भारत के संविधान निर्माता अपनी दूरदर्शिता के रहते यह जान गये थे कि देश के सभी नागरिकों को समान शिक्षा, समान न्याय, समान अधिकार, समान नियमों की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 44 के माध्यम से ‘समान नागरिक संहिता’ में समान नागरिक संहिता/युनिफार्म सिविल कोड का प्रावधान रखा था जिसे, अन्य प्रावधानों के अनुसार, संसद-सम्मत कानून बनाकर पारित किया जाना था। लेकिन आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी उसको लागू करने के लिए कोई नियम नहीं बनाये गये हैं।
विवाह की न्यूनतम उम्र, विवाह विच्छेद (तलाक) का आधार, गुजारा भत्ता, गोद लेने का नियम, विरासत का नियम और संपत्ति का अधिकार सहित उपरोक्त सभी विषय सिविल राइट और ह्यूमन राइट से सम्बन्धित हैं, इनका मत/मजहब से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने के कारण मुकदमों की सुनवाई में अत्यधिक समय लगता है। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बच सकता है और किसी भी वर्ग, जाति, भाषा, सम्प्रदाय, लिंग, रिलीजन के साथ भेदभाव भी नहीं होगा। इसी बातों को ध्यान में रखते हुये, भारत के 22वें विधि आयोग (कानून कमीशन / लॉ कमीशन) द्वारा, दिनांक 14/06/2023 से 13/07/2023 तक समान नागरिक संहिता (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) विषय पर, भारत के सभी/आम नागरिकों तथा भारत की सभी पंजीकृत धार्मिक संस्थाओं से, उनके सुझाव/विचार मांगे हैं। मतदान करके सरकार बनाना नागरिकों का अधिकार है और अपने सुझाव देकर इन सरकारों पर अंकुश भी लगा सकते हैं।
व्यक्ति-व्यक्ति/संप्रदाय-संप्रदाय/जाति-जाति में कोई भेद/दुराव/वैर न हो, इसी के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है। लेकिन आश्चर्य यह है कि हम चाहते तो हैं कि देश में समता स्थापित हो, लेकिन उसके लिए हम एक दिन मतदान करने के लिए अपने घर से निकलना भी गवारा नहीं करते, केवल 35%-50% मतदान होता है। फिर जो संगठित होकर मतदान/वोट करते हैं, वह अपने दबाव/स्वार्थों के हिसाब से अपनी सरकार बना लेते हैं। अपनी और अपनी आने वाली संततियों के प्रति जवाबदेह होकर मतदान करना हमारा कर्तव्य है। और इस समय-सीमा में, बिना भीड़/लाइन लगाते हुए, अपने घर में ही बैठकर समान संहिता के अनुकूल सुझाव देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना हमारा कर्तव्य और अधिकार दोनों हैं।
जो कर्त्तव्य समझता है, उसे ही अधिकार समझ आते हैं। इनके अनुपालन/नियमों में विभिन्न मांगें रखी जा सकती हैं जैसे: (1) विवाह की न्यूनतम आयु (Minimum Age of Marriage), (2) विवाह विच्छेद का आधार और विवाह विच्छेद का तरीका, (3) गुजारा भत्ता का अधिकार और गुजारा भत्ता का तरीका, (4) बच्चा गोद लेने का आधार और गोद लेने का तरीका, (5) भरण पोषण का अधिकार और भरण पोषण का तरीका, (6) विरासत का अधिकार और विरासत का तरीका, (7) वसीयत का अधिकार और वसीयत का तरीका, (8)उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार, (9) एक पति एक पत्नी का नियम, (10) दो बच्चों का नियम, सबके लिए समान रूप से लागू हों सकें। अपने परिवार और अपनी आने वाली संततियों के प्रति जवाबदेह होकर मतदान करना तो हमारा कर्तव्य है ही साथ ही इस समय-सीमा के भीतर, बिना भीड़/लाइन लगाये, अपने घर में ही बैठकर समान नागरिक संहिता के अनुकूल सुझाव देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना हमारा कर्तव्य और अधिकार दोनों हैं।
जिसे हम ई-मेल : membersecretary-lci@gov.in पर ई-मेल करके या https://legalaffairs.gov.in/law_commission/ucc/ लिंक पर अपने सकारात्मक सुझाव देकर हम पूरा कर सकते हैं। समस्त धर्म/आध्यात्म/समझ/भक्ति का यही सार है कि यदि हमने वर्तमान/अवसर में उपयुक्त कदम नहीं उठाया तो बाद में केवल पछतावा ही बचता है। ध्यान रहे कि जो कर्त्तव्य समझता है, उसे ही अधिकार समझ आते हैं। सुप्रभात -आज का दिन शुभ व मंगलमय हो।
साभार: मनोज माहेश्वरी के टेलीग्राम से।