विपुल रेगे। इजराइल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने इज़राइल और फिलिस्तीन के ताज़ा संघर्ष के बीच महत्वपूर्ण बयान दिया है। योव के अनुसार वे पंद्रह वर्ष पहले ही ‘हमास’ की गर्दन तोड़ देते, यदि राजनीतिक क्षेत्र का दखल न होता। गाज़ा पट्टी में दशकों से चल रहे सैन्य संघर्ष के समाप्त न होने में राजनीति ज़िम्मेदार है। बेबाकी से अपनी बात रखने वाला योव गैलेंट भारत में नहीं है। भारत में भी बहुत सी समस्याएं कमज़ोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण आज तक सुलझ नहीं सकी है।
ये सन 2008 की बात है। इज़राइली सेना ने ऑपरेशन कास्ट लीड शुरु किया था। सेना ने गाज़ा पर भीषण आक्रमण किया। योव गेलेंट उस समय आईडीएफ दक्षिणी कमान के प्रमुख के रूप में गैलेंट इजरायली सेना के कमांडर थे। इस समय फ़िलिस्तीन ने दक्षिणी इज़राइल पर राकेटों से घातक हमला किया। इसके बाद इज़राइल ने गाजा में 22 दिवसीय सैन्य आक्रमण शुरू किया। युद्धविराम पर सहमति बनने से पहले लगभग 1,400 फिलिस्तीनी मारे गए थे।
इस युद्ध विराम के बाद गैलेंट को भ्रष्टाचार समेत कई आरोप सहने पड़े थे। आज गैलेंट उस दौर की बात करते हुए कहते हैं ‘पंद्रह साल पहले, बतौर दक्षिणी कमान प्रमुख, मैं हमास की ‘गर्दन तोड़ने’ के करीब था, मुझे राजनीतिक क्षेत्र ने रोका।’ निश्चित ही राजनीतिक घेराबंदी ने उनके मिशन को असफल कर दिया था। गैलेंट आज इज़राइल में प्रधानमंत्री नेतन्याहू से बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं। जब उन्हें रक्षा मंत्री के पद से हटाया गया तो देश में हिंसक प्रदर्शन हुए। अंततः रक्षा मंत्री के पद पर उनकी वापसी हुई।
योव गैलेंट भारत में नहीं है। एक योव भारत में होते तो आज पूछ सकते थे कि हज़ारों सैनिकों ने कश्मीर की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया लेकिन कश्मीर समस्या राजनीतिक विकलांगता के कारण जस की तस है। भारतीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 1991 से 2005 तक 1406 हिंदू नागरिकों की मौत हुई। 1989 और 2004 के बीच हिंदू पंडित समुदाय के 219 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। उस समय की तत्कालीन सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत कमी थी, जिसके चलते इस समस्या का त्वरित और सटीक निर्णय निकल ही नहीं सका।
गृह मंत्रालय के अनुसार अनुच्छेद हटने के बाद 5 अगस्त 2019 से 22 जुलाई 2022 तक जम्मू-कश्मीर में कुल 118 आतंकी हमलों में मारे गए। इनमें 6 कश्मीरी पंडित और 16 अन्य सिख/हिंदू समुदाय के लोग शामिल हैं। नई सरकार आने के बाद आतंक का तरीका भी बदल गया। अब बड़े आतंकी हमलों के बजाय टारगेट किलिंग के द्वारा कश्मीरी पंडितों को मारा जाने लगा।
सन 2022 -23 में जम्मू-कश्मीर में टारगेटेड अटैक में 22 लोग मारे गए थे। सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कश्मीर में 705 आतंकी घटनाए हुई और इनमे 105 सैनिक बलिदान हुए थे जबकि मोदी सरकार के आने के बाद 812 आतंकी घटनाएं हुई और 183 सैनिक बलिदान हो गए।
ज्यादातर हमले अल्पसंख्यकों, प्रवासियों और सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाने के उद्देश्य से हुए थे। फिलिस्तीन और कश्मीर की समस्याओं के कारण कितने मिलते-जुलते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार , पिछले सात वर्षों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रस्तावित आवास का केवल 17% ही पूरा हो सका है। कश्मीर में में प्रधानमंत्री पैकेज और अनुसूचित जाति जैसी श्रेणियों में करीब 5,900 हिंदू कर्मचारी हैं। टारगेट किलिंग के चलते पाबंदियों के बावजूद निजी आवास और कैंप में रहने वाले कर्मचारियों में से 80 फीसदी कश्मीर छोड़कर जम्मू पहुंच गए चुके हैं।
निश्चित ही इस समस्या को सुलझाने के लिए सभी राजनीतिक दल इच्छाशक्ति नहीं दिखाते। गत फरवरी में ही जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादियों ने रविवार को 40 साल के कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी थी। सन 2022 में दस कश्मीरी पंडितों ने परिवारों के साथ कश्मीर छोड़ दिया था। हज़ारों सैनिकों के बलिदान, हज़ारों हिन्दुओं की ह्त्या के बाद भी जम्मू-कश्मीर के हालात वैसे ही हैं। धारा 370 की घोषणा के बाद भी पंडित सहमे हुए इस क्षेत्र में रह रहे हैं।
किसी प्रकार की स्वतंत्रता का अनुभव उन्हें नहीं होता। कागज़ पर धारा बदलने से ज़मीन पर हालात नहीं बदले, बल्कि बिगड़ते चले गए। इज़राइल के पास अपना ‘योव गैलेंट’ है लेकिन भारत के पास नहीं। सफ़ेद नर्म घास वाले स्वर्ग पर दशकों से आग धधक रही है। ये आग भले ही फिलिस्तीन से थोड़ी कम हो लेकिन इसने हज़ारों के घर जला दिए हैं। आग पर पैर धरे खड़े सरकार बहादुर के जूते जल रहे हैं और शेष राजनीतिक दल उस आग से चुनावी रोटियां सेंक रहे हैं। हाँ बस कश्मीर सिसक रहा है।