श्वेता पुरोहित। नारदजी बोले जो मनुष्य श्रेष्ठ ब्राह्मण को पलंग दान करता है ब्राह्मण की उस पर सुख से सुलाकर ठंडी-ठंडी हवा को जाय। तो सम्पूर्ण धर्मों के साधन से उसका शरीर निरोग रहता है, इस दान से सब ताप शांत और दूर हो जाते हैं। वह मनुष्य योगियों से भी दुर्लभ पद पाता है। जो मनुष्य वैशाख में धूप से थके हुए ब्राह्मणों को सुन्दर श्रमनाशक पलंग दान करता है, वह मनुष्य हे राजन् ! संसार के जन्म मरण और वृद्धावस्था के कष्ट नहीं भोगता। उस पलंग पर ब्राह्मण के शयन करने से जीवन भर के आने-अनजाने किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं।
हे राजेंद्र उसके पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि के स्पर्श से कपूर नष्ट हो जाता है और वह मनुष्य निश्चय ही ब्रह्म पद को चला जाता है। जो मनुष्य वैशाख मास में शय्या दान करता है वह मनुष्य इसी जन्म में सम्पूर्ण भोग्य पदार्थों को भोगता है। उसके कुल में बहुत से मनुष्य होते हैं, कोई रोग उसको नहीं होता है, उसे बड़ी आयु, धैर्य, निरोगता और यश मिलता है। उस धर्मात्मा के कुल में सौ पीढ़ी तक कोई अधर्मी नहीं होता है इस मास में दानादि करने का अपार फल होता है वैशाख के धर्मों को इस तरह करनेवाला धर्मात्मा पुरुष सब भोगों को भोगकर अपना शरीर त्यागता है।
जो वेदपाठी ब्राह्मण को तकिया दान देता है उसके सभी पाप नष्ट होजाते हैं और अन्त में ब्रह्मपद प्राप्त होता है। बिना इसके दिये मनुष्य सुखपूर्वक नहीं सो पाता है। और इसके दान करने से सबका आश्रय बनकर पृथ्वीका राज्य भोगता है । हे राजन् ! वह मनुष्य सातजन्म तक सदा सुखी, भोगी, धर्मपरायण और विजयी होता है। फिर अपने सातों कुल समेत मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य चटाई अथवा और किसी प्रकार का आसन देता है, जिसपर पत्रशायी विष्णुभगवान् स्वयं विराजते हैं जैसे जल में पड़ी हुई ऊन नहीं भीजती। वैसे ही संसारी जीव संसार के बन्धन को नहीं प्राप्त होता है, चटाई को देनेवाला पुरुष आसन और शय्या पर आरूढ हो सब तरह सुखी रहता है। शयन करने के लिये चटाई और कंबल दान देता है वह मुक्त हो जाता है। इसमें संदेह नहीं है। निद्रा से दुःख दूर हो जाता है और निद्रा से परिश्रम दूर हो जाता है वही निद्रा चटाई पर सुखपूर्वक आती है। हे राजन जो वैशाख में कम्बल का दान करता है वह अकालणदमृत्यु और काल मृत्यु से छूटकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है।
जो प्राणी धूप से व्याकुल ब्राह्मण को पतला वस्त्र देता है उसकी पूर्ण आयु होती है और परलोकमें उसको परम गति मिलती है। कपूर अन्तस्तापको दूर करते हैं इस से कपूर का दान ब्राह्मण को देते हैं तो मोक्ष मिलती है और दुःख का नाश होता है। जो ब्राह्मण को फूल और कुमकुम दान करे तो सार्वभौमराजा हो सब प्राणी उसको आज्ञा में रह और पुत्र तथा पौत्रों युक्त होकर सब भोगों को भोग मोक्ष पाता है त्वचा और हड्डी के संताप को चन्दन तत्काल दूर कर देता है।
अतः जो चन्दन दान करता है वह तीनों ताप से दूर हो मोक्षको प्राप्त होता है जो जलमें भीगी हुई खस, चंपा या कुशा दान करता है, हे राजन् ! वह प्राणी सब प्रकार के सुख भोगता है सब देवता उसकी सहायता करते है। उसके सब पाप और दुःख दूर हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष पाता है। जो वैशाख में गोरोचन और कस्तूरी दानकरता है, वह तीनों तापसे छूटकर मोक्षपद पाता है। जो मेष की संक्रान्ति में तांबूल और कपूर दान करता है वह पृथ्वी में सारे सुख भोगकर निर्वाणपद प्राप्त करता है।
जो मनुष्य सेवती और जुही दान करता है वह सार्वभौमराजा होकर अन्त में मोक्षपद पाता है। जो वैशाख में केतकी और मल्लिका दान करता है वह माधव भगवान्की आज्ञासे मोक्षपद पाता है। जो मनुष्य ब्राह्मण को सुपारी और अन्य सुगन्धित द्रव्योंका दान देता है और हे राजन् ! जो नारियल दान करता है उसके पुण्य के फल चित्त लगाकर सुनो – वह सात जन्म तक ब्राह्मण के घर जन्म लेता है और धनवान् तथा वेदपाठी होता है फिर वह सातों कुल समेत विष्णुलोक को जाता है। हे राजन् ! जो प्राणी विश्राम मंडप बना ब्राह्मण को देता है उसके पुण्य के फल को कहने की मेरी सामर्थ्य नहीं है। जो मनुष्य छायामंडप बनवाकर भीतर बालू बिछा देता है और उसमें प्याऊ लगा देता है वह स्वर्गलोक का स्वामी होता है।
जो मनुष्य मार्ग में बाग बगीचा, तड़ाग, कुआँ झोपड़ी बनवाता है, वह बड़ा धर्मात्मा है। इन सातों में से जो एक भी नहीं करता, वह मनुष्य स्वर्ग को नहीं जाता, उत्तम शास्त्रों का सुनना, तीर्थयात्रा, सत्संग, जलदान, अन्नदान , पीपल का पेड़ लगाना और पुत्र होना – ये सात प्रकार की संतान वेदवेत्ताओं ने कही हैं।
अन्य सैकड़ों धर्म करने पर पर भी मनुष्यों को सन्तान नहीं मिलती इसलिए संतान कि इच्छा करने वालों को इनमें से एक कर्म अवश्य करना चाहिए। पशु, पक्षी, मृग और वृक्षों को भी स्वर्ग सुख नाहीं मिलता फिर मनुष्यों का तो कहना ही क्या ? जो मनुष्य सुपारी, नागवल्ली, कपूर और अगर सहित पान दान करता है.वह निश्चय ही शारीरिक पापों से मुक्त हो जाता तथा यश, धैर्य और लक्ष्मी प्राप्त करता है। रोगी रोग से से छूट जाता है और निरोगी मोक्ष को पाता है। जो वैशाख में तापनाशक छाछ का दान करता है, वह विद्यावान और धनवान होता है इसमें संदेह नहीं है। क्योंकि गर्मी की ऋतु में तक्र के समान कोई दान नहीं। इसलिए मार्ग के कारण थकें हुए ब्राह्मण को छाछ का दान करे, जो मनुष्य निम्बू का रस और नमक डालकर अरुचिनाशक छाछ का दान करता है वह मोक्ष पाता है, जो गर्मी से व्याकुल ब्राह्मण को दही की लस्सी पिलाता।
हे राजन! उसके पुण्य का फल कहने को मुझ में सामर्थ्य नहीं है, जो वैशाख महीने में अच्छे चावल दान करता है उसकी बड़ी आयु होती है और वह सब यज्ञों के फल पाता है, जो तेजरूप गौ का घी दान देता है। वह अश्वमेध का प्राप्त कर विष्णु भगवान के आनन्द पाता है जो मेष संक्रान्ति में ककड़ी और गुड़ दान करता है। वह सम्पूर्ण पापों से छूटकर श्वेत द्वीप को चलाजाय, जो मनुष्य दिन के ताप की शांति निमित्त ईखका दान करै। उसका अनन्त पुण्य होता है, जो सायंकाल श्रमके शांति के लिए पने का दान करते है वह सम्पूर्ण पापों से छटकर विष्णु की सायुज्यता को प्राप्त होता है, जो सायंकालके समय ब्राह्मण को फल और पनेका दान करे उस दान से पितरों को निश्चय सुधापान मिलता है। जो वैशाख महीने में पके आम के फल और पने का दान है। उसके सब पाप निश्चय ही दूर हो जाते हैं। वैशाख महीना की अमावस्या को पेय से भरे घड़े का दान करने से सौ गया श्राद्ध कर लिया इसमें सन्देह नहीं। वैशाख की अमावस्या को कस्तूरी, कपूर, मल्फ़िका, खस आदि वस्तुओं से युक्त जलकुम्भका दान दान जो पितरों के लिए करता है उसको छियानबें श्राद्ध करने का पुण्य निसंदेह होता है।
इति श्रीस्कन्दपुराणे वैशाखमाहात्म्ये नारदाम्बरीषसंवादे दाननिरूपणं नाम तृतीयोऽध्यायः