(तस्वीर: साभार)
Sonali Misra. म्यांमार से चलकर वह आए और बर्मा से लेकर जम्मू तक का सफ़र तय कर लिया। और यह सफर कैसे तय किया होगा, यह पता नहीं चल पाया। उन्होंने देश में आकर लगभग समस्त जरूरी कागजात बनवा लिए और हमारे बीच लगभग स्वीकार्य स्थापित हो गए।
परन्तु इनकी सहायता करने वाले लोगों ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर रोहिंग्या मुसलमानों को उनके ही देश से क्यों भागने के लिए मजबूर होना पड़ा और जब इतने इस्लामिक देश हैं, तो वह किसी भी देश में जा सकते थे, पर भारत आना और उस पर भी जम्मू जाना चुना? कैसे म्यांमार से आकर वह पूरे देश में फ़ैल गए? इनके मददगार कौन है और विशेषकर जम्मू में ही इन्हें क्यों बसाया गया और आज से नहीं वह न जाने कितने वर्षों से रह रहे हैं।
इन्हें भारत से हटाए जाने को लेकर कई याचिकाएं डाली गईं, और कई बार कई मंचों से बात हुई। पर उनके पक्षधर भी सामने आ गए, मानवाधिकारों की बात करने वाले आ गए। प्रशांत भूषण जैसे व्यक्तियों ने कहा कि उन्हें ऐसे बाहर नहीं निकाला जा सकता है। परन्तु प्रश्न तो यह है ही कि क्यों अवैध घुसपैठियों को बाहर नहीं निकाला जा सकता है।
कई मुद्दों पर जनहित याचिकाएं डालने वाले वकील एवं भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले पर भी एक याचिका उच्चतम न्यायालय में डाली थी और उसके आधार पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से जबाव माँगा है। अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दायर की थी कि वह केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही यह नोटिस जारी करे कि वह एक वर्ष में बांग्लादेशी, रोहिंग्या समेत सभी अवैध घुसपैठियों को उनके मूल देश वापस भेज दें। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार एवं सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है।
इसी के साथ कुछ दिन पहले जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों पर सरकार की ओर से कार्यवाही की गयी थी। और इस पर विवाद भी हुआ था। इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका के उत्तर में यह कहा था कि भारत पूरे विश्व से अवैध घुसपैठियों की राजधानी नहीं बन सकता है।
इसीके साथ न्यायालय से केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि यह न्यायालय का अधिकार नहीं है कि वह इस मामले में दखल दें। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार यह उच्चतम न्यायालय का दायरा नहीं है कि वह यह तय करे कि दूसरे देशों के साथ रिश्तों पर दखल दें।
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ज्ञातव्य हो कि उच्चतम न्यायालय इन दिनों रोहिंग्या मुसलमानों पर कई याचिकाओं को सुन रहा है। इन्हीं में यह याचिका दिल्ली में रहने वाले रोहिंग्या मुस्लिम ने दायर की थी। इस याचिका पर प्रशांत भूषण ने रोहिंग्या मुसलमानों का पक्ष रखा था। और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का एक निर्णय पढ़ते हुए कहा था कि जब हम जानते हैं कि इन लोगों पर फिर से सेना के द्वारा अत्याचार किए जाएंगे तो भारत को जीवन के अधिकार की रक्षा क्यों नहीं करनी चाहिए।
वहीं कल की याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा कई खतरों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि म्यांमार और बांग्लादेश से आ रहे यह रोहिंग्या मुसलमान जनसांख्यकी के लिए खतरा हैं। वह जनसँख्या असंतुलन उत्पन्न कर रहे हैं और वह देश की सुरक्षा एवं अखंडता के लिए खतरा हैं।
अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि देश का जनसांख्यकीय संतुलन बहुत बिगड़ गया है, और बांग्लादेश एवं म्यांमार से आने वाले अवैध घुसपैठियों के कारण सीमावर्ती जिले इस घुसपैठ से बहुत प्रभावित हो रहे हैं। याचिका में उन्होंने कहा कि असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे सीमावर्ती प्रदेशों में राष्ट्रीय औसत की तुलना में जनसंख्या में तेज वृद्धि देखी गयी है और अवैध प्रवासी देश के शेष हिस्सों में जाने के लिए बांग्लादेश को मार्ग के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
अश्विनी उपाध्याय ने साथ ही याचिका में यह भी अनुरोध किया है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया जाए कि जाली रूप से पैन, आधार कार्ड, पासपोर्ट, राशन और वोटर पहचानपत्र और शेष दस्तावेजों को बनाना गैर कानूनी और अवैध घोषित किया जाए।
याचिका के आधार पर सरकार को भेजे गए नोटिस का विश्व हिन्दू परिषद ने भी स्वागत किया है। डॉ. सुरेन्द्र जैन ने बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए आशा व्यक्त की कि अब इन घुसपैठियों के बहाने राजनीति करने वालों के दिन लदने वाले हैं और अब समय आ गया है जब इन सभी अवैध घुसपैठियों को बाहर निकाला जाए।
यह एक अजीब विडंबना है कि जो लोग रोहिंग्या मुसलमानों को जबरन भारत में बसाने को लेकर तुले हुए हैं और हर कदम उठा रहे हैं, यह वही लॉबी और लोग हैं जो न केवल आतंकवादियों के लिए रात में न्यायालय ज़ाते हैं बल्कि वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अत्याचार सहने वाले हिन्दुओं के लिए लाए गए नागरिकता क़ानून के विरोध में भी आवाज़ उठाते हैं। पड़ोसी देश का पीड़ित हिन्दू वापस आ न पाए और रोहिंग्या और बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिये वापस जा न पाएं, ऐसा यह लोग करते हैं। यह करने में उनका क्या स्वार्थ है यह प्रश्न आवश्यक हो उठता है।
क्या आपराधिक आंकड़े इस बात की गवाही नहीं देते हैं कि अवैध रूप से निवास कर रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान यहाँ पर एक नहीं तमाम तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं।
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि आज भारत में कम से कम चार करोड़ घुसपैठिये रह रहे हैं। अब जरा सोचकर देखिये कि जिन संसाधनों पर केवल हमारे देश के नागरिकों का अधिकार है, जिन रोजगारों पर हमारे देश के नागरिकों का अधिकार है उस पर यह अवैध घुसपैठिये अपना कब्ज़ा कर रहे हैं।
यह आशा व्यक्त करनी चाहिए कि भारत शीघ्र ही इन अवैध घुसपैठियों से मुक्त हो।