श्वेता पुरोहित –
जब भी श्री राधा रानी के बारे में बात होती है तो कुछ लोग कहते हैं कि हम श्री राधा रानी को नहीं मानते क्योंकि श्रीमद्भागवत में उनका वर्णन नहीं है इस विषय में कुछ लिखा जा रहा है।
समाधान-: श्रीमद्भागवत महापुराण कोई साधारण महापुराण नहीं है यह परमहंसो कि संहिता है अर्थात जिन्हें भगवत प्राप्ति हो चुकी है जो परमात्मा का स्वरूप जान चुके हैं वहीं संपूर्ण श्रीमद् भागवत को पूरी तरीके से समझ सकते हैं श्रीमद्भागवत को समझना इतना आसान नहीं है क्योंकि श्री व्यास देव जी ने भी 17 महापुराण और महाभारत रचना के बाद श्रीमद्भागवत को लिखा है। श्रीमद्भागवत का प्राकट्य श्री व्यास देव श्रीशुकदेवजी जैसे परमहंसो द्वारा हुआ है ये सभी भगवत प्राप्त संत है इनकी वाणी को संपूर्ण तरीके से समझने के लिए निर्मल ह्रदय और पूर्ण भक्ति चाहिए पर हम सोचते हैं कि हम काम, क्रोध, मद, मोह मे पडे जीव मात्र साधारण दृष्टि से भागवतमहापुराण पढे और समझ में आ जाए। भगवत प्राप्त संतों का मत है कि वैसे तो संपूर्ण भागवत को समझना ही बहुत मुश्किल है परन्तु उसमें भी दशम स्कंध को समझना अत्यंत दुष्कर माना गया है दशम स्कंध में भी रास पंचाध्यायी भागवत का प्राण कहा गया है इसे बिना भगवत कृपा के नहीं समझा जा सकता बिल्कुल भी नहीं समझा जा सकता। और हम जीव एक बार दो बार भागवत पढ़ के सीधे राधा तत्व जो रास पंचाध्यायी व दशम स्कंध का प्रतिपाद्य विषय है उस पर चर्चा/जिज्ञासा नहीं वाद-विवाद करने लग जाते हैं
श्रीमती राधा जी शुकदेव जी की गुरु है और इस हिसाब से राधा नाम गुरु मंत्र हुआ जिसे जल्दी से प्रकट नहीं किया जाता और राधा नाम लेते ही शुकदेव जी को समाधि लग जाती है और परिक्षितजी को भागवत सुनाते समय शुकदेव जी के पास मात्र 7 दिन थे अगर वह समाधि में चले जाते तो भागवत संपूर्ण ही नहीं हो पाती इसलिए उन्होंने सीधे राधा शब्द का उपयोग ना करते हुए राधा जी के अन्य नामों का उपयोग किया है जैसे गोपी, श्री, आदि यह सारे नाम राधा सहस्त्रनाम में वर्णित है जैसे किसी व्यक्ति के 2 नाम होते हैं तो उन्हें लोग कभी किसी नाम से और कभी किसी नाम से पुकारते हैं तो यह तो नहीं कहा जा सकता है ना कि यह नाम सही है बाकी दूसरे नाम गलत है उसी प्रकार उन्होनें राधा नाम नहीं लिया तो उसकी जगह उन्होंने अन्य नामों का उपयोग किया है।
और जितना प्रामाणिक श्रीमद्भागवत महापुराण है उतने ही प्रामाणिक अन्य महापुराण भी है जिसमे स्पष्ट रूप से श्री राधा रानी का नाम और चरित्र आया है जैसे स्कंद पुराण ,पद्म पुराण, देवी भागवत, गर्ग संहिता ब्रह्मवैवर्त पुराण, तंत्र शास्त्र, राधोपनिषद आदि इसलिए राधा चरित्र व स्वरूप पर संदेह व वाद विवाद करने का कोई आधार ही नहीं बनता। और वैसे भी दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो भगवान का चरित्र अनंत है किसी एक शास्त्र में इसका संपूर्ण वर्णन करना संभव ही नहीं है तभी तो अट्ठारह महापुराण उपनिषद स्मृति आदि की रचना हुई है और सभी प्रमाणिक ही है इसलिए हमे ऊपर वर्णित शास्त्रो को भी मानना होगा ।
और फिर भी अगर कोई संदेह रहता है आप ईश्वर के जिस भी स्वरूप को मानते हैं उनका खूब नाम जप करें और उन्हीं से प्रार्थना करें कि राधा तत्व का कुछ दिग्दर्शन वह कराए अगर आपकी मनोकामना सच्ची होगी तो आपके ईष्ट के द्वारा आपको ज्ञान करा दिया जाएगा और आपका संशय निवृत तो जाएगा।
राधा तत्व बहुत गुढ है इसे बिना भगवत कृपा के नहीं जाना जा सकता।
राधा रानी की जय 🙏🪷