अर्चना कुमारी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी महिला के चरित्र पर लांछन लगाने से अधिक क्रूरता कुछ नहीं हो सकती। अदालत ने दंपति के पिछले 27 वर्षों से अलग-अलग रहने का जिक्र करते हुए क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक का फैसला सुनाते हुए यह कहा। उन दोनों की 1989 में शादी हुई थी और वे 1996 में अलग हो गये थे।
उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘मानसिक क्रूरता’ शब्द इतना व्यापक है कि वह अपने दायरे में ‘वित्तीय अस्थिरता’ को ले सकता है। अदालत ने कहा कि वित्तीय अस्थिरता का परिणाम किसी कारोबार या पेशे में पति की स्थिति मजबूत नहीं रहने को मानसिक परेशानी के रूप में देखने को मिल सकता है और इसे पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता का एक अनवरत करार दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि मानसिक क्रूरता को किसी एक मानदंड के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा, ‘वर्तमान मामले में, मानसिक पीड़ा को समझना आसान है क्योंकि अपील पक्ष (महिला) कामकाजी था और प्रतिवादी (पति) कामकाजी नहीं था। अपील पक्ष और प्रतिवादी की वित्तीय स्थिति में भारी असमानता थी।
प्रतिवादी के खुद का निर्वाह करने में सक्षम होने के प्रयास निश्चित रूप से विफल रहे थे। महिला ने उच्च न्यायालय का रुख कर एक परिवार अदालत के फैसले को चुनौती दी थी, जिसने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की उसकी अर्जी खारिज कर दी थी। महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि व्यक्ति ने उस पर ये आरोप लगाने शुरू कर दिये थे कि उसका (महिला का) उसके (पति के) एक करीबी रिश्तेदार और कई अन्य लोगों के साथ अवैध संबंध हैं। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘किसी महिला के चरित्र पर लांछन लगाने से अधिक क्रूरता कुछ नहीं हो सकती।