मैंने अपने बेटे को विमान से पढ़ने के लिए क्या भेजा, देख रहा हूं कि कुछ लोग अपने-अपने अनुभव लिख कर मुझे सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि भैया बेटे को फौलाद बनाइए। प्लेन से नहीं, ट्रेन में यात्रा कराइए।
भाई आप अपने अनुभव की तुलना उस बच्चे के बाप से कीजिए, क्योंकि आप हमारी पीढ़ी में हैं, मेरा बेटा नहीं। उसके बाप ने आप सब से कहीं अधिक संघर्ष किया है। आपमें से शायद ही कोई होगा जो केवल तीन साल की उम्र से हॉस्टल में रहने गया हो।
सनातन शास्त्र का ज्ञान है नहीं, लेकिन फिलॉसोफर बनने की सबको पड़ी है। जो संघर्ष मैंने किया, वही यदि मेरे बच्चे करें तो इसका इतना ही तात्पर्य है कि एक पूरी पीढ़ी ने प्रगति नहीं की। पूरी पीढ़ी ठहर गयी है। शास्त्र नदी बनने को कहते हैं, पत्थर की तरह ठहरने को नहीं।
शास्त्र यही कहते हैं कि आपका अनुभव अगली पीढ़ी को मिले। उद्दालक और श्वेतकेतु के बीच उपनिषद का संवाद पढ़ लीजिए, या महाभारत में भीष्म-युधिष्ठिर संवाद पढ़ लीजिए, या योग वशिष्ठ में राम और वशिष्ठ का संवाद पढ़ लीजिए।
अग्नि में जिस पहले व्यक्ति ने हाथ जलाया, वही अनुभव आज तक आप जी रहे हैं, न कि हर किसी को आग में हाथ डालने की जरुरत है। अग्नि का अलग-अलग उपयोग नयी पीढ़ी ने सीखा, न कि फिर से हाथ जलाकर, ‘अग्नि जलाती है’ का उदघोष करती घूमती फिरी।
पुत्र के लिए पिता की खींची लाइन से बड़ी लाइन खींचने का आदर्श शास्त्र देते हैं न कि पिता के प्रस्थान बिंदु से पुनः उसे आरंभ करने को कहते हैं।
पानी और पत्थर में अंतर है। नयी पीढ़ी को पानी बनने दीजिए, न कि अपने संघर्ष का बार-बार बखान करते हुए उसे पत्थर की तरह जड़ बनने की नसीहत दीजिए। आप अनचाहे रूप से ही सही, लेकिन नयी पीढ़ी पर खुद के विचार को थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि जरूरत है कि उसकी यात्रा में आप अपने अनुभव का कंधा लगाएं।
धीरू भाई अंबानी ने जो संघर्ष किया, मुकेश अंबानी का संघर्ष उससे आगे का है, और उसकी अगली पीढ़ी का संघर्ष उससे भी आगे का है। आप कह रहे हैं कि मुकेश और उसके बच्चों को भी पहले पेट्रोल पंप पर खड़े होकर पेट्रोल बेचना चाहिए, फिर कंपनी में आकर काम करना चाहिए! महोदय, समय की गति आगे की ओर है, पीछे की ओर नहीं!
संघर्ष अग्रगामी हो, पश्चगामी नहीं। पश्चगामी संघर्ष जीवन भर आपको थकाएगी और गरीबी से आपको और आपकी अगली पीढ़ी को कभी बाहर नहीं निकलने देगी।
आप सब पश्चगामी होने की वकालत कर रहे हैं। हर समाज, देश, बड़ी कंपनी या प्रतिष्ठान को नयी पीढ़ी ने पुरानी पीढ़ी के संघर्ष और अनुभव से सीख कर उस बिंदु से आगे बढ़ाया है, जहां पर उसके पूर्वजों ने उसे छोड़ा था। उसे फिर से आरंभिक बिंदु से शुरुआत करने की जरूरत नहीं है!
कर्म, भाग्य और समय से सबकी नियति तय होती है। माफ कीजिए, आप सब अपनी संतान के जीवन में स्वयं समय की भूमिका लेना चाहते हैं, जो आप कभी नहीं ले सकते! ईश्वर बनने की कोशिश मत कीजिए, पिता हैं, पिता ही रहिए! धन्यवाद!