अर्चना कुमारी अजमेर की एक विशेष अदालत ने 1993 में कई ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मामले में अब्दुल करीम टुंडा को बृहस्पतिवार को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका।
न्यायाधीश महावीर प्रसाद गुप्ता की आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) अदालत ने इस मामले में दो अन्य आरोपियों – इरफान और हमीदुद्दीन – को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
भारत में वांछित आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के घनिष्ठ सहयोगी टुंडा (81) पर दिसंबर 1993 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर विभिन्न शहरों में पांच ट्रेनों में विस्फोट करने का आरोप है। इन बम धमाकों में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे।
टुंडा के वकील शफकतुल्लाह सुल्तानी ने कहा, ‘अदालत ने अब्दुल करीम टुंडा को उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया। वह पूरी तरह से निर्दोष है।
अदालत ने टुंडा को हर धारा, हर कानून से बरी किया है। अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए उनके पक्ष में ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। उसकी बेगुनाही आज एक बार फिर न्यायालय में साबित हुई है।
’ उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई ने इस सारे मामले को लेकर अब्दुल करीम टुंडा को ‘बेस’ बनाया था। ‘बेस’ यह था कि टुंडा ने सभी मुल्जिमों को बम बनाना सिखाया और उससे ही प्रेरित होकर इन लोगों ने विभिन्न ट्रेनों में बम रखे।
वकील ने’ कहा कि बचाव पक्ष ने अदालत के सामने अपनी बात रखी थी कि टुंडा के खिलाफ कोई भी प्रत्यक्ष सबूत नहीं है और न ही उसके खिलाफ कोई पूरक आरोप पत्र पेश किया गया।
टाडा अदालत ने 5-6 दिसंबर 1993 की रात लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई में यात्री ट्रेनों में हुए विस्फोटों के मामले में मुख्य आरोपी टुंडा और सह आरोपियों– इरफान उर्फ पप्पू और हमीदुद्दीन- के खिलाफ 30 सितंबर 2021 की आरोप तय किए थे।
उनके वकील अब्दुल रशीद ने कहा कि इरफान और हमीदुद्दीन को बम रखने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। रशीद ने कहा, ’हमीदुद्दीन और इरफान को दोषी पाया गया है।
उन्हें बम रखने के लिए दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। वे उच्चतम न्यायालय में अपील करेंगे।’ हमीदुद्दीन पिछले 14 साल से और इरफान पिछले 17 साल से जेल में हैं।
हालांकि अदालत ने कहा, ‘अभियुक्तों का कार्य गंभीर प्रकृति का रहा है। इसके अलावा आजीवन कारावास की सजा से दंडनीय अपराध के आरोप में यह न्यायालय भुगती हुई सजा पर रिहा किए जाने हेतु सक्षम नहीं है। न ही अभियुक्तों द्वारा किया गया अपराध नरम रुख अपनाये जाने लायक है।