सुप्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार नामवर सिंह कहते हैं कि तुलसीदास के पांच सौ साल बाद किसी काशी वासी ने अयोध्या पर इस स्तर की पुस्तक की रचना की है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ अकेली ऐसी पुस्तक है जो एक ऐसे पत्रकार ने लिखी है जो पल-पल उस घटना का गवाह रहा है। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा की पुस्तक युद्ध में अयोध्या की समीक्षा।
किसी पांडुलिपि को देखते ही नामवर सिंह सरीखे उच्च कोटि के विद्वान का यह कहना कि राम और जन्मभूमि पर ऐसी प्रमाणिक पुस्तक पहले कभी नहीं आई, इसे देखकर मेरा जीवन सार्थक हो गया, अपने आप में उस किताब के कालजयी होने का प्रमाणपत्र है। नामवर सिंह ने यह उदगार किसी और किताब के लिए नहीं बल्कि हेमंत शर्मा की लिखी किताब “युद्ध में अयोध्या” की पांडुलिपि पर व्यक्त किया था। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि राम भले ही अयोध्या में जन्मे हों लेकिन उन्हें विश्वव्यापी बनाने से लेकर जनमानस तक पहुंचाने का श्रेय तो ‘काशी’ को ही है। पहला श्रेय जहां काशीवासी तुलसीदास को रामचरित मानस रचने के लिए जाता है तो दूसरा श्रेय पांच सौ साल बाद “युद्ध में अयोध्या” लिखने वाले हेमंत शर्मा को।
मुख्य बिंदु
* वेद प्रताप वैदिक जैसे विद्वान ने प्रामाणिक शोध, ऐतिहासिक दस्तावेज तथा सरकारी रिपोर्ट से सुसज्जित पहली किताब बताया है
* डॉ. नामवर सिंह ने कहा राम भले ही अयोध्या में जन्मे हों लेकिन उन्हें जनमानस तक पहुंचाने का श्रेय ‘काशी’ को ही जाता है
इस किताब के लेखक हेमंत शर्मा काशी के ही हैं। तभी तो नामवर जी ने कहा कि मंदिर बने न बने, यह मंदिर बनाने वाले जानें! लेकिन हेमंत शर्मा की यह पुस्तक का मंदिर अमर है। ऐसा मंदिर एक लेखक ही बना सकता है। जिस पांडुलिपि को नामवर सिंह ने कालजयी बताया है आज वह दो खंडों में पुस्तक का आकार ले चुकी है, और शीघ्र ही बाजार में उपलब्ध होने वाली है। हेमंत शर्मा की लिखी यह किताब दो खंडों में है। पहले खंड का नाम जहां “युद्ध में अयोध्या” है वहीं दूसरे खंड का नाम “अयोध्या का चश्मदीद” है। डॉ. नामवर सिंह ने जहां इसे प्रामाणिक ग्रंथ बताया है वहीं डॉ वेद प्रताप वैदिक ने इसे संदर्भ ग्रंथ बताया है।

हेमंत शर्मा की इसी पुस्तक “युद्ध में अयोध्या” को वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और विद्वान वेद प्रताप वैदिक ने भी अद्भुत बताया है। उन्होंने कहा है कि बाबरी विध्वंस और रामजन्म भूमि को लेकर किताबें तो कई आई हैं लेकिन इतने प्रामाणिक शोध, ऐतिहासिक दस्तावेज, सरकारी रिपोर्ट तथा अदालत के फैसले से सुसज्जित किताब नहीं आई हैं, जो हेमंत शर्मा ने ‘युद्ध में अयोध्या’ और ‘अयोध्या का चश्मदीद’ लिखी हैं। वैदिक ने कहा है कि इस किताब की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें एक पत्रकार की खूबियां हैं यानि आंखों देखा हाल। ये खूबियां अन्य किताबों में नहीं देखने को मिलेंगी। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब में वही सब लिखा है जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, एक प्रकार से कह सकते हैं कि वर्षों बाद आपको इस किताब के माध्यम से अयोध्या में घटी घटनाओं का जीवंत चित्रण मिलेगा। कहने का मतलब शर्मा ने अपनी किताब के माध्यम से घटना की सजीवता को प्रकट करने का प्रयास किया है।
वेद प्रताप वैदिक ने इस किताब के बारे में बताते हुए कहा है कि हेमंत जी ने यह किताब इस शैली में लिखी है कि आपको पढ़ते हुए लगेगा कि जैसे फिल्म देख रहे हैं। क्योंकि उन्होंने हरेक घटना का सजीव वर्णन किया है। इसलिए भी यह किताब अन्य किताबों के मुकाबले अधिक रोचक, अधिक पठनीय तथा अधिक लोगों को समझाने वाली है। यह किताब बाजार में आते ही अयोध्या के अतीत से लेकर वर्तमान तक के बारे में जानने और समझने या दृष्टांत देने के लिए संदर्भ ग्रंथ का रूप अख्तियार कर लेगी।
URL: ‘Yuddha Mein Ayodhya’, a book written on Ayodhya after 500 years of Tulsidas.
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