Archana Kumari. दिल्ली दंगे के दौरान कथित तौर पर गोली चलाने के दो आरोपियों को अदालत ने जमानत दे दी। दोनों आरोपियों को पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली के मौजपुर इलाके में एक व्यक्ति को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
इस दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, सौ संदेह एक प्रमाण नहीं बन सकता। दरअसल, इस मामले में फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने रूसी लेखक फ्योडोर दोस्तोवस्की की प्रसिद्ध पंक्तियां “क्राइम एंड पनिशमेंट” का हवाला दिया। उन्होंने कहा ‘सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, सौ संदेह एक प्रमाण नहीं बन सकता है।
इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने दोनों आरोपियों को हत्या के प्रयास और शस्त्र अधिनियम के आरोप से बरी कर दिया। अदालत का यह फैसला दिल्ली पुलिस को दंगे को लेकर गंभीरता को भी दर्शाती है कि किस तरह पुलिस जांच करवाई और सबूत इकट्ठा करती है।
पुलिस सूत्रों की माने तो बरी किए गए दोनों आरोपी बाबू और इमरान पर पिछले साल 25 फरवरी को मौजपुर में हुए दंगों में हिस्सा लेने का आरोप लगाया गया था। दंगों के दौरान दोनों पर एक प्राथमिकी में गोली चलाने का आरोप था।
लेकिन अदालत ने पाया कि कथित पीड़ित ने एक फर्जी पता और मोबाइल नंबर दिया था और उसने किसी भी पुलिस अधिकारी को कभी कोई बयान नहीं दिया था। अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘जब तक पुलिस अस्पताल पहुंची, कथित पीड़ित राहुल गायब हो गया था।
इसके बाद राहुल ने कोई प्रारंभिक बयान दिया और फिर अचानक गायब हो गया, पुलिस ने राहुल को कभी नहीं देखा। किसके द्वारा और कहां गोली मारी गई । पुलिस के पास इसका कोई सबूत नहीं है और तो और गोली चलने को लेकर भी कोई सबूत नहीं मिला है।
अदालत का कहना था कि इस मामले में पुलिस के पास सबूत के रूप में सिपाही पुष्कर हैं, लेकिन उसने भी गोली चलाने या गोली लगने वाले को नहीं देखा है। इस पर अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि दोनों दंगाई भीड़ का हिस्सा थे और संदेह है कि दोनों फायरिंग के लिए जम्मेदार थे।
लेकिन अदालत का कहना है कि चार्जशीट में हत्या के प्रयास या आर्म्स एक्ट के कोई सबूत नहीं दिए गए। इसके बाद अदालत ने बाबू और इमरान को धारा 307 (हत्या का प्रयास) और शस्त्र अधिनियम के तहत अवैध हथियार रखने के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन दंगा के आरोपों के लिए दोनों को मुकदमे का अभी सामना करना पड़ेगा। अदालत का कहना है बाबू और इमरान पर लगे दो आरोपों को हटाया जाता है ।
अभियोजक ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि आरोपियों को 25 फरवरी, 2020 को हथियारों से लैस होकर गैरकानूनी समूह का हिस्सा बनने और हिंसा में हिस्सा लेने के लिए आरोपी बनाते हुए दोनों पर धारा 143, 144, 147, 148, 149, 307 के तहत चार्ज लगाया जाना चाहिए लेकिन जज इस दलील से संतुष्ट नहीं थे ।
उन्होंने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का कहना है कि आरोप लगाने वालों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए कुछ सामग्री होनी चाहिए, कुछ सबूत होने चाहिए। केवल शक के आधार पर सबूत को आकार नहीं दिया जा सकता है और आरोप पत्र में धारा 307 और आर्म्स एक्ट के तहत उन्हें आरोपी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं दर्शाया गया।