मूवी रिव्यू : साइलेंस-कैन यू हिअर इट
विपुल रेगे। एक सेवानिवृत्त जज की बेटी लापता हो गई है। वह अपनी एक दोस्त से मिलने उसके घर गई थी। उसकी दोस्त एक विधायक की पत्नी है। विधायक की पत्नी भी उसी दिन सीढ़ियों से गिरकर कोमा में चली गई है, जिस दिन वह लड़की गायब हुई। लड़की की लाश विधायक के घर से बहुत दूर पाई गई है। एसीपी अविनाश शर्मा को इस हाई प्रोफाइल केस की ज़िम्मेदारी दी गई है। लाख प्रयास करने के बाद भी अविनाश को इस केस की खोई कड़ी नहीं मिल पा रही है।
महिला निर्देशक अबन भरुचा हंसदेव ने इस फिल्म को निर्देशित किया है। महज दो शार्ट फिल्म बनाने वाली अबन ने साइलेंस बनाकर एक लंबी छलांग लगाई है। ये एक आदर्श क्राइम थ्रिलर है, जिसमे फिल्म के आखिर क्षण तक पता नहीं लग पाता कि हत्या करने वाला कौन है। सस्पेंस को आखिर तक बनाए रखना इसकी सबसे बड़ी यूएसपी है।
निर्देशक शुरु से ही कहानी को बिना भटकाए एक ही ट्रेक पर चलाती है। एसीपी अविनाश शर्मा क़ातिल के बिलकुल पास खड़ा है लेकिन उसे देख नहीं पा रहा। वह समझ नहीं पा रहा कि उससे और उसकी टीम से इस जाँच में कहाँ गलती हो रही है। कलाकारों का अभिनय फिल्म का एक और सशक्त पक्ष बनकर उभरता है।
मनोज वाजपेयी, अर्जुन माथुर, बरखा सिंह, प्राची देसाई, साहिल वैद और शिशिर शर्मा ने डूबकर अभिनय किया है। मनोज वाजपेयी इस समय अपने कॅरियर के शीर्ष पर बने हुए हैं। पुलिस अधिकारी की भूमिका उन्हें रास आती है। वे इस किरदार में परफेक्ट हो चुके हैं। एसीपी अविनाश शर्मा का किरदार निजी जीवन के खालीपन से उबा हुआ है।
इस किरदार का आंतरिक द्वन्द मनोज वाजपेयी अपने निखरे हुए अभिनय से रेखांकित करते हैं। निश्चित ही वे फिल्म के सभी कलाकारों पर भारी पड़ते हैं। निर्देशक ने उनका किरदार बहुत स्ट्रांग बनाया है। फिल्म के अंतिम क्षण तक सस्पेंस बनाए रखना निर्देशकीय कौशल से ही आता है। फिल्म का स्क्रीनप्ले बहुत स्मूद है।
इसके द्वारा हर कलाकार की कैरेक्टर बिल्डिंग परदे पर बहुत निखर कर आती है। फ़िल्में न चलने से परेशान बॉलीवुड के लिए ऐसी साइलेंस जैसी फ़िल्में आना राहत की बात है। मनोज वाजपेयी के स्टारडम से ये फिल्म और खिलेगी। आज बॉलीवुड के पास कंटेंट की भारी कमी देखी जा रही है।
उसके पास कुछ नया है ही नहीं। कंटेट की नज़र से देखे तो श्रीराम राघवन की ‘अंधाधुन’ पिछले तीन साल में आई सबसे उत्कृष्ट फिल्म है। इसी कड़ी में साइलेंस को भी रखा जा सकता है। ये फिल्म आम दर्शकों के लिए नहीं है। जो दर्शक फिल्म की बारीकियों को समझते हैं, उनके लिए ये एक बेहतरीन पेशकश है।
फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत शांति से सामने आता है और दर्शक के दिमाग में खलबली मचाते हुए चला जाता है। दर्शक सोच ही नहीं सकता कि अमुक कैरेक्टर ही हत्यारा है। मनोज वाजपेयी के सुंदर अभिनय और अबन के अचूक निर्देशन के लिए ये फिल्म देखना बुरा नहीं है। ये फिल्म दर्शक के पूरे पैसे वसूल कराती है और टाइप्ड फिल्मों से इतर उसे ताज़गी का अनुभव करवाती है।