
बॉलीवुड ने ‘पुष्पा’ को ग़लती से फ्लॉवर समझ लिया था
विपुल रेगे। अल्लू अर्जुन का सूर्य हिन्दी पट्टी में जगमगाता उदित हुआ है। इस सूर्य ने हिन्दी फिल्म उद्योग के सितारों की चमक फ़ीकी कर डाली है। ‘पुष्पा -द राइज़’ के बाद अल्लू हिन्दी दर्शकों के मन में घर कर गए हैं। उनकी शक्तिशाली प्रेजेंस ने हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं को डरा दिया है। जिस ख़ज़ाने से वे माल चुराकर फ़िल्में बनाया करते थे, वह अब नहीं हो सकेगा। नया प्रकरण कार्तिक आर्यन की नई फिल्म का है, जो अल्लू अर्जुन की एक सुपरहिट फिल्म की रीमेक है।
निर्देशक रोहित धवन ने कार्तिक आर्यन और कृति सेनन को मुख्य भूमिकाओं में लेकर एक फिल्म ‘शहज़ादे’ का निर्माण किया है। ये फिल्म अल्लू अर्जुन की सुपरहिट तेलुगु फिल्म ‘अला वैकुंठपुरमलो’ की रीमेक है। शहज़ादे आगामी नवंबर में प्रदर्शित होने जा रही है। समस्या उस समय खड़ी हो गई, जब ‘अला वैकुंठपुरमलो’ का हिन्दी डबिंग वर्जन टीवी पर प्रदर्शित होने जा रहा है।
रोहित धवन को ये चिंता सताने लगी कि यदि हिन्दी डब पहले प्रदर्शित हो गई, तो उनकी फिल्म की आय पर बुरा प्रभाव होगा। मूल फिल्म के हिन्दी डबिंग अधिकार गोल्डमाइंस टेलीफिल्म्स के मनीष शाह ने चार करोड़ में ख़रीदे थे। ऐसा सुनने में आया है कि टीवी पर फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिए रोहित धवन ने मनीष शाह से बात की है और उन्हें आठ करोड़ की बड़ी राशि देने का प्रस्ताव दिया है।
इस प्रकरण से एक तथ्य सामने आया है और वह ये कि बॉलीवुड स्क्रिप्ट के मामले में कंगाल होता जा रहा है। उनके पास ऐसे लेखक ही नहीं है जो कथा को ‘सुपरस्टार’ बना सके। हिन्दी फिल्म उद्योग के पास के.विजयेंद्र प्रसाद जैसे सितारा पटकथा लेखक नहीं है। इस कारण वह कहानियों के मामले में टॉलीवुड पर निर्भर रहता है। अब तो बॉलीवुड कथाएं न खरीदकर सीधे रीमेक के अधिकार खरीद लेता है।
उसके बाद वह फिल्म को शॉट दर शॉट कॉपी कर रिलीज कर देता है। टीवी पर दक्षिण की फिल्मों के हिन्दी डबिंग दिखाए जाने की शुरुआत के बाद से हिन्दी फिल्म उद्योग की पोल खुलने लगी थी। इससे विचलित हुए बिना सन 2008 से बॉलीवुड में अधिकांश फ़िल्में रीमेक बनाई जा रही थी। सन 2021 के अंत में अल्लू अर्जुन हिन्दी सेल्युलाइड पर अवतरित होते हैं और 2008 से जारी इस परंपरा को गहरा आघात देते हैं।
उनकी फिल्म का एक संवाद यहाँ फिट बैठता है। ‘पुष्पा’ के एक दृश्य में वे कहते हैं ‘एक आदमी ने ग़लती से मेरे नाम से मेरे को ‘फ्लावर’ समझ लिया था। हिन्दी फिल्म उद्योग ने भी ऐसा ही कुछ समझ लिया था कि वे दक्षिण से माल चुराते रहेंगे और वह चुप बैठा रहेगा। ‘पुष्पा’ द राइज’ से उन्होंने अपनी गलती सुधार ली। किसी मनीष शाह को दो-चार करोड़ देकर टीवी पर प्रदर्शित कराने की अपेक्षा उन्होंने धमक के साथ बॉलीवुड का द्वार ही तोड़ डाला।
‘पुष्पा’ में नायक लाल चंदन बीच के दलाल को देने की अपेक्षा मूल खरीदार तक पहुँच जाता है। ठीक वैसे ही टॉलीवुड अपना ‘लाल चंदन’ लेकर स्वयं दर्शकों के पास पहुंच गया। हिन्दी फिल्म उद्योग ये समझ चुका है कि टॉलीवुड अब अपना ‘लाल चंदन’ सस्ते में नहीं लुटाएगा। इसलिए ही रोहित धवन को अपनी फिल्म बचाने की कारगुज़ारियां करनी पड़ रही है।
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आने वाले समय में दक्षिण भारत में बनी फिल्में हम मुझे दुबारा पर्दे तक लाने लगी है वरना बोलिवुडिया कचरे की वजह से भारतीय फिल्में देखना लगभग छोड़ चुका था।
बोलीवूड में सिर्फ नंगई, हिंदू धर्म की बुराई, हिंदू लडकियों और महिलाओं का मुस्लिम प्रेम, मुस्लिम ही सच्चा, हिंदू अपर कास्ट सब से बुरा, इसके अलावा क्या दिखाया जाता है ? यही वजह है की हिन्दुओं की नशों मे रक्त के बदले सिकुलरिज़्म बहने लगा है । मैने पिछ्ले 7 सालों मे सिर्फ इरफान खान की 4 चलचित्र देखे । बायकाट करो बोलीवूड का, मैं तो यही कहूंगा ।
समस्या दूसरी है।जिस तरह हॉलीवुड वाले रिसर्च वर्क करते हैं।उस तरह न साउथ वाले करते हैं न मुम्बइया उर्दूवुड।अब भारतीय दर्शकों स्पेशली हिंदी फिल्मों का बड़ा वर्ग हॉलीवुड डबिंग देखता है,डबिंग भी अब उच्च स्तर की आने लगी है।कचरा अवाइड करता है।यह बड़ी तेजी से ग्रामीण अंचलों में भी फैल रहा है।