अर्चना कुमारी। अफ़्रीका से चीतों को लाना और उनमें से नौ को मरने देना न केवल क्रूरता है, बल्कि लापरवाही का भयावह प्रदर्शन है। यह कहना है बीजेपी सांसद बरूण गांधी का जो पिछले कुछ साल से बगावत पर उतरे हुए है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि चीता प्रोजेक्ट को एक साल पूरा हुआ बीते साल अफ्रीका से लाये गए 22 चीतों में से 9 की मौत हो गई।
दरअसल इस साल मार्च से अब तक अफ्रीका से कुनो में लाए गए 20 वयस्क चीतों में से छह की मौत हो गई है। इसके अलावा, 3 शावकों की भी मौत हुई है ।
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में दक्षिण अफ्रीकी चीतों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और इसी को लेकर वरुण गांधी ने सरकार पर सवाल किया। लगातार हो रही चीतों की मौत पर प्रोजेक्ट चीता में शामिल अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने पहले ही नाराजगी जताई थी और कहा था इस प्रोजक्ट से सरकार को सबक लेना चाहिए ।
"अफ़्रीका से चीतों को लाना और उनमें से नौ को मरने देना न केवल क्रूरता है, बल्कि लापरवाही का भयावह प्रदर्शन है"
◆ बीजेपी सांसद @varungandhi80 ने कहा
◆ कल चीता प्रोजेक्ट को एक साल पूरा होगा
◆ बीते साल अफ्रीका से लाये गए 22 चीतों में से 9 की मौत#ProjectCheetah #Cheetah |… https://t.co/oziAeb8skX
— News24 (@news24tvchannel) September 16, 2023
सरकार को सौंपी गई एक स्टेट्स रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में हुई चीताओं की मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे मीडिया में निगेटिव मैसेज गया है । इस बार चीतों की देखभाल के लिए अलग तैयारी की गई वैसे बता जाता है भारत में फिर दक्षिण अफ्रीका से चीते मंगाए जाएंगे और उन्हें मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा जाएगा । राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख एसपी यादव के अनुसार इस अभयारण्य में चीतों को छोड़ने की तैयारी साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी।
‘इस बार भारत वहां से ऐसे चीते मंगवाएगा, जिनमें जाड़े के मौसम में मोटी फर (रोंएदार चमड़े की एक खास परत) नहीं विकसित होती हो। बताया जाता है, अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों में से कुछ मोटी फर विकसित होने के कारण गंभीर संक्रमण की चपेट में आए थे, इसी वजह से चीतों की मौत भी हुई थी। सूत्रों का कहना है अपने जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों को पिछले वर्ष 17 सितंबर को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा था और इसी के साथ देश में प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत हुई थी।
भारत में चीतों की देखभाल में आई मुख्य चुनौती यह थी कि कुछ चीतों ने अफ्रीका की सर्दी की अवधि (जून से सितंबर) के पूर्वानुमान के अनुसार भारत में गर्मी और मानसून के मौसम में अपने शरीर पर मोटी फर विकसित कर ली थी।
इसकी उम्मीद अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी नहीं थी।’मोटी फर, अधिक उमस और तेज तापमान, इन सबके कारण चीतों को खारिश होती है और वे पेड़ों के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन रगड़ते हैं।इससे पशुओं की गर्दनों की खाल फट जाती है जिस पर मक्खियां बैठती है और अंडे देती हैं।इससे पशुओं में विषाणु का संक्रमण होने के साथ सेप्टिसीमिया (सड़न) की समस्या होती है और पशुओं की मौत हो जाती है। कहा जाता है कि सरकार चीतो को तो मंगा लिया लेकिन उनके रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया जिसके चलते इन चितो की मौत हो गई थी।
पर्यावरण मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक (वन) एस पी यादव ने दिए एक साक्षात्कार में कहा कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ के दूसरे वर्ष में पूरा ध्यान इन पशुओं के प्रजनन पर दिया जाएगा।