रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम भारत के उन साहित्यकारों में शामिल हैं जिनके जीवन के हर पहलू पर कुछ न कुछ सोध अथवा लिखा न गया हो। टेगौर की मौत और बीमारी से जुडी बातों पर हमेशा रहस्य ही बना रहा ! बहुत कम लोग ही उनकी मृत्यु के बारे में जानते हैं! माना जाता है १९४० के दशक में टैगोर प्रोस्टेट कैंसर की चपेट में आ गए थे।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार टैगौर के पैतृक आवास की देखरेख करने वाले रवींद्र भारती विश्वविद्यालय ने उन घटनाओं और कारणों की जाँच करने का फैसला किया है जिसके कारण उनकी मौत हुई। नोबेल पुरस्कार प्राप्त रवींद्र नाथ टैगोर की कृतियों और उनकी लेखनी से लोग इतने मंत्र मुग्ध रहे कि उनकी मौत के रहस्य के बारे में सोचने और बात करने के लिए समय ही नहीं था या यों कह लीजिये अपनी रचनाओं से अमर हो चुके टैगोर को लोगों ने सदा जीवित ही माना आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं? अपनी कलम से कालजयी रचना लिखने वाले रवींद्र नाथ आज भी अपनी रचनाओं में जिन्दा हैं।
रवींद्र भारतीय विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुसार रवींद्र नाथ की मौत के बारे में कुछ दस्तावेज भी हैं जो यह इशारा करते हैं कि शायद उनकी मौत का कारण प्रोस्टेट कैंसर ही था. बताया जाता है सितंबर १९४० में टैगौर ने एकाएक पेट दर्द की शिकायत की थी जांच के दौरान उनके मूत्राशय में संक्रमण पाया गया जिससे उनका यूरीन डिस्चार्ज पूरी तरह से बंद हो गया था, इस दौरान टैगोर का आयुर्वेदिक उपचार उनके पैतृक निवास कोलकता के ठाकुर बाड़ी में चलता रहा। हालांकि चिकित्सकों ने उन्हें अंग्रेजी दवाइयों लेने की सलाह दी किन्तु रवीन्द्रनाथ ने इससे इंकार कर दिया।
धीरे-धीरे उनकी तबियत और बिगड़ने लगी तो उन्हें शांतिनिकेतन ले जाया गया जहाँ इलाज के दौरान पता चला कि उन्हें यूरीमिया और अन्य बीमारियों ने घेर लिया। ठाकुर बाड़ी में ही एक ऑपरेशन थियेटर बना कर उनकी सर्जरी हुई, डॉक्टर उनके प्रोस्टेट को तो नहीं निकल पाए. संभव है यही प्रोस्टेट कैंसर ही १९४१ में उनकी मृत्यु का कारण बना हो।
माना रवीन्द्रनाथ टैगोर चले गए, लेकिन जन-गण-मन के शब्दों में हमेशा हमारे बीच जीवित रहेंगे।