इस्लामिक देश मलेशिया में इस्लाम धर्म छोड़ना बेहद ही मुश्किल होता है. लोगों को धर्मत्याग के लिए कभी सिविल कोर्ट तो कभी शरिया कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें एक महिला इस्लाम छोड़ना चाहती है.
मलेशिया के जॉर्ज टाउन के हाई कोर्ट ने एक मलेशियाई सबाहान समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिला को इस्लाम में धर्म परिवर्तन की वैधता को चुनौती देने की अनुमति दे दी है. महिला ने 17 साल की उम्र में इस्लाम अपनाया था लेकिन अब वो नाबालिग हो चुकी है और इस्लाम छोड़ना चाहती है. 21 साल की महिला ने 17 साल की उम्र में अपने प्रेमी से शादी करने के लिए इस्लाम अपनाया था लेकिन कुछ ही महीनों में दोनों का रिश्ता टूट गया और अब लड़की इस्लाम छोड़ना चाहती है.
महिला चाहती है कि अदालत उसके धर्मांतरण पत्र जो कि 11 जून 2020 को जारी हुआ था, उसे अमान्य करार दे और पेनांग इस्लामिक धार्मिक परिषद की तरफ से जारी इस्लामिक पत्र को रद्द कर दे.
सोमवार को एक ऑनलाइन सुनवाई में, हाई कोर्ट के जस्टिस क्वे च्यू सून ने महिला को राज्य के मुस्लिम धर्मान्तरित रजिस्ट्रार की न्यायिक समीक्षा दायर करने की अनुमति दे दी है. महिला को याचिका दायर करने के लिए छुट्टी भी दी गई है.
न्यायिक समीक्षा दायर करने की तीन महीने की समय सीमा पार हो चुकी है जिसे देखते हुए जज ने समय सीमा को भी बढ़ा दिया है. जज के सामने वरिष्ठ सरकारी वकील ने एक पूर्व मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इस्लाम छोड़ने की एक याचिका खारिज कर दी गई थी इसलिए इस मामले में भी ऐसा हो लेकिन जस्टिस क्वाह ने कहा कि पिछला मामला आस्था के त्याग के बारे में था और यह मामला धर्मांतरण से संबंधित है.
उन्होंने अटॉर्नी-जनरल के चैंबर्स (एजीसी) की आपत्ति को भी खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि यह शरिया अदालत का मामला है. मामले की सुनवाई के लिए 26 दिसंबर की तारीख तय की गई है.
क्या था इस्लाम त्याग का मामला?
इसी साल नवंबर की शुरुआत में मलेशिया की एक अदालत ने इस्लाम छोड़ने की एक याचिका खारिज कर दी थी. कुआंटन शहर के हाई कोर्ट ने ओरंग असली आदिवासी समुदाय की एक महिला को दोबारा अपने आदिवासी रीति-रिवाजों के हिसाब से जीने से मना करते हुए आदेश दिया था कि उसे इस्लाम का पालन करना होगा.
महिला का कहना था कि वो आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती है और जब वो महज दो साल की थी तब उसकी मां ने इस्लाम कबूल कर लिया था. महिला ने कहा था कि उसने इस्लाम अपनाने के लिए कलमा भी नहीं पढ़ा इसलिए उसे इस्लाम छोड़ने की अनुमति दी जाए. लेकिन अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि मामला शरिया अदालत का है, उसके अधिकार क्षेत्र का नहीं.