जेएनयू सहयोगी। कम्युनिस्ट किसी के सगे नहीं होते! यह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में बलात्कार की हालिया एक घटना से साबित होती है! जेएनयू में बलात्कार की शिकार लड़की न केवल कम्युनिस्ट विचारधारा की है, बल्कि उसके परिवार ने भारत-पाकिस्तान में कम्युनिस्ट आंदोलन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है! यही नहीं, इस लड़की ने भी वामपंथी यौन आजादी के विचारधारा की अगुवाई करते हुए जेएनयू में ‘किस आॅफ लव’ आंदोलन की बुनियाद रखी थी! इतना ही नहीं, इस आंदोलन को वह जेएनूय कैंपस से बाहर निकाल कर सड़कों और संघ कार्यालय तक ले गई थी! लेकिन वह भूल गई कि सड़क पर की जा रही यौन पशुता, उसके साथी द्वारा बंद कमरे और फिर पूरे हाॅस्टल में उसकी गरिमा को चकनाचूर करके भी दोहराई जा सकती है!
सड़क का ‘किस आॅफ लव’, जेएनयू हाॅस्टल के ‘न्यूड परेड’ में कब बदल गया, उस लड़की को पता ही नहीं चला? अब उसके कम्युनिस्ट साथी उसका साथ देने की जगह उसके बलात्कारी साथी का अंदर ही अंदर साथ दे रहे हैं, ऐसी सूचना है! यही वास्तव में वामपंथ का काला चरित्र है, जो ज्यादातर तो ढंका रहता है, लेकिन कभी-कभी खुलकर सामने आ भी जाता है तो अपनी गंधाती विचारधारा को बचाने के लिए उसे ढंकने का सार्वभौमिक प्रयास शुरु हो जाता है!
सूत्रों के अनुसार, कम्युनिस्ट परिवार की उस लड़की की अस्मत को उसके ही कम्युनिस्ट साथी आरोपी अनमोल रतन ने जेएनूय हाॅस्टल के कमरे में रात के समय न केवल रौंदा, बल्कि सुबह फिर से उसे रौंदने में जुट गया! लड़की ने जब दोबारा बलात्कार का विरोध किया तो कम्युनिस्ट आरोपी अनमोल रतन ने उसे निर्वस्त्र कर हाॅस्टल के कमरे से बाहर धकेल दिया! ‘किस आॅफ लव’ के जरिए स्त्री-पुरुष यौन उन्मुक्तता को आजादी का जामा पहलाने वाली कम्युनिस्ट विचारधारा की उस लड़की यह गंवारा नहीं हुआ कि कोई उसे निर्वस्त्र कर कमरे से बाहर धकेल दे! यह उसकी गरिमा पर प्रहार था!
हालांकि उसी की विचारधारा की एक महिला कविता कृष्णन व उसकी मां ने टवीटर पर खुलकर स्त्रियों द्वारा अनेक यौन साथियों को चुनने की वकालत की थी, लेकिन कई यौन साथी रखना कम्युनिस्ट स्त्री की अपनी मर्जी है! परंतु यहां मर्जी के बगैर अस्मत रौंदने से लेकर निर्वस्त्र बाहर फेंकने तक का मसला था, इसलिए लड़की इस मामले को पुलिस में लेकर गई! कम्युनिस्ट विचारधारा की इस लड़की को अपने ही आजादी छाप विश्वविद्यालय की जेंडर सेंसेटिव कमेटी पर भरोसा नहीं था, इसलिए उसने पुलिस तक जाने का निर्णय लिया!
जेएनूय सूत्रों के अनुसार, ‘नारी मुक्ति’ ‘बोल की लव आजाद हैं तेरे’ और ‘किस ऑफ लव’ जैसे सड़कछाप जुमलेबाज आंदोलन चलाने वाला कम्युनिस्टों का छात्र संगठन आइसा (सीपीआई-एमएल) का पदाधिकारी अनमोल रतन, पीएचडी का छात्र है। उस पर आरोप है कि उसने अपनी ही कैडर की महिला साथी (पीएचडी छात्रा ) के साथ बलात्कार किया है। जानकारी के मुताबिक जिस महिला छात्रा के साथ बलात्कार हुआ है, वह दलित नहीं है! उसके दलित होने का प्रचार जानबूझ कर आइसा ने अपने कैडर के छात्र नेता अनमोल रतन को बचाने के लिए किया था ताकि पूरे मामले को दलित शोषण से जोड़कर इसे दूसरा ही रूप दे दिया जाए, जैसा कि गैर दलित छात्र रोहित वेमुला को दलित साबित कर इन वामपंथी छात्र संगठनों ने दिया था!
देश के किसी भी कोने में होने वाली घटना पर केंद्र सरकार पर हमला करने के आदी ये बेशर्म छात्र संगठन व उसके नेता, इस बार भी दलित शोषण का प्रोपेगंडा कर इसे केंद्र के पाले में डालने के प्रयास में थे कि सच्चाई सामने आ गई! महिला मुसलमान है! उसकी मां मुसलमान और पिता हिंदू हैं, लेकिन वह खुद का उपनाम मुसलमान ही लगाती है! इस महिला की दूसरी बड़ी पहचान यह है कि यह उस बड़े कम्युनिस्ट परिवार से आती है, जिसने आजादी से पहले भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में न केवल सक्रिय रूप से भाग लिया था, बल्कि बंटवारा होने पर पाकिस्तान में भी कम्युनिस्ट पार्टी की नींब रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी! यही नहीं, इस महिला के एक रिश्तेदार, इस वक्त कांग्रेस पार्टी के एक कद्दावर नेता हैं! यही कारण है कि कम्युनिस्टों द्वारा इसे दलित शोषण का रूप देने का षड़यंत्र विफल हो गया और आइसा के ‘अनमोल रतन’ को आत्मसमर्पण करना पड़ा!
जानकारी के मुताबिक रेप का आरोपी छात्र अनमोल रतन, छात्रा को अपने आवास ब्रह्मपुत्र छात्रावास के अपने कमरे में ले गया और उसको कुछ पीने के लिए दिया। लड़की का आरोप है कि पीने वाले पदार्थ में अनमोल ने बेहोश करने वाली दवा मिला दी थी, जिसके कारण वह बेहोश हो गई और उसने बेहोशी में उसके साथ बलात्कार किया। उसी हाॅस्टल के छात्र बातचीत में बताते हैं कि जब लड़की को होश आया तो उसने पाया कि उसके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है। पहले तो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और केवल अपने कपड़े की मांग की! उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न देखकर आरोपी अनमोल रतन ने उसे कपड़े देने की जगह, एक बार फिर से उसके साथ बलात्कार करना चाहा! इस पर लड़की ने मना कर दिया।
छात्र बताते हैं कि वह मना करती रही और अपने कपड़े मांगती रही, जिसकी आवाज रूम से बाहर तक आ रही थी, लेकिन अनमोल उसे कपड़े पहनने को नहीं दे रहा था। यही नहीं, आरोपी ने उसे नग्न ही कमरे से निकल जाने को कहा! इसके कारण लड़की उससे चिढ़ गयी और उसने वसंत कुंज (नार्थ) थाने में जाकर इसकी शिकायत दर्ज कराई! ज्ञात हो यह वही महिला है जिसने आरएसएस के दिल्ली स्थित झंडेवालान में जाकर ‘किस ऑफ लव’ का प्रदर्शन किया था और जेएनयू में भी ‘किस ऑफ लव’ रैली को लीड किया था।
आपको ज्ञात होना चाहिए कि पीड़िता ने यूनिवर्सिटी स्थित ‘जेंटर सेंसेटिव कमेटी आॅन सेक्सुअल ह्रासमेंट में शिकायत नहीं की है, जबकि यह इस तरह के मामले में विश्वविधालय की सुप्रीम बॉडी है। इसका मतलब है कि उस पीड़िता को इस कमेटी में कोई विश्वास नहीं है, क्योंकि उस पीड़िता को पता है कि कैसे इसे वामपंथियों ने इस कमेटी को पोलिटिकल टूल्स के रूप में इस्तेमाल किया है। चूँकि मामला वैचारिक घर का है तो निश्चित ही फैसला उसके विरुद्ध होगा जहाँ पर पीड़िता को ही दोषी करार दिया जायेगा! नारी-पुरुष समानता का नारा लगाने वाले वामपंथियों के संगठन में ऐसा ही होता रहा है! बलात्कार और यौन शोषण के आरोपी पुरुषों को शायद ही कभी दोषी ठहराया जाता है!
कम्युनिस्टों ने तरह-तरह से किया इसे दबाने का प्रयास
हालाँकि जेएनयू के कुछ संगठन इस पर कठोर कार्रवाई के पक्ष में हैं, लेकिन चूँकि वामपंथी संगठनों का इतिहास बताता है कि ये अपने कैडर को तरह-तरह का पैतरा आजमा कर को बचाने में माहिर हैं, इसलिए इस बार भी इन संगठनों ने ऐसा ही प्रयास किया! पहले इन्होंने यह बताने की कोशिश की कि पीड़िता दलित है ताकि देश में चल रहे फर्जी दलित शोषण के मुद्दे में इसे भटकाया जा सके, लेकिन यह चाल कामयाब नहीं हो पाई! इसके बाद आइसा ने कहा की दोनों की पहचान उजागर न की जाए, क्योंकि जेंडर कमेटी में ऐसा प्रावधान है! इसके बाद इस मामले को दबाने के लिए जेएनयू में छात्र संघ चुनाव के लिए लिंगदोह कमेटी का विरोध करने के लिए एक यूनिवर्सिटी जनरल बॉडी मीटिंग बुला ली, लेकिन रेप वाले केस पर चर्चा नहीं की कि यह मामला गंभीर है, इसलिए उन दोनों के बारे कोई बात नहीं करे या उनकी आइडेंटिटी न बताई जाये! इस सब से ही पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंची है।
आपको ज्ञात होना चाहिए की यही वामपंथी संगठन 2014 फरवरी में जेएनयू/एसआईएस के तत्कालीन डीन प्रो. के वारिकू के खिलाफ जीएससीएएसएच की उस समय की रिप्रेजेन्टेटिव के नेतृत्व में सभी वामपंथी संगठनो ने रेफरेंदम करवाया कि चूंकि उनके ऊपर यौन शोषण का केस है, इसलिए उनको कोई प्रशासनिक पोस्ट नहीं दी जा सकती है! जबकि जीएससीएएसएच में वादी और प्रतिवादी दोनों की पहचान गुप्त रखी जाती है, तो फिर उस वक्त इन वामपंथी संगठनों ने ऐसा क्यों किया?
इसी तरह, आइसा कैडर व पदाधिकारी अकबर चौधरी और सरफराज के ऊपर जब एक लड़की ने यौन शोषण का केस किया तो अकबर चौधरी और सरफराज दोनों ने बाकायदा पोस्टर निकालकर उस लड़की की पहचान उजागर क्यों की? इस दोगली वामपंथी चालों के कारण ही पीड़िता को अपनी ही विचारधारा वाले कम्युनिस्ट संगठन पर भरोसा नहीं है, इसलिए उसने पुलिस में’आइसा के अनमोल रतन’ की शिकायत कर दी!