अमरीका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारत को लेकर अपना पहला बयान दिया है. प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई अपनी पहली टेलिफोनिक वार्ता में बाइडन ने कहा कि वे प्रधानमंत्री के साथ मिलकर विभिन्न वैश्विक चुनौतियों से ड्टकर मुकाबला करने के इच्छुक हैं. उन्होने कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप से उबरने हेतु, वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये एवं समृद्ध हिंद प्रशांत क्षेत्र को बनाये रखने के लिये वे भारत के साथ सांझेदारी करने के लिये तत्पर हैं.
मंगलवार रात को प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ टेलीफोन पार बातचीत की थी. उन्होने बाइडन को चुनाव में जीत के लिये बधाई दी और साथ ही दोनों देशों से जड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की.
बाइडन के चुनाव जीतने के बाद यह प्रधानमंत्री मोदी और उनके बीच हुई पहली टेलिफोनिक वार्ता है. और इस वार्ता से और उसके बाद जो बाइडन ने भारत को लेकर जो बयान दिया, उससे उन सभी कयासों पर फिलहाल एक प्रकार का पूर्णविराम सा लग गया है जो यह मान कर चल रहे थे कि यदि बाइडन राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं तो भारत और अमरीका के रिश्तों में कुछ खटास सी आ जायेगी.
जो बाइडन और डांनल्ड टृम्प के व्यक्तित्व में, उनके चीज़ों को देखने के दृष्टिकोण में ज़मीन आसमान का अंतर ज़रूर है. लेकिन अमरीका के विभिन्न आंतरिक मुद्दों को लेकर और विशेषकर विदेश नीति के क्षेत्र में .दोनों की नीतियां लगभग एक सी हैं. जो बाइडन जब भी नेतृत्व संभालेंगे, उनकी पहली चुनौती होगी अमरीका को कोरोना वायरस की विभीषिका से बाहर निकालना. और इसके लिये उन्होने भारत से सांझेदारी की उम्मीद भी जताई है. फिर अगली चुनौती है अमरीका अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और चीन के साथ लंबे समय से चल रहे व्यापार युद्ध का कोई हल निकालना.
जहां तक चीन की बात है, तो चीन को लेकर जो बाइडन का रवैया भी उतना ही सख्त है जितना कि ट्र्म्प का है. उन्होने अपने चुनावी अभियान में चीन में उइगर मुसलमानों के साथ हो रहे बर्बर बर्ताव को भी एक मुद्दा बनाया था. और यह स्पष्ट तौर पर कहा था कि चीन जो उनके साथ कर रहा है, वह जेनोसाइड यानि जातिसंहार है. तो बाइडन के राष्ट्रपति चुनाव जीतने से चीन के पास उत्साहित होने की कोई खासा वजह नहीं है. बल्कि चीन के लिये मुसीबत और भी बढ सकती है. क्योंकि बाइडन का व्यक्तित्व बेहद सधा हुआ और संतुलित है.
डांनल्ड ट्र्म्प के बड़्बोलेपन के चलते कई विकसित देश भी अमरीका से कट रहे थे. क्योंकि टृम्प ने अपने आक्रामक रवैये के चलते अमरीका को विश्व से अलग थलग खड़ा कर लिया. और चूंकि उनका रवैया इतना आक्रामक था इसीलिये चीन के खिलाफ उनकी बातें दूसरे देश सुनते तो ज़रूर थे लेकिन चीन को मौका मिल जाता था टृम्प को तानाशाह दिखा सहानुभूति बटोरने का. बिडेन के नेतृत्व में चीन को कोई ऐसा मौका नही मिलेगा. बल्कि वे यदि चाहें तो चीन के खिलाफ अमरीका की जो लड़ाई है, उसमे विश्व के कई विकसित देशों को अमरीका की तरफ कर सकते हैं.
जहां तक भारत अमरीका संबंधों की बात है, तो यह भारत के लिये भी एक मौका है व्यापार क्षेत्र में अमरीका के साथ अपने संबंधों को और सुदृढ करने का. और डानल्ड ट्र्म्प ने अपने कार्यकाल में भारतीय बिज़नेसों पर, यहां के निर्यातों पार तमाम प्रकार के जो प्रतिबन्ध लगाये हैं, उन सभी मुद्दों पर पुन: बातचीत करने का.