आज से लगभग 33 वर्ष पूर्व, जब श्री रामजन्मभूमि आंदोलन चल रहा था तब एक दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने बातचीत के दौरान कहा था कि ‘विश्व में कोई भी संगठन 100 वर्ष से ज्यादा सक्रियरूप से विद्यमान नहीं रहा, संघ भी नहीं रहेगा।’ यह सुनकर मैं हतप्रभ था क्योंकि उस समय संघ की लोकप्रियता अपने उच्चतम शिखर थी।
किन्तु आज लग रहा है कि यह भविष्यवाणी पूर्णतः सत्य थी, आज यही परिलक्षित हो रहा है कि संघ का बहुत तेजी से क्षरण हो रहा है, संघ के अंदर स्वयंसेवक व पूर्णकलिक सभी इस ध्वनि को अनुभव कर रहे हैं।
और इसी कारण संघ में तीव्रता से वैचारिक व संगठनात्मक क्षरण प्रारम्भ हो चुका है, शाखाओं में युवाओं की न्यूनता और नये स्वयंसेवकों की शून्यता इसका एक संकेत हैं कि समाज ने संघ के मूल दर्शन का अनुमोदन करते हुए भी वर्तमान नेतृत्व और उनके विचार प्रवाह को नकार दिया है। उसका कारण संघर्ष की मनोवृती से विरत रहना, संघर्षशील कार्यकर्ताओं को अपना नैतिक समर्थन ना देना और समाज में इस्लामिक जिहाद अथवा ईसाई मिशनरियों से टकराने वाले युवाओं से पल्ला झाड़ने की नीति है।
दूसरे मुस्लिम आबादी के बढ़ते दबाब के चलते भारत में इस्लामिक जिहादी 1946 वाली हिंसक प्रवृत्ती की ओर बढ़ रहे हैं, तब संघ स्वयं को इसका प्रतिउत्तर देने की स्थिति में नहीं पा रहा है, अतः संघ ने अपने को राष्ट्रवादी स्वरूप को धर्मनिरपेक्षता की और धकेलने की कोशिश प्रारम्भ कर दी हैं, जिसका वह सदैव आलोचक रहा है।
अभी हाल ही में संघ प्रमुख का मज़ार पर जाकर चादर चढ़ाना (जब की मज़ारों को स्वयं इस्लाम मान्यता नहीं देता), उनका यह कहना कि ‘डीएनए एक है, प्रत्येक मस्जिदों के नीचे शिवलिंग नहीं खोजने चाहिए, राष्ट्रवाद शब्द का प्रयोग बंद कर देना चाहिए, कुछ दिन मूर्तियों की पूजा से परहेज करना चाहिए, आदि आदि।’
1921 में खिलाफत आंदोलन के दौरान हुए देशव्यापी मुस्लिम आक्रमणों से उत्पन्न परिस्थियों, केरल के मालावर में मार दिये गये हज़ारों हिन्दुओं, हिन्दू माँ बहनों के असहनीय अपमान के बाद इस्लामिक हिंसा व जिहाद को रोकने को हिन्दू समाज में एक शक्ति ख़डी करने को संघ का निर्माण डॉ हेडगेवार ने किया था और संघ उस पथ की ओर बढ़ा भी, किन्तु 1940 में डॉ साहब के अवसान के बाद संघ ने एक संघर्षशील शक्ति निर्माण का रास्ता छोड़ दिया और संघ ने गुरूजी के नेतृत्व में राजनैतिक वर्चस्व कायम कर स्थिति परिवर्तन की नीति का समर्थन किया, यह नीति इस्लामिक जिहादियों और तत्कालीन सत्ताधारियों को भी मुफीद थी, किन्तु संघ नेतृत्व ने इस नीति के अनुपालन के साथ ही समाज में इस्लामिक जिहाद से संघर्ष करने वाले युवाओं का साथ देने से भी पल्ला झाड़ लेने कि नीति अपना ली।
यह अनुभव में आया जब 1946 में डायरेक्ट एक्शन डे, भारत का विभाजन, 1966 का स्वामी करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में हुए गौ हत्या विरोधी आंदोलन के हज़ारों संतों पर गोली चलने से हत्या की घटना, 1975 में आपातकाल का विरोध, 1990 में कश्मीरीयों को घाटी से निकालने की शर्मनाक घटना, रामभक्तों का अयोध्या में नरसंहार, श्री राम जन्मभूमि आंदोलन ने सक्रिय भूमिका निभाने वाले पूज्य शंकराचार्य जनेंद्र सरस्वती को बलात्कार हत्या के मामले में दीपावली कि रात बेशर्मी भरी गिरफ्तारी की घटनाओं पर चुप्पी, बाबरी ढहाने कि गौरवशाली घटना से पल्ला झाड़ना, यह इस तथ्य को स्पष्ट करता है।
ऐसा नहीं है कि बिलकुल भी संघर्ष नहीं हुआ, संघर्ष हुआ खूब हुआ, सब जगह हुआ, बहुत से बलिदान भी हुए स्वयं सेवकों ने प्रताड़ना भी सही, किन्तु वह उनका स्वयं का भवनात्मक संघर्ष था वह शंघ नीति का हिस्सा नहीं था. हाँ उनकी उपलब्धियों को संघ ने समय समय पर अपने खाते में अवश्य दर्ज कर लिया।
बहुत ईमानदारी से कहा जा सकता है कि श्री रामजन्मभूमि आंदोलन स्व0 अशोक जी सिंघल के व्यक्तिगत पुरुषार्थ का प्रमाण था, जिसकी भारी सफलता के चलते कालांतर में संघ इस आंदोलन से जुड़ने को मज़बूर हुआ।
1999 में उड़ीसा में धर्मांतरण कर रहे ईसाई पादरी स्टेंस और उनके बेटों को 1999 में उड़ीसा के क्योंझर ज़िले में भीड़ ने ज़िंदा जला दिया गया था जिसमें दारा सिंह के सहयोगी महेंद्र हेंब्रम को भी उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई, दारा सिंह की सजा पूरी हुए पाँच वर्ष से अधिक हो गया किन्तु वह तिहाड़ जेल में बंद है, किसको चिंता है।
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अब संघ ने एक नीति अपना ली है कि यदि कोई कार्यकर्ता किसी मामले में फंस जायें तो ‘यह हमारा कार्यकर्ता नहीं’ कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं और यदि वह संघ परिधि के बाहर का हिन्दू है तो उसका समर्थन करने का तो कोई औचित्य ही नहीं, यह कैसा हिंदुत्व है, भाई!
और जब हिंदुत्व के लिए संघर्ष करना ही नहीं तो देश को मुर्ख क्यों बना रहे है? दिख रहा है अब आपको सावरकर प्रिय नहीं, गाँधी अच्छा लगने लगा है, तो समझ लो – हिन्दुओं को भी पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन,सुशील पंडित जी,कर्नल आर०एस० एन० सिंह, मेजर. जनरल जी० डी० बक्शी, प्रो कपिल कुमार, ललित लम्बरदार, प्रो० पवन सिन्हा, संदीप देव, जैसे राष्ट्रवादी सुहाने लगे हैं। वन्देमातरम्।
~अभिनव राष्ट्रवादी