रवीश आप कितना गिरेंगे? स्मृति ईरानी आपकी तरह निर्णय नहीं सुना रहीं, पुलिस रिपोर्ट का हवाला दे रही हैं! दोनों में फर्क है! मि. रवीश कुमार, लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने रोहित वेमुला मामले में जो बयान दिया वह तेलंगाना पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट पर आधारित है और वो पुलिस भाजपा शासित राज्य की नहीं है!
कालेधन की कॉकटेल से निकली है रवीश की रिपोर्ट
कोई भी मंत्री अथवा अदालत, पुलिस अथवा अन्य जांच एजेंसी की जांच रिपोर्ट को ही आधार बनाकर बयान या निर्णय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। यदि पुलिस की रिपोर्ट गलत है तो उसे आप अदालत में चुनौती दे सकते हैं, लेकिन जब तक अदालत का निर्णय नहीं आ जाता तब तक जांच एजेंसी की रिपोर्ट को ही कोट किया जाता है।
लेकिन जिन लोगों को संसद हमले में दोषी अफजल गुरू व आतंकी याकूब मेनन पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मान्य न हो, वह रोहित वेमुला पर तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट आखिर क्यों मानेगी? पप्पू-केजरी गैंग का तो समझ में आता है कि उन्हें विभाजनकारी राजनीति करनी है, लेकिन रवीश कुमार जैसे पत्रकार जब स्मृति ईरानी को झूठ ठहराने के लिए कुतर्कपूर्ण कुकृत्य करें तो इसे क्या कहा जाए?
अपने प्राइम टाइम पर स्मृति ईरानी को झूठा साबित करने के लिए रवीश ने हैदराबाद विवि के CMO से एनडीटीवी के रिपोर्टर की बात दिखाई, जिससे दो बातें निकलती है। cmo खुद कह रही हैं कि ‘जब वह पहुंची तो रोहित के शरीर को पंखे से उतार कर बाहर लिटाया गया था।’ यह साफ तौर पर साक्ष्य से छेड़छाड़ का मामला है, क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था या खुला और रोहित की उस वक्त क्या स्थिति थी, यह रोहित की आत्महत्या और हत्या के बीच के प्रारंभिक अंतर को स्पष्ट करने में बड़ी भूमिका निभाता!
मुझे याद है दैनिक जागरण में एक अपराध संवाददाता की हैसियत से मैंने एक केस खोला था, जिसमें दिल्ली पुलिस के एक जवान ने अपनी पत्नी की हत्या कर उसे पंखे से लटका दिया था! दरवाजा उसने बंद किया था, लेकिन खिड़की खुला हुआ था। खिड़की के पास मुझे कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ मिली, जो हाथापाई को साबित करती थीं। वह जवान पत्नी की हत्या कर खिड़की से बाहर निकल गया था। दिल्ली पुलिस उसे बचाने में जुटी थी, लेकिन मेरी रिपोर्टिंग ने उस केस को सही मुकाम तक पहुंचाया था।
आत्महत्या करने वाला निराशा में अपने बचने की हर संभावना को समाप्त करने के लिए दरवाजा-खिड़की सब बंद कर आत्मघाती कदम उठाता है। रोहित वेमुला मामले में तेलंगाना पुलिस और CMO दोनों यह कह रहे हैं कि रोहित का शव पंखे से उतार कर बाहर गया था! तो सवाल उठता है कि रोहित के कमरे का दरवाजा आखिर कैसे खुला? दरवाजे के टूटे होने की बात भी सामने नहीं आई है! यह प्राथमिक तौर पर हत्या की ओर इशारा है!
दूसरी बात, पुलिस की रिपोर्ट कहती है कि रोहित के पास समय पर डाक्टर को नहीं पहुंचने दिया गया, जबकि रवीश जिस CMO के बयान को दिखा कर हत्या की आशंका को ढंकने का प्रयास कर रहे हैं वह कह रही है कि वह 4 मिनट में वहां पहुंच गई थी।
यहां याद रखने वाली बात यह है कि यह CMO ही हैदराबाद विवि के अंदर का सारा केस देखती है। यदि यह खुद अपने मुंह से कहे कि मैं समय पर नहीं पहुंची या मुझे नहीं पहुंचने दिया गया तो वह खुद संदेह के घेरे में आ जाएगी! पुलिस की रिपोर्ट पर अदालत में CMO को बयान देकर अपना स्पष्टीकरण देना है, लेकिन अदालत से पहले ही रवीश कुमार और #NDTV की अदालत CMO को सही और पुलिस को झूठ मानने का निर्णय सुना रही है!
पहले रवीश जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाने वालों और अब हैदराबाद विवि प्रशासन को, स्वयं जज बनकर क्लीनचिट बांट रहे हैं! सवाल उठता है कि अफजल के पक्ष में नारे लगाने वालों की तरह अफजल के पक्ष में रिपोर्टिंग-एंकरिंग करने वाले पत्रकार, भारतीय अदालत और कानूनी प्रक्रिया को नहीं मानने की खुलेआम घोषणा क्यों कर रहे हैं?
रवीश, आप भारतीय कानून की भले ही अवहेलना करें, लेकिन आप स्मृति ईरानी को गलत नहीं ठहरा सकते, क्योंकि वह एक भारतीय जांच एजेंसी( तेलंगाना पुलिस) को कोट कर रही हैं! वह आपकी तरह निर्णय नहीं सुना रही हैं, वह तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट का हवाला दे रही हैं! दोनों में फर्क है!
रवीशकुमार, अब जनता NDTV और आप जैसे पत्रकारों के पाखंड को खूब समझती है!
वाह रवीश! आज एक अर्णव गोस्वामी, एक दीपक चौरसिया, एक रोहित सरदाना आपको टीवी का स्क्रीन ब्लैंक छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है! आज आपको टीवी एंकरों पर पश्चाताप हो रहा है! लेकिन जब आपके इसी एनडीटीवी की एक संपादक बरखा दत्त की रिपोर्टिंग के कारण कारगिल में जवान मरे, 26/11 में एनडीटीवी की रिपोर्टिंग से आतंकवादियों को सुरक्षाकर्मियों के एग्जेक्ट लोकेशन का पता चला, तब आपको ऐसी रिपोर्टिंग पर शर्म महसूस नहीं हुई! पठानकोट में आतंकियों को सही लोकेशन बताकर मदद पहुंचाने वाली रिपोर्टिंग पर आपने खुद को और एनडीटीवी को टीबी का शिकार नहीं बताया!
रवीश, जब आपके ही चैनल के बरखा दत्त का नाम 2 जी स्पेक्ट्रम की दलाली में सामने आया और नीरा राडिया के साथ उनकी बातचीत के अॉडियो को देश ने सुना, तब आपने टीवी स्क्रीन अॉफ कर वो आवाज किसी को नहीं सुनाई, जैसा कि आज सुना रहे हैं!
जब इसी एनडीटीवी पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के 5000 करोड़ का काला धन हवाला के जरिए अपनी चैनल में लगाकर सफेद करने का केस चला तो न आपको शर्मिंन्दगी हुई और न पत्रकारिता को बेमौत मारने पर पश्चाताप हुआ! लेकिन आज हो रहा है, क्योंकि आज हर पत्रकार की अलग-अलग आवाज है, क्योंकि आज इशरत जहां को निर्दोष साबित करने के लिए पत्रकारिता का वह झुंड बंधा चेहरा सामने नहीं आ रहा है!
रविश कुमार गमगीन आवाज में टीवी के पर्दे को काला कर पटियाला हाउस में पत्रकारों की पिटाई की घटना पर बोलना एक बात है, और उसके लिए निकाले मार्च में दांत निपोरते हुए सेल्फी-सेल्फी खेलना, बिल्कुल उसके उलट बात!
मैं दिल्ली पत्रकार संघ का कार्रकारी सदस्य हूं! पिछले एक साल से मैं और मेरे पत्रकार साथी नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के साथ मिलकर देश के अलग-अलग हिस्सों में पत्रकारों पर हो रहे हमले, उनकी हो रही हत्या के विरोध में मार्च निकाल रहे हैं, इस सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानून की मांग कर रहे हैं! अभी-अभी आजतक के एक पत्रकार की उप्र में निर्दयता पूर्वक हत्या हुई, उसके विरोध में हमने रैली निकाली, लेकिन उसमें न आप आए, न राजदीप सरदेसाई, न बरखा दत्त, न अभिसार, न सिद्धार्थ वरदराजन, न उर्मिलेश एवं वो अन्य जो आज पटियाला हाउस की घटना को पत्रकारिता पर हमला बता रहे हैं! रवीश वो एक पत्रकार की हत्या थी, और एक नहीं कई पत्रकारों की हत्या हुई, लेकिन बुलावा भेजने पर भी आपमें से कोई एलिट पत्रकार पत्रकारों की जान बचाने के लिए निकाली गई एक भी रैली में नहीं आया! फिर आज क्यों नहीं आप अभिजातवर्गीय पत्रकारों के झुंड को मुख्य मुद्दे से देश का ध्यान भटकाने की कोशिश में लगा हुआ माना जाए?
मुख्य मुद्दा! ‘भारत की बर्बादी तक, जंग चलेगी-जंग चलेगी!’ ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह!’ एक बार भी आपके बंद टीवी स्क्रीन पर सुनाई जा रही अॉडियो में इन नारों की आवाज सुनाई नहीं दी! देती भी कैसे? यही तो हिप्पोक्रेसी है! यही पाखंड है!
आप कहते हैं अदालत का निर्णय आने से पहले ही कन्हैया और उमर को देशद्रोही साबित कर दिया गया! आपने भी तो अदालत के निर्णय से पहले पटियाला हाउस के वकीलों को गुंडा करार दिया! पटियाला हाउस की घटना पर आप कह रहे हैं कि दुनिया ने देखा और जेएनयू की घटना पर आप कह रहे हैं कि वीडियो से छेड़छाड़ हुई! रवीश आप कब पत्रकार से जज बन गए आपको पता चला? इशरत जहां और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की अपने चैनल की रिपोर्टिंग व आपकी एंकरिंग आपको याद है या याद दिलाऊँ श्रीमान जज रविश कुमार! फैसला तो उस पर भी नहीं आया है, लेकिन टीवी स्टूडियो में इशरत को मासूम, निर्दोष और शहीद कबका करार दिया जा चुका है!
रवीश,सोशल मीडिया ने जब आप लोगों से जज बनने का अधिकार छीन लिया, पत्रकारों व एंकरों पर सही रिपोर्टिंग के लिए दबाब बनाना शुरू किया तो झुंड बांधकर एक लाइन पर हो रही रिपोर्टिंग का दौर समाप्त हुआ! अभिजातवर्गीय पत्रकारों का एकाधिकार टूटा! तो आप जैसों को सोशल मीडिया और अलग लाइन लेने वाले पत्रकारों से दिक्कत होने लगी!
रवीश कुमार, आपकी कुंठा अभिजातवर्गीय पत्रकारों के पाखंड उजागर होने से पैदा हुई है। और यह मैं एक पत्रकार की हैसियत से कह रहा हूं। मेरा भी 15 साल की पत्रकारिता का अनुभव है और बड़े अखबारों का अनुभव है! यह इसलिए कह रहा हूं कि जो आपके गिरोह का नहीं, आप लोग उसे पत्रकार मानते ही नहीं! आज पत्रकारिता के गिरोह टूटने का दर्द एनडीटीवी के ब्लैक स्क्रीन और आपकी गमगीन आवाज से जाहिर हो गया! अब पत्रकारिता मठाधीशों के चंगुल से आजाद है! और यही जनतांत्रिक पत्रकारिता आप, राजदीप और बरखा जैसों को दर्द दे रहा है!