Sonali Misra, Noida | कोरोना की दूसरी लहर इस समय कहर ढा रही है। हर राज्य ने अपने लिए नियम बनाए हुए हैं। मगर इन दिनों चूंकि हरिद्वार में कुम्भ का मेला चल रहा है और वहां पर पूरे देश से श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं और सोमवती अमावस्या के अवसर पर शाही स्नान हुआ है, कल फिर से एक बार फिर शाही स्नान होना है। कोरोना के प्रबंधन में विफल रही सरकारें अपनी बन्दूक कुम्भ की ओर तान रही हैं। जबकि एक बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि हरिद्वार में वही प्रवेश कर सकता था जिसके पास कोरोना निगेटिव की रिपोर्ट हो। और यह नियम आज से नहीं बल्कि 28 फरवरी से लागू है। तो स्पष्ट है कि जो भी श्रद्धालु आ रहे हैं, वह कोरोना पोजिटिव नहीं हो सकते हैं, जैसा आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने स्वयं कहा है
कुछ बातों पर गौर करते हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि क्यों कुम्भ और तबलीगी जमात की तुलना नहीं हो सकती है, तुलना करते हैं:
कुम्भ | तबलीगी जमात |
1. कुम्भ हर बारह वर्ष में होने वाला हिन्दुओं का आयोजन है, किसी संस्था का निजी आयोजन न होकर यह पूरे हिन्दू धर्म का आयोजन है, जिसमें स्नान की विशेष तिथियाँ होती हैं | 1. तबलीगी जमात एक निजी संस्था है, जिसका उद्देश्य इस्लाम का प्रचार प्रसार है, और मरकज का आयोजन कभी भी किया जा सकता है। |
2. इस समय किसी भी धार्मिक गतिविधि पर प्रतिबन्ध नहीं है | 2. जिन दिनों जमाती मरकज के लिए एकत्र हो रहे थे, तो उस समय हर प्रकार के धार्मिक एवं सामाजिक जमावड़े पर प्रतिबन्ध था। लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबन्ध था। |
3. हरिद्वार में कुम्भ में प्रवेश करने की पहली शर्त ही है कि कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिए। बिना निगेटिव रिपोर्ट के उत्तराखंड में प्रवेश नहीं है। | 3. मरकज के समय ऐसा कोई नियम नहीं था। जो भी इस मजहब के प्रचार में हिस्सा लेने आ रहा था, वह बिना जांच के आ रहा था। |
4. कुम्भ में आने वाले लोग जांच से डर नहीं रहे हैं। | 4. इन लोगों ने जानबूझ कर जांच नहीं कराई थी |
5. कुम्भ में आने वाले श्रद्धालु किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार व्यवस्था के साथ नहीं कर रहे है। संत भड़का नहीं रहे हैं | 5. इनके दुर्व्यवहार की कहानी पूरी दुनिया ने देखी थी। कैसे नर्सों के साथ दुर्व्यवहार किया, कैसे थूका और कैसे छिपकर बैठ गए थे। इतना ही नहीं कई जमात में आने वाले कई विदेशी मरकजी न जाने कितने स्थानों से मिले थे तबलीगी जमात में आने वाले जमातियों को मौलाना मोहम्मद साद ने भडकाया था और कहा था कि वह सरकार द्वारा लगाए गए फॉलोअप निर्देशों को न मानें और इतना ही नहीं उसने यह तक कहा था कि यह इंसानों के पाप हैं, जिसके कारण कोरोना फ़ैल रहा है। उसने यह कहा था कि सरकार ने जो भी नियम बताए हैं, उनका पालन जरा भी जरूरी नहीं है |
6. कुम्भ खुले में हो रहा है, जहां पर वायरस के संक्रमण की दर अपेक्षाकृत काफी कम है. | 6. मरकज का आयोजन बंद स्थान पर हुआ था, जहाँ पर संक्रमण फैलने की दर अधिक होती है. |
यह कुछ बिंदु हैं, जो कुम्भ के आयोजन को निशाना बनाने वालों को याद रखने की आवश्यकता है। मरकज के समय जो कथित निष्पक्ष चैनल और पत्रकार शांत थे, और हर मूल्य पर थूक से कोरोना फैलाने वालों का बचाव कर रहे थे, वह कुम्भ के पीछे पड़ गए हैं। कुम्भ में भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था के विषय में अविनाश श्रीवास्तव ने कई आंकड़े ट्वीट किए हैं:
एनडीटीवी के साथ साथ कई कथित स्वतंत्र लेखक और पत्रकार कूद पड़े हैं अपना अपना एजेंडा लेकर। वह सभी पत्रकार जो यह बार बार अपील से करते नज़र आ रहे थे कि किसी भी तरह से तबलीगी के बहाने एक विशेष समुदाय को निशाना न बनाया जाए, वही लोग अब कुम्भ के बहाने हिन्दू समाज को पिछड़ा और समाज विरोधी साबित कर रहे हैं।
वह लोग ताक लगाकर बैठे रहते हैं कि कैसे वह सारा का सारा बोझ हिन्दुओं के कंधे पर थोप दें। इतना ही नहीं एक कुम्भ के विरोध में लिखी गयी पोस्ट में एक व्यक्ति ने कहा है “गौ मूत्र पीने वालों को कोरोना नहीं होता।” दो दिन पहले संजय बारू की नई पुस्तक के परिप्रेक्ष्य में वायर को दिए गए साक्षात्कार से भी इनकी इस सोच को देखा जा सकता है।
हिंदी और हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरे हुए इस साक्षात्कार में यह कहा गया है कि अब लोग पुराने मूल्यों का आदर नहीं करते हैं, जो 70 वर्षों से भारत में थे। 70 वर्षों से भारत में हिन्दुओं को कोसने की, उन्हें नीचा दिखाने की और उन्हें हर क्षण हीन व्यक्त करने की संस्कृति रही। हर बार उन्हें अपमानित किया गया, उनके धर्म को बार बार कभी संसद में तो कभी न्यायालय में लाया गया, वैकल्पिक सोच के नाम पर बार बार नायकों को अपमानित किया गया, जिसका परिणाम यह है कि आज पत्रकार और सम्पादक हैरान हैं कि आप कुम्भ पर लज्जित क्यों नहीं हो रहे हैं?
हिन्दुओं को निशाना बनाकर पुछा जा रहा है “आखिर हरिद्वार का कुम्भ होने ही क्यों दिया गया?” सत्तर सालों से बनाए गए विमर्श में कोई आजम खान उत्तर प्रदेश में होने वाले कुम्भ की व्यवस्था देखने वाले हो सकते हैं एवं उसके बाद भगदड़ में लोग मारे भी जा सकते हैं, अव्यवस्था के कारण! यह पिछले सात्तर वर्षों से चला आ रहा विमर्श था, जिसमें हिन्दुओं को मरना और स्वयं पर लज्जित होना सिखाया गया था। तभी पिछले दो तीन दिनों से हिन्दुओं से कहा जा रहा है “कुम्भ न होता तो मर तो न जाते!”
कुम्भ मरकज की भांति मजहब के प्रचार का आयोजन नहीं है बल्कि उस स्थान पर बारह वर्षों में होने वाला आयोजन है। न जाने कितने लोग शाही स्नान के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा करते हैं। और जब बार बार यह कहा जा रहा है कि वहां पर केवल और केवल वही लोग आए हैं, जिनकी कोविड रिपोर्ट निगेटिव है तो हिन्दुओं को स्वयं पर लज्जित होने के लिए क्यों कहा जा रहा है?
बिना नियम जाने एनडीटीवी शाही स्नान से पहले का वीडियो ट्वीट कर रहा है।
जबकि कुम्भ में कोई भी थूक नहीं रहा, कुम्भ में कोई भी पुलिस वालों के साथ अभद्रता नहीं कर रहा और न ही धर्म को लेकर कोई रोना रो रहा है! कोविड 19 के निगेटिव होने का प्रमाणपत्र ला रहा है और स्नान कर रहा है। पर जैसे बारू जी और करण थापर की मायूसी है कि स्वयं पर गर्व करने वाला हिंदी बोलने वाला सांस्कृतिक वर्ग उभर रहा है, वही पीड़ा इन सभी चाटुकार पत्रकार और लेखकों की है जो अभी तक नहीं समझ पा रहे हैं कि एक ऐसा वर्ग उभर रहा है, जो कोविड 19 के निगेटिव होने का प्रमाणपत्र भी लेता है और साथ ही स्नान भी करता है। और ऐसे किसी भी एजेंडे में नहीं फंसता है, जो केवल और केवल उसे ही अपमानित करने के लिए बनाया जा रहा है,
बहुत सही जवाब