श्वेता पुरोहित। भगवान श्रीकृष्ण के समय एक पौंड्रिक नाम का राजा था जो स्वयं को भगवान कहता था. इसके राज्य का नाम करूष था. यह अपने आपको ही वासुदेव कहता था और कृष्ण जी को ग्वाला कहता था. इसके साथ बहुत से लोग भी उसको भगवान मानकर पूजने लगे थें. काशिराज भी इसके मित्र थें. एक बार ज़ब बलराम जी बृंदावन गए तब इसने श्रीकृष्ण को द्वारिका में अपना दूत भेज कर कहलवाया कि असल भगवान वासुदेव महाराजा पौंड्रक हैं और आप श्रीकृष्ण, भगवान के चिन्हो जैसे सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, कोस्तभु मणि, माला आदि को त्याग दो और पौंड्रक कप भगवान स्वीकार कर लो अन्यथा आपको भगवान पौंड्रक से युद्ध करना पड़ेगा और वह आपसे इस कारण कुपित हैं और आपका वध कर देंगे. महाराजा उग्रसेन कि सभा द्वारिका में सभी लोग उस दूत के इस विचार को जानकर हंस पढ़े। भगवान श्री कृष्ण ने उग्रसेन महाराजा कि राजसभा में ही पौंड्रक के दूत को कहलवा दिया कि में अपने चिन्हो को नहीं त्यागूंगा और शीघ्र ही आकर आपके महाराजा की युद्ध की अभिलाषा भी पूरी करूँगा और उनसे युद्ध करने पहुँचूंगा.
दूत वापस चला गया और उसने भगवान श्रीकृष्ण का सन्देश पौंड्रक अपने राजा को दे दिया कि श्रीकृष्ण ने आपसे युद्ध कि चुनौती स्वीकार कर लि हैं और वह शीघ्र हि आपसे युद्ध हेतु आएंगे.
इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण अपने रथ पर सवार होकर अपने सारथी दारुक को लेकर करूष राज्य कि तरफ चल दिए युद्ध करने के लिये. इस समय पौंड्रक करूष से निकलकर काशी नरेश का मेहमान बना हुआ था. अतः कृष्ण जी ने काशी नगरी को चारो तरफ से घेर लिया. राजा पौंड्रक भी बलवान योद्धा था, जैसे ही उसने सुना कि कृष्ण ने काशी को घेर लिया हैं तो वह भी यूध करने आ पहुंचा. उसकी सेना दो अक्षौहिणी थी और काशिराज ने भी उसकी मदद कि तथा अपनी तीन अक्षौहिणी सेना श्री कृष्ण से लड़ने भेजी. इस तरह पांच अक्षौहिणी सेना कृष्ण जी से लड़ने तैयार होकर आयी.
इस समय पहली बार पौंड्रक और श्री कृष्ण एक दूसरे के सामने आये. श्रीकृष्ण ने देखा कि पौंड्रक ने भी शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए हैं. वह शारंग धनुष लिए था और उसके वक्ष पर श्री वत्स का निशान था. उसके गले में भी एक कौस्तुभ मणि कि माला शोभायमान थी. उसने श्रीकृष्ण कि पूर्ण नकल करते हुए एक पुष्पमाला भी गले में डाल रखी थी. उसके रथ के ध्वज पर भी गरुड़ का चिन्ह भी था. उसने सिर पर अत्यंत मूलयवान मुकुट धारण किया हुआ था और तेगा मछली के कुंडल उसके कानों में जगमग कर रहे थें. अर्थात वह बिल्कुल श्रीकृष्ण का दूसरा रूप बनाये हुए था तथा भ्रम पैदा कर रहा था कि असली श्रीकृष्ण वही हैं अतः भगवान वह खुद है और कृष्ण मात्र ग्वाला है.
श्रीकृष्ण और पौंड्रक में युद्ध आरम्भ हो गया. पौंड्रक के सैनिक श्रीकृष्ण पर अनेकानेक आयुधों से हमला करने लगे. उन्होंने पौंड्रक और उसके सेनिको के समस्त अस्त्र काट दिए और अपने अस्त्रों के प्रहार से उसके रथ हाथी घोड़े और पैदल सेनिको को तितर वित्तर कर दिया. श्रीकृष्ण के पक्ष के योद्धा भी पूरी शक्ति से युद्ध करने लगे.
अब श्रीकृष्ण ने पौंड्रक को सामने देख उससे कहा, कि पौंड्रक तुमने मुझसे जिन चिन्हो को त्यागने का आदेश दिया था, अब में तुम्हे इस मिथ्या रूप को त्यागने के लिए विवश कर दूँगा. तुम चाहते थें कि में तुम्हारी शरण आ जाउ, तो अब आपको मैं ये अवसर देता हूँ कि यदि बचना चाहते हो तो मेरी शरण आ जाओ. नहीं तो में अब तुम्हारा वध कर दूंगा. पौंड्रक ने श्रीकृष्ण कि बात अनसुनी कर दी और इसके बाद दोनों में भीषण युद्ध हुआ. श्री कृष्ण ने चक्र सुदर्शन से पौंड्रक का सिर काट दिया और सिर काटकर काशी नगर में चौराहे पर लटकवा दिया. कशिराज भी इस कटे हुए सिर को श्री कृष्ण का ही सिर समझकर अपने मित्र पौंड्रक को यश गान करते हुए युद्ध क्षेत्र में मिलने आया. वहीं पर कृष्ण भगवान ने काशिराज का भी वध करके उसका सिर भी काशी नगरी के चौराहे पर उसके अपने महल के सामने ही लटका दिया. इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने पौंड्रक और काशिराज दोनों का ही उद्धार कर दिया.
इसके बाद युद्ध जीतकर और काशीराज तथा महाराज पौंड्रक का वध कर भगवान श्रीकृष्ण अपनी राजधानी द्वारिका वापीस लोट गए.
काशिराज का एक पुत्र था उसका नाम सुदक्षिण था. अपने पिता के अंतिम संस्कार करने के बाद उस ने प्रण किया कि वह श्रीकृष्ण का वध करेगा और पितृ ऋण से मुक्त होगा. उसने भगवान शिव कि तपस्या करके उनको प्रशन्न कर लिया और उन से श्रीकृष्ण के वध का वरदान माँगा. इस तप कि अग्नि से एक व्यक्ति निकला और यह व्यक्ति सीधे द्वारिका कृष्ण वध करने हेतु चला गया. इसने द्वारिका नगरी को भस्म करना शुरू किया. तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिवजी के इस आग्नेय दैत्य सहित उस यज्ञ के पुरोहित, राजा सुदक्षिण आदि सब को भष्म कर दिया द्वारका से ही उन्हें काशी जाना भी नही पड़ा. इस तरह श्री कृष्ण ने द्वारिका के साथ काशी को भी काशिराज सुदक्षिण से मुक्त कर दिया. सुदक्षिण का भी उद्धार हो गया.
यदि हम विचार करें तो वर्तमान में भी यही स्थिति है. एक और विष्णु जी पैदा हो गए हैं और उनका मानना है कि श्री राम केवल एक महापुरुष थे. अब सारे वैदिक शास्त्र बदलकर उनके नाम की एक और गीता लिखी जाएगी. उनके अपने मत के आचार्य भी हैं और भक्त भी जो प्रभु की भक्ति छोड़कर दिन रात अपने पौंड्रक की ही भक्ति में लीन रहते है 😄
जब ऐसा लगता है कि कलियुग में मनुष्य इससे ज्यादा नीचे नहीं गिर सकता तब कुछ और देखने को मिल जाता है. प्रभु की लीला अपरंपार है. उनकी लीला वही जानें🙏
प्रभु श्रीराम सबकों सद्बुद्धि दें
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