अरुण मिश्रा | जबसे अलीबाबा के जैक मा ने चीन की बामपंथी सरकार के नीतियों की कड़ी आलोचना की थी, तभी से ही जैक मा चीन की सरकार के निशाने पर नजर आ रहे है। जैकमा व अलीबाबा पर तरह तरह के फाइन लगाये जा रहे हैं। यही है बामपंथ का असल चेहरा जहां भारत के बामपंथी एक तरफ फ्रीडम ऑफ स्पीच व ‘बोलो कि लब आज़ाद है’ कि नारे लगाते रहते हैं। वही दूसरी तरफ उनके वैचारिक पापा मावो के देश मे बोलने वालों को कुछ इस प्रकार प्रताड़ित किया जाता है।
चीन की बामपंथी सरकार अरबपति कारोबारी जैकमा की कम्पनी अलीबाबा के पीछे पढ़ गई है, इसे पहले भी कुछ ऐसे हालात बने थे जिसके चलते जैक मा को कई महीनों तक गायब रहना पड़ा था। अब उनकी कंपनी की मुसीबत बढती नजर आ रही है, क्योंकि चीनी सरकार ने अलीबाबा पर 2.78 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया है।’ सरकार द्वारा लगाया गया यह जुर्माना कंपनी के खिलाफ की गई अब तक की कार्रवाई में सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
चीनी सरकार ने क्यों लगा जुर्माना : चीनी बामपंथी सरकार ने आरोप लगाए है कि, ‘जैक मा की कंपनी अलीबाबा ने एकाधिकार विरोधी यानी एंटी-मोनोपॉली नियमों का उल्लंघन करने की वजह से ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा पर भारी जुर्माना लगा है। चीन की इस कंपनी पर मार्केट रेगुलेटर स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेग्युलेशन’ (SAMR) ने 18 अरब युआन यानी 20.75 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना ठोका है।
शनिवार को इसकी जानकारी चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने इसकी जानकारी दी। चीनी सरकार ने जैक मा की कंपनी अलीबाबा पर जितना जुर्माना लगाया गया है वो कंपनी के 2009 के कुल रेवन्यु के 4% हिस्से के बराबर है। अलीबाबा का शेयर नवंबर 2020 से अब तक 30% से ज्यादा गिर चुका है। इस जुर्माने की तह में जाना आवश्यक है और आपका ये जानना आवश्यक है कि ऐसा क्या हुआ था पिछले साल की जैकमा को गायब होने पड़े?
मिडिया में चल रही खबरों के अनुसार, जैक मा ने पहले पिछले साल 2020 के अक्टूबर माह में चीन की बामपंथी सरकार की आलोचना की थी। इसके बाद वह काफी समय तक लापता रहे। उनकी न ही किसी को कोई खबर थी और न ही उसके बाद से जैक मा किसी भी सार्वजनिक जगहों पर उपस्थित नजर आए। इस घटना के काफी समय बाद जरूर फिर जैक मा एक कार्यक्रम के दौरान देखे गए थे।
जो कि एक ग्रामीण शिक्षक पुरस्कार समारोह था। यह कार्यक्रम सालाना होता है, इसकी लांचिंग साल 2015 में जैक मा फाउंडेशन ने ही की थी। इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है कि जुर्माने की राशि भले ही बहुत छोटी हो, लेकिन इसने चीन की बामपंथी सरकार की मंशा को साफ जाहिर कर दिया है कि वह टेक कंपनियों पर सख्ती के मूड में है।