जीने की राह छोड़ दी तूने !
दुनिया भर के देश हैं जितने , अपने सिटीजन के रक्षक हैं ;
सबसे उलट देश है भारत , हिंदू का ही भक्षक है ।
नहीं करे हिंदू की रक्षा , जो भी चाहे जब भी मारे ;
राज्य नहीं करता सुनवाई , हिंदू हैं आफत के मारे ।
म्लेच्छों से सरकारें डरतीं , उनसे बचकर रहती हैं ;
मंदिर का धन लूट-लूट कर , उनको जजिया देती हैं ।
हिंदू-नेताओं के अंतर्मन में , भरी गुलामी म्लेच्छों की ;
हिंदू ! की आजादी फर्जी , है आजादी म्लेच्छों की ।
गंदी – शिक्षा हिंदू को देते , पढ़ा रहे झूठा – इतिहास ;
हिंदू ! की पहचान भुला दी , उनकी बुद्धि चरती घास ।
जब हिंदू ही नहीं सोचता , कोई अपने भले की बात ;
तब क्यों चिंता करेगा नेता ? उल्टे मारेगा उसे ही लात ।
इतना लतिहड़ हो चुका है हिंदू , आसानी से गला कटाता ;
कोई शोर कहीं न होता , घर – परिवार ही केवल रोता ।
हिंदू ही हिंदू का दुश्मन , ईर्ष्या – द्वेष की बढी़ भावना ;
आपस में जब नहीं एकता , कैसे हो दुश्मन का सामना ?
देश – भक्ति का पूर्ण – अभाव , देश बिक रहा है बेभाव ;
नब्बे – प्रतिशत नेता – अफसर , लगा रहे हैं अपना भाव ।
राजनीति नीलाम हो चुकी , है पद – पैसे की झंकार ;
दुश्मन घुस कर मार रहा है , अंदर तक उसकी ललकार ।
कितनी भूमि चीन ने छीनी ? भारत का नेता डरपोक ;
कायर , कमजोर , नपुंसक नेता , डर के मारे मारे पोंक ।
डर के मारे थर-थर कांपे , यहॉं – वहॉं रोता रहता ;
जाने कैसी कौम है हिंदू ? उसके जाल में फंसता रहता ।
जीने की राह छोड़ दी तूने ! मृत्यु – मार्ग पर चलता है ;
ईश्वर ही मालिक हिंदू का , जो खुद ही जहर को पीता है ।
जहर-महोत्सव मना रहा है , अमृत-महोत्सव फर्जी नाम ;
लड्डू में गौ-मांस की चर्बी , हो रहा धर्म का काम-तमाम ।
धर्म बिना हिंदू न बचेगा , बाद में दुनिया भी मिट जायेगी ;
बिन हिंदू सब म्लेच्छ लड़ेंगे , पूरी मानवता मिट जायेगी ।
एटम – बमों की मार पड़ेगी , पूरी – धरती जल जायेगी ;
धर्म नष्ट करने वालों की , इसी तरह शामत आयेगी ।
मानवता की जिम्मेदारी , केवल हिंदू के कंधों पर है ;
पर जितने हिंदू – नेता हैं , उनकी नज़रें धंधों पर है ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो , वरना ये दुनिया मिट जायेगी ;
अच्छी-सरकार बनाओ हिंदू ! तब ही दुनिया बच पायेगी ।