डॉ विनीता अवस्थी। अभी तक आपने पढ़ा की प्राचीन काल में योगिनी नामक एक स्त्री योद्धा बहुत वीरता से शत्रुओं से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होती है या स्वयं को अपनी योग विद्या से स्वयं भस्म कर लेती है वह स्थान अत्यंत रहस्यमई बन जाता है। और कोई अमूल्य धरोहर अपने गुरु जी के पास पहुंचाने में सफल होती है। कई 100 सालों बाद उसी स्थान पर भारतीय सेना का एक अफसर मेजर अर्जुन अपने मिशन पर बचते हुए अचानक उस स्थान पर पहुंच जाता है। दैवीय शक्तियां ही उसे बचा पाती हैं।
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मेजर अर्जुन की जब आंख खुली तब उन्होंने स्वयं को अस्पताल में पाया उन्होंने बोलने का प्रयास किया पर दवाओं के असर के कारण वह बोल नहीं पाए साथ खड़ी नर्स ने उन्हें देखा वह पास आ गई उसने सुनने की कोशिश करी मेजर अर्जुन बेहोशी में “डॉक्यूमेंट” बार-बार यही दोहरा रहे थे नर्स ने फौरन डॉक्टर को बुलाया उसने आते ही उन्हें एक इंजेक्शन दे दिया जिससे वह फिर गहरी नींद में सो गए।
अगले दिन जब उनकी आंख खुली अपने सामने एक अनजान व्यक्ति को देखकर वह असमंजस में पड़ गए देखने में यह एक लंबे चौड़े व्यक्तित्व का स्वामी और रोबदार आवाज मैं बोले अब
“कैसे हो मेजर”। “आई एम फाइन सर ” मेजर अर्जुन ने जवाब दिया। “ठीक हो जाओ जल्दी तुम्हारे पास सिर्फ 2 महीने हैं ठीक होने को”।
अर्जुन ने उन्हें प्रश्नवाचक नजरों से देखा मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा मैं सीक्रेट एजेंसी से हूं अर्जुन ने अविश्वास से देखा तो उसी समय उसके सीनियर ऑफिसर ने कमरे के अंदर आते हुए द बंद करते हुए बोला हां अर्जुन यह ठीक कह रहे हैं। 2 महीने बाद तुम्हें इजिप्ट( मिस्र) जाना होगा जिन लोगों को तुम पहचानते हो उन्हें हम इसे कोई नहीं जानता या फिर वो है जो आसानी से दुश्मन की पहचान में आ सकते हैं। मुझे तुम पर बहुत गर्व है तुम्हें चुना गया है जिस सफलता से तुमने इस मिशन को अंजाम दिया उसी को देख कर यह फैसला लिया गया है।अब जल्दी ठीक हो जाओ मुस्कुराते हुए मेजर अर्जुन के सीनियर अधिकारी कर्नल चौहान ने बोला। “जी सर” अर्जुन सिर्फ इतना ही बोल पाया। बाकी की डिटेल्स तुम्हें मेजर नायर दे देंगे। यह अर्जुन के ही दोस्त था। बिना उसके उत्तर का तक इंतजार किए हुए दोनों कमरे से निकल गए उसी समय एक लंबा फुर्तीला सैन्य अधिकारी कमरे में दाखिल होता है और मजाक में बोलता है “अरे तुम फिर बच गए”।
हंसते हुए दोनों हाथ मिलाते हैं कुछ औपचारिक बातों के बाद वह मेजर अर्जुन को कुछ खास पेपर दिखाकर टॉप पर बताने लगते हैं। ठीक 3 महीने बाद मिस्र के असवान नाम के शहर में एक बहुत प्राचीन लाइब्रेरी में एक बुजुर्ग किताबों में सर दिए बैठे थे। अचानक देखने में वह कुछ सनकी लगते थे उनके चेहरे को देखकर लगता था वह किसी गहरी खोज में है जो शीघ्र ही पूरी होने वाली है दो बड़ी-बड़ी किताबों के बीच वह कुछ ढूंढ कर अपनी नोटबुक में किसी प्राचीन सांकेतिक भाषा के शब्द लिखते जा रहे थे। एक किताब के पन्ने पलटने पर वह लगभग पागलों की तरह चिल्ला पड़े” यह नहीं हो सकता” लाइब्रेरियन दौड़ते हुए उनके पास आया। और अरबी में बोला” क्या हुआ जनाब”।
बुजुर्ग व्यक्ति ने गुस्से में जवाब दिया किताब का एक पेज मिसिंग है। लाइब्रेरियन ने कहा के बहुत पुरानी किताब है प्रोफेसर वकार 3o- 40 साल से इन्हें निकाला नहीं गया है।
बुजुर्ग व्यक्ति प्रोफ़ेसर वकार के नाम से जाने जाते थे अचानक शांत हो गए और लाइब्रेरियन बोले “अरे तुम जाओ” उसके जाते ही उन्होंने खड़े होकर ऊपर की तरफ नजर डाली सामने की दीवार पर पुस्तकों की ऊंची रैक थी।
वह खड़े होकर एक किताब को निकालने की कोशिश कर रहे थे जोकि बहुत भारी थी अचानक उनके हाथ से किताब छूटती कि किसी मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया । प्रोफेसर ने पीछे मुड़कर देखा उनके मुंह से निकल गया” अरे रियाज तुम” कभी-कभी तुम मुझे डरा देते हो जिन्नो की तरह कहीं पर भी आ जाते हो। “आपके के कमरे पर गया ताला मिला लिया कि आप यहीं पर होंगे।” वह शख्स बोला प्रोफेसर ने पूछा पर यह कैसे पता लगाया कि मैं लाइब्रेरी के इस हिस्से में हूंगा।
जाहिर है आप अपनी उम्र ही तरह किसी पुरानी जगह पर ही मिलेंगे रियाज ने चारों तरफ बारीकी से देखते हुए बोला। प्रोफेसर के झुर्रियों दार चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। “बदमाश कहीं का” उन्होंने कहा “अब यह किताब पकड़ और उधर रख दे” “यह क्या कीड़े मकोड़े बने हैं इस पर इतनी धूल है कि मुझे एलर्जी हो जाएगी” रियाज बोला।
प्रोफेसर ने हंसते हुए कहा” अरे तुम जैसे हट्टे कट्टे नौजवान का तो तूफान भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता”..तुझे पुलिस या आर्मी में होना चाहिए था कहां पुरानी किताबों की दुनिया में आ गया। अब जल्दी चलिए प्रोफेसर साहब लाइब्रेरी बंद होने का टाइम हो गया है। रियाज मे किताबें समेटते हुए बोला और मुझे बहुत भूख भी लगी है। प्रोफेसर ने कहा सारी किताबें संभाल कर गाड़ी में रख दो। कुछ समय बाद वह दोनों कार में एक खाली सड़क पर जा रहे थे।
रियास बोला “आप की पुरानी हवेली भी आप ही की तरह है”। कब गिर पड़े पता पता भी ना चले। प्रोफेसर साहब हंसते हुए बोले” ऐसा नहीं है कुछ नायाब चीजें टाइमलेस होती हैं जैसे कि यह किताबें।” “अच्छा क्या खजाना है इनमें”रियाज़ बेपरवाही से बोला। “उससे भी कीमती चीज” प्रोफेसर बोले फिर अगले पल ही संभलकर कर बोले “तुझे क्या करना है जानकर” “मुझे इन्हें रद्दी में बेचना है” रियास झल्लाते हुए बोला।
“अगर मेरी मां की आखिरी ख्वाहिश ना होती कि मै प्रोफेसर बनू तो मैं कभी ये काम ना करता” प्रोफेसर शांत होकर बाहर देखने लगे रियाज गाड़ी हवेली के गेट के अंदर मोड दी।
सामने करीबन 300 साल पुरानी एक पुरानी इमारत थी।
लगभग 500 साल पहले गंगोत्री के निकट एक आश्रम में एक महात्मा जी ध्यान मग्न बैठे थे। उनका आश्रम बाकी आश्रमों से कुछ दूरी पर था उनका एक शिष्य किसी दूर देश से आया हुआ लगता था। उसकी लंबी कद काठी और बोलने के कारण वह दूर से ही नजर आता था।
महात्मा जी ने उससे बोला “आनंदकर तुम्हें अपना नाम कैसे लगा”। अशरफ जो अब आनंदकर था मुस्कुराते हुए बोला महात्मा जी नाम ही नहीं मेरा तो पूरा जीवन ही बदल गया। ज्ञान की जिस खोज में में है आया था वह तो मिला ही अभी तो आपने मेरा जीवन ही बदल दिया। गंभीर होकर बोला पर आनंद कर अब तुम्हें यहां से जाना होगा तुम्हारा समय यहां इतना ही था। जो भी तुमने यहां से सीखा उन्हें किताबों में समेट कर संभाल कर रखना।
पर यह किसे देना होगा महात्मा जी आनंद करने पूछा। लेने वाला इसे खुद ढूंढता हुआ तुम्हारे पास आएगा हो सकता है तुम्हारे जीवन में नहीं उससे कई सालों बाद पर आएगा अवश्य। विधि का विधान ईश्वर के अलावा कोई नहीं जान सकता आनंद कर। “जी महात्मा जी” इतना कहकर आनंद कर अपनी कुटिया में आ गया। और अपनी जरूरी किताबें समेटने लगा जो कुछ संस्कृत और अरबी और फारसी में थी।
उसने अपने किताबे समेटी ही थी की एक शिष्य दौड़ता हुआ आया और बोला गुरु जी की आज्ञा है तुम्हें अभी निकलना होगा अपना सामान बांध लो आनंदकर ने बोला मैं गुरु जी से मिल तो आऊं शिष्य ने कहा उनकी आज्ञा नहीं है साथ में ही में यह किताब भी दी है। आनंदकर ने खोल के देखा उसमें एक पत्र भी था।
वह सामान बांध के निकला और उसने दूर से ही गुरु जी की कुटिया को प्रणाम किया पास में ही एक छोटा सा मंदिर था कई हजार वर्ष पुराना “योगिनी मंदिर “उसमें किसी भी पुरुषों का जाना मना था। उसे भी उसने दूर से प्रणाम किया। अभी वह कुछ ही कदम गया था साथ ही पहाड़ी के ऊपर से रास्ता जाता था कि उसने देखा तेज बहाव ने गुरु जी की कुटिया बह गई वह हतप्रभ था और वही खड़ा रह गया कुछ ही दूर पर देखा कुछ शिष्य ऊपर की तरफ भागते आ रहे थे कुछ लोग नीचे की तरफ जा रहे थे वह हिम्मत करके कुछ कदम नीचे उतरा तो उस किसी ने बताया गुरुजी के आश्रम का वह भाग पूरा का पूरा गंगोत्री में बह गया उन्होंने जल समाधि ले ली उससे पहले उन्होंने सभी शिष्यों को जाने के लिए कह दिया था।
आनंदकर ने वहां की मिट्टी उठाई प्रणाम करके चल दिया उसे अफगानिस्तान के रास्ते जाना था कुछ दूर जाने पर उसने वही पत्र खोला वह एक सांकेतिक प्राचीन भाषा में था जो केवल वही समझ सकता था। कुछ महीनों बाद वह अफगानिस्तान में था वहां के पुराने ध्वस्त मंदिरों में कुछ काम व लिपियां तैयार करके वह चल पड़ा मिस्र की तरफ असवान शहर।
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