अर्चना कुमारी। मौत के दोषियों के लिए दर्द रहित मृत्यु की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 मई को सुनवाई करेगा। बताया जाता है कि मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक कमेटी बनाने का संकेत दिया ।
कोर्ट ने कहा है कि इस मामले एम्स समेत कुछ बडे अस्पतालों से साइंटिफिक डेटा की जरूरत होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमेटी को लेकर वो अगली सुनवाई में आदेश पारित करेगा। जनहित याचिका में फांसी के बजाय गोली मारने, इंजेक्शन लगाने या करंट लगने का सुझाव दिया गया है।
सूत्रों का दावा है कि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अक्टूबर 2017 का एक बहुत विस्तृत आदेश है। गरिमा से मृत्यु एक मौलिक अधिकार है। जब किसी आदमी को फाँसी दी जाती है, तो उस मौत में गरिमा आवश्यक है। एक दोषी जिसका जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी का दर्द नहीं सहना चाहिए। जब कोई व्यक्ति फांसी के लिए जाता है तो वह किस प्रक्रिया से गुजरता है, यह बेहद दर्द भरा है।
उसके शरीर को आधे घंटे के लिए फांसी पर लटका दिया जाता है जब तक कि डॉक्टर ये न कहे कि अब वो मर चुका है। यह क्रूरता है। दूसरे देशों में भी अब फांसी धीरे-धीरे छोड़ी जा रही है। तर्क दिया गया कि फांसी की जगह कुछ मानवीय और दर्द रहित मौत होनी चाहिए । मौत की सजा इस तरीके से दी जानी चाहिए जिसमें कम से कम दर्द हो और यातना से बचा जा सके।
बताया जाता है कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील ऋषि मल्होत्रा की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि जीवन की ही तरह मृत्यु भी सम्मानजनक होनी चाहिए। याचिकाकर्ता के मुताबिक फांसी की सजा दिए जाने में करीब 40 मिनट का समय लगता है, साथ ही एक दोषी को दी जाने वाली सजा-ए-मौत बेहद दर्दनाक घटना होती है और इस पर विचार करने की आवश्यकता है।