चीनी ड्रैगन ने पहले ‘चीनी वायरस’ फैलाकर सारी दुनिया को तबाह दिया, फिर भारत की जमीन पर घुसपैठ का प्रयास किया और अब भारतीय मीडिया पर कब्जे की शुरुआत कर चुका है।
अपने पाले पोसे मुखौटों को आगे बढाकर भारतीय मीडिया के जरिये पूरे समाज में नफरत का जहर फ़ैलाने की तैयारी कर चुका है। भारत के सम्पादकों को तिलक, गांधी के बजाय माओ, जिन्ना के पद चिन्हों पर चलाने के लिए चीन और पाकिस्तान की लॉबी ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया, ब्रॉडकास्टर्स संगठन और बड़ी मीडिया कंपनियों पर कब्ज़ा करना आरंभ कर दिया है।
ड्रैगन का पहला पंजा एडिटर्स गिल्ड पर पड़ चुका है। चीन हमेशा पाकिस्तान या खाड़ी के रास्ते भारत पर हमले का षड़यंत्र रचता रहा है। तभी तो पाकिस्तान परस्त तथा कथित पत्रकारों ने एडिटर्स गिल्ड के चुनाव में अपने गुर्गों को बैठाने के लिए कई महीने गुपचुप तैयारियां की और गिल्ड के चुनाव में देश भर से ही नहीं दुबई, क़तर, चीन, अमेरिका तक से इंटरनेट के जरिये वोट डलवा दिए।
पाक-चीन समर्थक कम्युनिस्ट – कांग्रेसी दलों ने एडिटर्स गिल्ड के चुनाव में दिन रात लगाकर तीन बार भारतीय चुनावों में जनता द्वारा दुत्कारी जा चुकी सीमा मुस्तफा और विदेशी दूतावासों से कमाई करने वाले एक अनजान सी पत्रिका के फर्जी संपादक संजय कपूर को गिल्ड का अध्यक्ष और महासचिव बना दिया।
जिस संस्था में कभी बड़े संपादकों में शामिल निहाल सिंह, निखिल चक्रवर्ती, कुलदीप नैयर, इन्दर मल्होत्रा, बी.जी वर्गीज जैसे अध्यक्ष होते थे, वहां कभी किसी अखबार में असली संपादक की कुर्सी पर भी नहीं बैठ पाने वालों का कब्ज़ा हो गया है।
उन्होंने पिछले हफ़्तों में कांग्रेस सरकार में मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे घोर अवसरवादी दलाल के जरिये शराब, विषकन्यों और पैसों के बल पर रिपोर्टरनुमा ब्यूरो चीफ लेवल के सदस्यों को फंसाया ताकि वे आँख मूंदकर गिल्ड को बर्बाद कर सकें।
वैसे ड्रैगन के पुराने आजमाए नकाबपोश इस बार बहुत जल्बाजी में भी थे। गिल्ड के चुनाव पाकिस्तान के पसंदीदा दिन शुक्रवार को करवाए गए। क्रिकेट में भी उन्हें शुक्रवार पर ज्यादा भरोसा रहता है। सो पहले दस मिनट में पहले वोट देने वाले सर्पीले संपादक वही थे, जो मानव अधिकार या मुस्लिम, ईसाई के अधिकारों के नाम पर एन जी ओ चलाकर करोड़ों रुपया बंटोरते रहे हैं या विदेश यात्राओं के दौरान धन, ड्रग्स, प्रतिबधित पोर्नों फिल्मों की हजारों सीडी तस्करी करके लाते रहे हैं।
ऐसे एक हिंदी के फर्जी संपादक को कुछ वर्ष पहले कस्टम ने इन फिल्मों के साथ पकड़ा था, लेकिन मंत्री संतरी से दबाव डलवाकर वह गिरफ्तारी से बच गया था।
दिल्ली ही नहीं देश के मीडिया विश्वविद्यालयों, स्कूलों के जरिये अपनी कलाबाजियों से युवा पत्रकारों को भटकाव के नक्सली रास्ते पर ले जाने वाले सफल हो गये हैं। असल में पिछले दो तीन वर्षों के दौरान मानव अधिकारों या मुस्लिम परस्ती के नाम पर अवैध कमाई, धंधा और आंदोलन करने वालों पर सी बी आई, ईडी के छापे पड़ने से कई कथित पत्रकार बेनकाब हो रहे थे, इसलिए उन्होंने इस बार मीडिया पर पूरा कब्ज़ा करने के इंतजाम किये हैं।
इस षड़यंत्र में गिल्ड के ही कुछ पुराने चर्चित टी वी न्यूज़ चैनल के अरबपति कथित संपादक कम एंकर भी शामिल हो चुके हैं। दुनिया समझती है कि ये एंकर खुद अपने दिमाग से बोल रहे हैं, जबकि टीवी की दुनिया को समझने जानते हैं कि उनके कान में लगे ईयर फ़ोन में पीछे से जो बोला बताया जाता है , वही बोलते हैं।
आजकल वे अंदर स्टूडियो के अलावा दूसरे कान से या सामने रखे आई पेड / मोबाइल पर आ रही भड़काऊ बातें उगलते रहते हैं | उनका कष्ट यह है कि वर्तमान केंद्र या राज्य सरकारें उन्हें दाना क्या घास भी नहीं डाल रही, उलटे उनकी बेइंतहां जमीन जायदाद , बैंक खातों का हिसाब मांग रही है। कुछ पुराने पालतू अफसर अपने कांग्रेसी आकाओं के इशारों पर इनकी सहायता अब भी कर रहे हैं।
गिल्ड और अन्य मीडिया संगठनों के प्रतिनिधित्व के नाम पर अब ये चीन पाकिस्तान के दलाल प्रेस कौंसिल में घुसेंगे, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय की पत्रकार मान्यता देने वाली समिति में और इंटरनेशनल संगठनों में घुसेंगे, ताकि भारतीय मीडिया में अधिकाधिक भारत विरोधी लोगों का प्रभुत्व हो जाए।
अखबार, टी वी न्यूज़ चैनल, वेब साइट, यू ट्यूब चैनल के जरिये जनता में जहर फ़ैलाने से रोकने के लिए अब तक सूचना प्रसारण मंत्रालय ने कोई तरीका नहीं निकला और न ही तैयारी की है। मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को माफिया के एजेंट मराठी पत्रकार भ्रमित कर लेते हैं। कानून मंत्रालय में केवल फाइलें घूमती रहती हैं। फिर अफसरशाही में तो कई कांग्रेसी एजेंट और बेईमान लोग अब भी बैठे हैं। वे कभी माफिया के डर और कभी लालच में भ्रष्ट देश विरोधी पत्रकारों को इस आधार पर जेल भेजने से रोकते हैं कि इससे अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला मन जायेगा। तो क्या ये अधिकार भारत को जहर के कुँए में धकेलने के लिए मिले हैं?
नोट: लेखक ने अपना नाम गुमनाम रखने का आग्रह किया है।