यह कुरुक्षेत्र का भीष्म कुंड है। महाभारत युद्ध के १०वें दिन अर्जुन के वाण से आहत होकर भीष्म पितामह भूमि पर गिरे। बीच रणभूमि से हटाकर उनकी वाणों की शैया को इसी स्थान पर रखा गया था। पितामह इसी स्थान पर ५८ दिनों तक वाणों की शैया पर रहे।
अर्जुन ने जब उन्हें वाणों से बींधा तो उन्हें प्यास लगी। यहीं अर्जुन ने ‘पन्जन्यास्त्र’ नामक वाण मार कर पृथ्वी से गंगा की धारा को प्रकट किया, जिससे पितामह की प्यास बुझी। इसलिए इसे भीष्म कुंड के साथ साथ वाण गंगा भी कहा जाता है।
युद्ध के बाद इसी स्थान पर पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को राजधर्म का ज्ञान दिया था और यहीं उन्होंने विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र भी उन्हें सुनाया था। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण यहां उपस्थित थे और उनका अनुमोदन विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र को मिला, इसलिए यह सबसे अधिक जागृत स्त्रोत्र मंत्र है। इसका पाठ प्रतिदिन सुबह कीजिए अथवा जो सप्ताह में केवल एक दिन करना चाहते हैं वो बुधवार की सुबह या शाम इसका पाठ करें, आपका जीवन बदल जाएगा।
यह स्थान कुरुक्षेत्र के नरकातारी पंचायत में पड़ता है। आधुनिक समय में महंत रामदास जी की कृपा से यह क्षेत्र विकसित हुआ है। कुरुक्षेत्र के गीता प्रकट स्थल अर्थात ज्योतिसर तीर्थ के पास ही यह अवस्थित है।
सभी सनातनियों से अनुरोध है कि हर साल गर्मी की छुट्टियों में अपने बच्चों को रामायण और महाभारत से जुड़े कम से कम एक तीर्थ स्थल का दर्शन अवश्य कराएं और बताएं कि यह तुम्हारा इतिहास है, इसे मत भूलना। यह प्रेरणा ही तुम्हें विजयी दिलाएगी।
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