलांग लगाने से हाथ की नाला बन गया ,पहाड़ की वह चोटी ऊंचे से घिरी थी
कुछ वृक्ष तो इतने ऊंचे थे कि उनके तने पहाड़ी के नीचे और टहनियां आदि उस ऊंचे स्थान के आसपास फैली हुई थी जहां योगिनी ने स्वयं को योग- अग्नि से स्वाहा किया था किया था। आश्चर्यजनक रूप से स्थान की भस्म ज्यों की त्यों थी जब यह प्रलय थमी तब उस स्थान की रूपरेखा ही बदल गई थी मानो प्रकृति स्वयं उस स्थान की रक्षक बन गई हो ।
में भी शायद गहरी चोट लगी थी पर इस समय अपनी जान से ज्यादा उन्हें वह महत्वपूर्ण दस्तावेज संभालने थे। कुछ ही मीटर पीछे शिकारी कुत्तों की आवाज कानों तक पहुंच रही थी यह तीसरा दिन था बिना कुछ खाए पिए भागते रहने का…. जो मैप उनके पास था वैसी जानकारी निश्चित ही दुश्मनों के पास भी हो सकती थी। मैप के अनुसार उन्हें बाई ओर पहाड़ी से चक्कर काटकर नदी तक पहुंचना था।
पर उस तरफ भी दुश्मनों का दस्ता पहुंच चुका था यह निर्णय का क्षण था. .. अर्जुन ने आंख बंद करके एक गहरी सांस ली कुछ क्षण सोच कर उन्होंने रास्ता बदलने की सोची उनकी नजर ऊपर की तरफ गई जहां घने जंगलों और अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था.. इस जगह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी अगर उन्हें नहीं थी तो दुश्मनों को भी नहीं होगी यह सोचकर उन्होंने ऊपर की तरफ बढ़ना शुरू किया शिकारी कुत्तों की आवाज धीरे धीरे पास आती जा रही थी