नीलकंठ शास्त्री वेदांताचार्य । सुधीर तिवारी (बबलू) उर्फ, प्रज्ञानानंद , पिता नाम–महेश तिवारी, ग्राम – साठई, थाना -पलारी, तहसील–केवलारी, जिला–सिवनी,
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज श्री जी की संस्कृत पाठशाला झोतेश्वर , नरसिंहपुर में पढ़ने के लिए आया था, इसका स्वभाव बहिर्मुख था, इस लिए गुरु जी ने इसे रीवा के भगवती मंदिर में पुजारी के रूप में रखा वहा धनगवन किया वहा से निकाला गया, पुनः इसको राजस्थान कैलाश आश्रम भीनमाल में रखा गया।
वहा से भी निकाला गया। फिर यह स्वतंत्र रूप से घूमने लगा इसने जयपुर में एक माता जी के मकान में कब्जा कर लिया। उसके कागजात अपने नाम करवा लिए उस मकान पर( ७५ ) लाख रुपए का लोन लें लिया और 1 करोड़ रुपए उधार ले कर बनारस में जा कर आचार्य महामंडलेश्वर बन गया।
आचार्य बनते समय इसने दंड का विसर्जन कर दिया योग्य ना होने के कारण, शास्त्रों का ज्ञान ना होने के कारण, अखाड़ा वालो ने भी आचार्य पद से इसे खदेड़ दिया, आचार्य पद से मुक्त होने के बाद फिर दंड ले कर घूमने लगा।
साधु होने के बाद भी अपने परिवार वालों से इसका संबंध हैं, भतीजे इसके साथ रहते हैं। वहीं सारा इंतजाम करतें हैं, जयपुर की एक महिला के घर में निवास करता था। यह सदाचार विहीन व्यक्ति है, सन्यास के योग्य ही नहीं हैं। एक भी श्लोक का अनुवाद नही कर सकता, ऐसे धूर्त व्यक्ति सनातन धर्म का ही नुकसान कर रहें हैं , हिंदुओं को आज इतना खतरा विधार्मियो से नहीं है उससे अधिक खतरा पाखंड भेस धारी हिंदुओं से हैं। जो हिंदुओं के गुरु बनकर हिंदू धर्म का ही नुकसान कर रहे हैं।जिन्हे ये नहीं पता है,शंकराचार्य की नियुक्ति कैसे होती हैं। कोन करता है।
सनातन धर्म हिंदू धर्म को मानने वाले को इसका बहिष्कार करना चाहिए। यह नियम हैं कि जैसे राजा की मृत्यु के बाद उसके संस्कार के पूर्व ही युवराज की घोषणा करनी पड़ती हैं। इसी तरह शंकराचार्य भी धर्म के राजा होतें है। उनके ब्रह्मलीन होते ही उत्तराधिकारी की घोषणा करनें का विधान है।
यह पदलोलुप व्यक्ति जो रुपया देकर के अखाड़े का महामंडलेश्वर बना था, यह बताए कि शंकराचार्य महराज जी को ब्रह्मलीन हुए डेढ़ साल करीब हों गए तो क्या 18 महीनों से दोनों मठों की गद्दी खाली थी?
क्या श्रृंगेरी के जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज द्वारा किया गया अभिषेक प्रमाण नहीं हैं,
दिल्ली में तुम्हारा अभिषेक कोन से शंकराचार्य ने किया ? तुम मठाम्नाय महानुशाषन के एक श्लोक का अनुवाद नही कर सकते, शंकराचार्य जी के ब्रह्मसूत्र के भाष्य की एक पंक्ति का अर्थ लगाना तुमको नहीं आता है, इस लिए तुम्हारा यह पाखंड बहुत दिनो नही चलने वाला हैं। में पंडित नीलकंठ शास्त्री वेदांताचार्य आपसे शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हूं।शास्त्रार्थ संस्कृत भाषा के माध्यम से होगा, आप जब कहे, जहा कहे,मे प्रस्तुत होने के लिए तैयार हूं, आप जैसे ही सूचना देंगे मैं हाजिर हों जाऊंगा।
द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य जी के दोनों उत्तराधिकारी जो वर्तमान में शंकराचार्य है। उन दोनों से मैं मिल चुका हूं उनके प्रवचन भी सुने हैं और उनके साथ संस्कृत में संभाषण भी कर चुका हूं।
ब्रह्मसूत्र का चौथा सूत्र (तत्तु समन्व्यात्) पर मैं शास्त्रार्थ करूंगा सूत्र इस लिए लिख कर बता रहा हूं ताकि आप तैयारी कर सकें (तत्तु समन्व्यात्) पर शंकराचार्य के अतिरिक्त अन्य आचार्यों ने भी कोन सा मत स्थापित किया हैं। उस पर भी शास्त्रार्थ होगां।