अर्चना कुमारी । संदेशखाली मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने सुनवाई की और सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने टीएमसी नेता शेख शाहजहां को गिरफ्तार नही करने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई । अदालत ने ये भी साफ तौर कहा कि वो एक जन प्रतिनिधि है और उन्हें खुद से सरेंडर करना चाहिए। वह कानून की अवहेलना नहीं कर सकते। दरअसल संदेशखाली मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट में सुनवाई हुई है। अदालत ने कहा कि ऐसा व्यक्ति ऐसे तो आसानी से भाग नहीं सकता।
शेख को गिरफ्तार करने में विफल रहने के लिए पश्चिम बंगाल राज्य प्रशासन से अदालत ने सवाल किया। ज्ञात हो प्रवर्तन निदेशालय के छापे के बाद से आरोपी फरार है। उनके आवास पर छापेमारी करने पहुंची ईडी की टीम पर उनके समर्थकों ने हमला भी कर दिया था। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की डिवीजन बेंच मामले की सुनवाई की। अदालत ने शेख को उत्तरी 24 परगना जिले के संदेशखाली में व्याप्त पूरी समस्या का एकमात्र कारण” बताया, जहां जमीन हड़पने और यौन उत्पीड़न के आरोप सामने आए हैं।
अदालत ने कहा ये व्यक्ति जिसके बारे में कहा जाता है कि वो पूरे मामले का मास्टरमाइंड है, अभी भी फरार है। वो लगातार कानून की अवहेलना कर रहा है, तो जाहिर तौर पर सरकार को उसका समर्थन नहीं करना चाहिए। राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने कहा कि राज्य फरार टीएमसी नेता का समर्थन नहीं कर रहा है। ये घटनाक्रम पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी की संदेशखाली यात्रा से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान हुआ।
खंडपीठ ने उन्हें क्षेत्र का दौरा करने की अनुमति दी है। सुनवाई के दौरान जस्टिस शिवगणनम ने वकीलों को बताया कि यौन उत्पीड़न और जमीन हड़पने के आरोप से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई खंडपीठ द्वारा की जाएगी। संदेशखाली की स्थिति का जिक्र करते हुए जस्टिस शिवगणनम ने टिप्पणी की कि आरोपी शेख, जिला परिषद के हिस्से के रूप में जन प्रतिनिधि के सदस्य बने हुए हैं, उन्हें अपने खिलाफ आरोपों को संबोधित करने के लिए आगे आना चाहिए। अदालत ने ये भी कहा कि वो एक जन प्रतिनिधि है. स्वत: मामले में हम उनसे यहां आत्मसमर्पण करने के लिए कहेंगे। वह कानून की अवहेलना नहीं कर सकते।
अदालत ने कहा कि उसे नहीं पता कि उसे सुरक्षा दी जा रही थी या नहीं, उसने यह भी टिप्पणी की कि राज्य पुलिस निश्चित रूप से उसे गिरफ्तार करने में विफल रही है। इसका मतलब यह हो सकता है कि राज्य पुलिस के पास उसे गिरफ्तार करने का साधन नहीं है या वह अधिकार क्षेत्र से बाहर है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत सार्वजनिक आंदोलन को प्रतिबंधित करने के आदेशों का संदेशखाली की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता है। इस मामले में अदालत ने पश्चिम बंगाल राज्य को इस मामले पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने को कहा और हाई कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 26 फरवरी को करेगा।