विपुल रेगे। ट्वीटर यानी X ने संकेत दिए हैं कि ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अधिक समय तक मुफ्त नहीं रहेगा। एक्स पर सभी यूज़र्स से शुल्क वसूलने की शुरुआत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी पैसा वसूलने का निर्मम आयडिया दे सकती है। जबकि संसार आर्थिक मंदी और महंगाई की प्रचंड मार झेल रहा है। कलियुग में ‘ताज़ी हवा’ बिकने का चलन तो पहले से ही शुरु हो चुका था और अब हम मुफ्त में ‘वैचारिक अभिव्यक्ति’ भी नहीं दे पाएंगे। विचार रखना हो तो पैसा दो नहीं तो निकलो यहाँ से वाला संदेश यूज़र्स को दे दिया गया है।
एक्स के मालिक एलोन मस्क ने इज़रायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ लाइव-स्ट्रीम की गई बातचीत में कहा कि प्लेटफॉर्म पर ‘बॉट्स’ की समस्या से निपटने के लिए एक ही तरीका दिखाई देता है कि सोशल नेटवर्क अब एक मुफ़्त साइट नहीं रह सकती है। इस पर आगे बढ़ने से पहले समझना होगा कि ‘बॉट्स’ आखिर क्या होते हैं ?
इंटरनेट पर मानवीय गतिविधियों की नकल करने के लिए एक सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन बनाई जाती है। इसे ‘बॉट ‘ कहा जाता है। ये इंटरनेट पर बहुत से मानव रहित कार्यों को अंजाम देता है। इसका उपयोग अच्छे और बुरे दोनों के लिए किया जा सकता है। अच्छे बॉट उपयोगी कार्य करते हैं, हालांकि, बुरे बॉट – जिन्हें मैलवेयर बॉट के रूप में भी जाना जाता है। ये जोखिम उठाते हैं और उनका उपयोग हैकिंग, स्पैमिंग, जासूसी, व्यवधान और सभी आकार की वेबसाइटों से समझौता करने के लिए किया जा सकता है। एक्स के मालिक ने कहा है कि बॉट्स की विशाल सेनाओं का मुकाबला करने का यही एकमात्र तरीका है।
एक्स के पास वर्तमान में 550 मिलियन मासिक उपयोगकर्ता हैं, जो हर दिन 100-200 मिलियन पोस्ट जेनरेट करते हैं। जाहिर है कि विश्व के साथ भारत में एक्स के पास अच्छी तादाद में यूज़र्स और उपभोक्ता हैं। 26.5 million भारतीय उपभोक्ताओं को ट्वीटर की ये वसूली परेशान कर सकती है। इन यूज़र्स में बहुत से ऐसे भी हैं, जो ट्वीटर के फीचर्स इस्तेमाल करने की फीस देते हैं। इनमे से एक फीचर अधिक शब्द संख्या प्रयोग करने की छूट है, जो मुफ्त के यूजर्स को नहीं दी जाती। अब एक्स उस लिमिटेड सेवा के पैसे वसूलने जा रहा है।
सोशल मीडिया पूर्ण रुपेण पेशेवर हो चुका है। अब तो यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से कमाई करने वाले भी जीएसटी और आयकर के घेरे में आ गए हैं। किसने सोचा था कि हवा, पानी और अब ‘विचार व्यक्त करने’ का भी पैसा देना होगा। सन 1997 में ऐसी नेटवर्किंग साइट की आवश्यकता महसूस हुई, जो लोगों के लिए दोस्त बनाने की सुविधा दे और लोग अपने विचार भी व्यक्त कर सके। तब सिक्सडिग्रीज़.कॉम ने जन्म लिया। ये संसार की सबसे पहली सोशल नेटवर्किंग वेब साइट थी। तबसे लेकर ऑरकुट और फिर फेसबुक तक ये मंच मुफ्त बने रहे थे।
विगत लगभग तीन दशकों की इस यात्रा में विश्व के लोगों ने दूसरे देशों के परिवेश के बारे में जाना, वहां की संस्कृतियों और खानपान के बारे में जाना तो इसमें सहयोगी सोशल मीडिया ही बना था। राजनीतिक विचारधारा को लेकर सबसे अधिक पैना संघर्ष यही देखने को मिला था। कई देशों ने इसके सहारे पर सरकारें तक बना डाली। लेकिन अब हालात बदले हुए हैं। सरकारों द्वारा लगाए कड़े नियमो और अभिव्यक्ति को सीमित कर देने की कोशिशों ने पहले ही सोशल मीडिया को बहुत आहत किया है।
ट्वीट करने का पैसा लेने का विचार भारत जैसे देश में पसंद नहीं किया जाएगा। कम से कम आप मध्यमवर्ग और निम्न मध्यम वर्ग से ये अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह टमाटर की बढ़ती कीमतों पर ट्वीट करने का आपको पैसा देगा या सड़क की समस्या को लेकर कलेक्टर को ट्वीट करने का पैसा देने का विचार उसे कभी नहीं सुहाएगा।
मस्क की विचारों की कीमत वसूलने की नीति भारत सरकार और राजनीतिक दलों के लिए समस्या बन सकती है। वैसे भी सोशल मीडिया पर सरकार और सत्तारुढ़ दल भाजपा का रुतबा कम होता जा रहा है और इस नई नीति से उनका रचा हुआ ‘डिजीटल प्रपंच’ ठिकाने लग सकता है। आप सोच भी कैसे सकते हैं कि एक आम भारतीय से आप उसके विचार प्रकट करने के लिए पैसा वसूल लें।