
लखनऊ का प्राचीन श्री हनुमान मंदिर बड़े मंगल की प्रथा
डॉ विनीता अवस्थी । श्री राम की अयोध्या से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ नाम में भी लखन( लक्ष्मण जी) का नाम मिलेगा आपको ।वहां के भीड़ -भाड़ वाली सड़कों को पार करते हम जिस जगह पहुंचे उसे अलीगंज बोला जाता है। ड्राइवर जी ने जिस मंदिर के आगे गाड़ी रोकी तो पता चला यह यहां का प्रसिद्ध अलीगंज का हनुमान मंदिर है पर हमें पुराने मंदिर जाना था तो ढूंढते हुए हम चल पड़े वैसे भी ईश्वर को ढूंढने चले तो मार्ग तो वह स्वयं ही बनाते जाते हैं। आखिर चौराहों गलियों को पार करते हम जिस मंदिर के द्वार पर खड़े थे वहां का गुंबद कुछ अलग ही कहानी कह रहा था , शांत परिसर में नीम का पेड़ फिर छोटा सा चबूतरा था द्वार पर सप्त ऋषयों के मध्य श्री गणेश जी विराजे थे। मंदिर के घंटों की ध्वनि से मन प्राण व सातों चक्रों को झंकृत करते हम श्री हनुमान जी के आगे उपस्थित थे। वहां पंडित जी से गुंबद का रहस्य पूछा तो मुस्कुराते हुए उन्होंने बताया यहां कलश के स्थान पर चांद का निशान है। 1792- 1892 के मध्य बेगम आलिया ने निर्माण करवाया था व सम्मान स्वरूप चांद का निशान गुंबद पर लगवाया था।

शबरी के बेर खाने वाले प्रभु के सेवक प्रेम से दी हुई भेंट कैसे अस्वीकार करते? यहां दो ध्वज लहरा रहे हैं एक श्री हनुमान जी का तथा दूसरा वैष्णव पंथ अखाड़ा का है। कुंभ के मेले में हर बार उनका अखाड़ा लगता है। हर बार यही देखा है कि यह अखाड़ा परंपरा हमारे मंदिरों की व्यवस्था को जीवन दे रही महंत खासा राम को स्वप्न निर्देश में स्वयंभू विग्रह मिला, उनके आग्रह पर खुदाई हुई व मंदिर निर्माण हुआ अन्य प्रचलित कथानक के अनुसार तात्कालिक नवाब की बेगम” बेगम आलिया”को स्वप्न में दर्शन हुए और टीले में हनुमान जी की मूर्ति होने का संकेत मिला था। हाथी पर मूर्ति को रखकर गोमती नदी पार कर स्थापित करने का विचार किया गया पर हाथी पुराने मंदिर से आगे नहीं बढ़ा तो वही मूर्ति स्थापित कर दी गई खुदाई में मिली तीन मूर्तियां भी वहीं स्थापित हैं।
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स्थापन काल के दो-तीन वर्ष मे फैली महामारी को दूर करने के लिए बेगम ने बजरंगबली का गुणगान किया तो महामारी समाप्त हो गई उसी दौरान जेठ मास मंगलवार के दिन उत्सव का आयोजन किया गया उसी समय से मंगलवार को उत्सव भोज की परंपरा प्रारंभ हुई थी। यह भी माना जाता है कि सीता माता अपने वनवास के दौरान बाल्मीकि आश्रम जाने से पहले यहां एक रात्रि रुकी थी, तब श्री हनुमान जी ने वहां पर पहरा दिया था। बातचीत के दौरान मंदिर के दाएं तरफ झरोखे से मेरी नजर पड़ी तो एक व्यक्ति को दूल्हे का सेहरा व अन्य सामान सहेजते देखा। उत्सुकतावश मैंने पूछा तो पुजारी जी ने सरलता से बताया कि यह तुलसी विवाह का सामान है इसी स्थल से शालिग्राम जी वर के रूप में निकलते हैं व दूसरे स्थल पर जाकर तुलसी माता से उनका विवाह होता है।

यह पवित्र मंदिर अभी तक हमारी परंपराओं को जीवंत रखे हैं मंदिरों की गोद में ही सदा से सनातन फलता फूलता रहा है। मंदिर के दाई तरफ श्री सत्यनारायण जी का मंदिर है व बाएं तरफ वीणा वादिनी सरस्वती मां का मंदिर है। उसी परिसर में गुरुदेव के चरण तथा उनकी प्रतिमा भी बनी है और गुरु ही तो ईश्वर से मिलाते हैं। परिक्रमा के समय देखा मंदिर के चारों तरफ रामायण के चित्र तथा सीताराम के नाम लिखे थे। पंडित जी ने बताया कि पहले मुसलमान लोग भी यहां दर्शन करने आते थे पर अभी कभी -कभार कोई इक्का-दुक्का आते हैं।
इसी मंदिर से जो जेठ के माह का उत्सव प्रारंभ हुआ था वह धीरे-धीरे लखनऊ के अन्य हनुमान मंदिरों तक पहुंच गया। अगर आपको कभी जेठ के माह में लखनऊ आने का अवसर मिले तो हर मंगलवार मंदिरों व सड़कों के किनारे श्रद्धालु जन लोगों को प्रसाद बांटते मिलेंगे। भीषण गर्मी में भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आती अपितु हर साल उत्सव और निखरता ही जा रहा है यहां आपको लोग गुड़ धनिया से गोलगप्पे तक हर चीज का प्रसाद बांटते नजर आएंगे। जेठ(June) के उन चार पांच मंगलवार को शहर एक त्योहार मनाता हुआ मिलेगा।
पुराने श्री हनुमान मंदिर को “चांद सितारे वाला मंदिर “भी बोला जाता है हमारी संस्कृति भक्तों का धर्म नहीं देखती बेगम आलिया द्वारा की गई भेंट शिरोधार्य की गई। हालांकि जेठ का महीना समाप्त हो गया था मंदिर के अंदर एक परिवार सुंदरकांड का पाठ कर रहा था एक बच्ची के गोद में बाल गोपाल ठाकुर जी से देख कर लगा की भविष्य की पीढ़ी के हाथों में हमारी धरोहर सुरक्षित है।
बाहर सड़क के दूसरी ओर एक छोटा सा परिसर था जिसमें शिव परिवार विराजित था व साथ में ही शनि मंदिर भी था। हम हनुमान जी के द्वार पर आए थे वे हमें बिना खिलाए कैसे जाने देते एक परिवार भंडारे का आयोजन कर रहा था हाथों में प्रसाद लिए मेरी दृष्टि गुंबद की ओर गई “बेगम का चांद सूर्य की किरणों में चमक रहा था ”मन में प्रश्न उठा क्या कोई श्रद्धालु अगर माता की चुनर या भगवे रंग की चादर लेकर किसी मजार पर जाए तो क्या ऐसी स्वीकार्यता मिलेगी इसी उपागोह में हम दूसरे मंदिर की ओर चल पड़े लखनऊ की “चौक की बड़ी काली मां का मंदिर”। आप सभी पर बजरंगबली की कृपा बनी रहे अगली यात्रा में साथ दीजिएगा।
जय श्री राम
।। इति।।
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