सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के मुहाने पर खड़े जस्टिस चेलमेश्वर और कुरियन जोसेफ जैसे जज आज न्यायापालिका की प्रतिष्ठा का हनन करने पर तुले है। जस्टिस चेलमेश्वर ने जिस मास्टर ऑफ रोस्टर मामले की सुनवाई करने से आज इनकार किया है, दरअसल उस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बुधवार को ही आ गया था। सुप्रीम कोर्ट मास्टर ऑफ रोस्टर मामले में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की जनहित याचिका पहले ही खारिज कर चुका है। सरकार तब कठघरे में खड़ी होती है जब पूरी न्यायपालिका उसकी मंशा के खिलाफ सवाल उठाती।
लेकिन आज हो क्या रहा है? सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को टारगेट किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु
* ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ मामले में शांति भूषण की दायर जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट कर चुका है खारिज
* सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विभिन बेंचों को केस आवंटित करना चीफ जस्टिस का है विशेषाधिकार
* वरिष्ठ जज चेलमेश्वर बेवजह के बयान देकर न्यायपालिका पर उठा रहे हैं सवाल
याद हो हो कि जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी तब उन्होंने अपना हित साधने के लिए कई वरिष्ठ जजों को दरकिनार कर अपेक्षाकृत कनिष्ठ जज को मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा दिया था। इंदिरा के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ जजों ने इस्तीफा दे दिया था। इस सरकार में अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ भी नहीं। अगर इन्हें अपने ही वरिष्ठ व मुख्य न्यायाधीश से कोई परेशानी है तो इस्तीफा देकर बाहर आकर न्याय की लड़ाई लड़ सकते थे। अभी भी मौका था मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ शांति भूषण की मास्टर ऑफ रोस्टर मामले की याचिका पर सुनवाई कर उचित फैसला कर जाते।
मास्टर ऑफ रोस्टर पर दायर जनहित याचिका हो चुका है खारिज!
सुप्रीम कोर्ट पहले ही मास्टर ऑफ रोस्टर मामले में चीफ जस्टिस के अधिकार को सही ठहरा चुका है। समकक्षों में प्रथम होने के नाते चीफ जस्टिस को ही विभिन्न बेंचों को केस आवंटित करने का अधिकार है। इस मामले में पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने चीफ जस्टिस के ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के रूप में केस आवंटित करने के दिशा निर्देश प्रतिपादित करने के लिए दायर जनहित याचिका खारजि कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ही अपने एक वर्डिक्ट में कहा था कि चीफ जस्टिस ही मास्टर पर रोस्टर हैं। इस नाते उन्हें केस आवंटन का विशेषाधिका प्राप्त है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की खंडपीठ ने जनहित याचिका खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी थी।
चीफ जस्टिस के खिलाफ आवाज उठाने वाले जजों की मंशा पर सवाल!
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ हमले हो या सरकार की नीयत पर सवाल, सवाल उठाने वाले जजों की मंशा ही ठीक नहीं है। नहीं तो सुनवाई से पहले आदेश के प्रति आशंका जताना कितना उचित है। सरकार पर तंज कसने से पहले न्यायमूर्ति चेलमेश्वर को रिटायर्ड चीफ जस्टिस के इतिहास को देखना चाहिए। रिटायर चीफ जस्टिस को मिले पद के आंकड़े बता देंगे कि उनका इतिहास क्या रहा है। क्या अपने तंज से उन्होंने उन सभी रिटायर्ड चीफ जस्टिस पर सवाल खड़ा कर उनकी अवमानना नहीं की है?
20 साल से न्यायिक व्यवस्था के साझीदार हैं चेलमेश्वर!
सुप्रिम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति चेलमेश्वर जो सवाल आज उठा रहे है ये तो अनवरत है। अब सवाल उठता है कि वे आज क्यों उठा रहे हैं जब उनके रियायर होने में महज दो महीने ही बचे हैं, और देश 2019 लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ चुका है। सवाल उठाने की टाइमिंग सवाल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में तो उनपर भी सवाल उठाया जा सकता है कि कहीं विपक्ष के हाथ का खिलौना तो नहीं बन गए…
फिर क्यों उठा यह मामला?
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने आज चीफ जस्टिस के मास्टर ऑफ रोस्टर के खिलाफ शांति भूषण की दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। इनकार करना जितना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इनकार करने का कारण बताया। उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह नहीं चाहते कि इस मामले में उनका फैसला 24 घंटे के अंदर ही बदल दिया जाए। साथ ही केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा “मैं इसलिए इस मामले की सुनवाई नहीं करता चाहता हूं क्योंकि रिटायर होने के बाद मैं कोई पद पाना चाहता हूं”।
दरअसल शांति भूषण ने एक याचिका दायर कर चीफ जस्टिस के मास्टर ऑफ रोस्टर को चुनौती दी है। इसी याचिका को शांति भूषम के बेटे व वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जस्टिस चेलमेश्वर के सामने मेंशन कर कहा कि इस केस का आवंटन कॉलेजियम के जजों को करना चाहिए। चूंकि यह मामला चीफ जस्टिस से जुड़ा है इसलिए उनके अधीन सुनवाई उचित नहीं होगा। इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों को करनी चाहिए।
ये क्या बोल गए जस्टिस चेलमेश्वर?
शांति भूषण की याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार करते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि अब जब मेरे रिटायर होने में सिर्फ दो महीने बचे हैं ऐसे में वह नहीं चाहते कि उनका कोई फासला 24 घंटे में बदल दिए जाएं। यहां तक तो ठीक है लेकिन आखिर जस्टिस चेलमेश्र ने ये क्यों कहा कि यह देश का मसला है इस पर देश अपना रास्ता खुद तय करेगा। क्या उनका इशारा 2019 में होने वाले चुनाव की ओर तो नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने शांति भूषण की याचिका पर सुनवाई नहीं करने के लिए खेद भी जताया।
जस्टिस कुरियन को खतरे में दिख रहा SC का अस्तित्व!
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर वरिष्ठ जज जस्टिस कुरियन ने सुप्रीम कोर्ट के अस्तित्व पर खतरे अंदेशा जताया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि एक वरिष्ठ वकील और एक जज की नियुक्ति की सिफारश कॉलेजियम ने कर रखी है। सिफारिश के तीन महीने बाद भी सरकार चुप्पी साध रखी है। अगर इस संदर्भ में जवाब नहीं दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
दरअसल कॉलेजियम ने तीन महीने पहले उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ तथा वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में करने की सिफारिश की थी। तीन महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी है। इसी मामले पर जस्टिस कोरियन चीफ जस्टिस से स्वत: संज्ञान लने का आग्रह किया है।
URL: Why are the judges who retire from SC abolish the judiciary’s reputation?
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