ताइवान और अमरीका की बढ्ती नज़दीकियां चीन को फूटी आंख नहीं सुहा रही हैं. सुरक्षा के मसले पर अमरीका और ताइवान के अधिकारियों के मध्य चल रही वार्ता के बीच चीनी जेट विमानों ने एक बार फिर ताइवान की सीमा रेखा को पार किया है. चीन के 18 जेट विमानों ने ताइवान स्ट्रेट की मध्य रेखा को लांघा है.
ताइवान के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय की रक्षा मिसाइल प्रणाली ने ट्वीट द्वारा बताया है कि 18 सितम्बर को दो एच-6 बमवर्षक, आठ जे-16 जेट विमान, चार जे-10 युद्धक विमान और चार जे-11 युद्धक विमानों ने चीन और ताइवान से लगने वाली सीमा रेखा को लांघा है.
शुक्रवार को अमरीकी विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी कीथ क्रैच ने ताइवान के आर्थिक मामलों के मंत्री और उप प्रमुख के साथ चर्चा की. साथ ही उन्होने ताइवान के उद्योग जगत के नेताओं के साथ भी मुलाकात की और राष्ट्रपति साई इंग वेन के साथ भोजन किया.
अमरीका और ताईवान के वरिष्ठ अधिकारियो के बीच हो रही इस प्रकार की बैठक का विरोध करने के लिये ही चीन ने उसके क्षेत्र में अपने जेट विमान उड़ाये. कोरोना वायरस काल में ताइवान पूरे विश्व समुदाय के सामने एक हीरो के रूप में उभरा है. उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन का हिस्सा न होने के बावजूद भी जिस प्रकार से कोरोना वायरस को ताइवान से दूर रखा और केसेज़ को बढ्ने नहीं दिया, उससे पूरा विश्व इस छोटे से देश की प्रशासन व्यवस्था, स्वास्थ्य नीति और नागरिक जागरूकता का कायल हो गया है.
इसी के चलते ताइवान को अमरीका का बहुत अधिक सहयोग मिल रहा है. ताइवान को विश्व स्वास्थ्य संगठ्न का हिस्सा बनाने के लिये अमरीका ज़बरदस्त लाबिंग भी कर रहा है. बस इसी सब से चीन बुरी तरह बौखलाया हुआ है. उसे डर है कि इस सब से कहीं ताइवान को अंतराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से औपचारिक मान्यता न प्राप्त हो जाये . क्योंकि यदि ऐसा हो गया तो ताइवन सभी महत्व्पूर्ण अंतराष्ट्रीय इकाइयों का सदस्य बन जायेगा, उसे एक अलग देश के रूप में मान्यता मिल जायेगी और फिर चीन उस पर अपना अधिकार नहीं जता पायेगा.
चीन ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और इस स्वशासित द्वीप और किसी भी दूसरे देश के बीच हो रही किसी भी औपचारिक वार्ता का विरोध करता है. अमरीका के कीथ दशकों बाद इस द्वीप का दौरा करने वाले अमरीकी विदेश मंत्रालय के पहले अधिकारी हैं.
चीन ने अपनी आर्थिक शक्ति और भू राजनीतिक शक्ति का दुरूपयोग कर विश्व के सभी देशों को ताइवान से दूरी बनाये रखने के लिये बाधित किया है. और सभी ने चीन की बात मानी क्योंकि वे चीन पर बहुत सारे चीज़ों के लिये निर्भर रहे हैं. और कोई भी विश्व की एक शक्तिशाली महाशक्ति से दुश्मनी नहीं लेना चाहता.
लेकिन अब कोरोना वायरस के बाद समीकरण बिल्कुल बदल गये हैं. विश्व के एक अति शक्तिशाली देश से चीन एक ऐसे देश में परिवर्तित हो गया है जिसकी आतातायी, क्रूर और स्वार्थ्पूर्ण नीतियों से पूरा विश्व तंग आ चुका है और इसीलिये उसे सबक सिखाने के लिये एकजुट हो उठा है. चीन को टेक्नांलजी के क्षेत्र में, बिज़नेस के क्षेत्र में, आर्थिक क्षेत्र में, हर तरफ बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है.
हाँग, कांग, तिब्बत और ताइवान के मुद्दों पर भी पूरा विश्व समुदाय उसके खिलाफ खुलकर बोल रहा है. और अमरीका के साथ जो चीन की तनातनी चल्र रही है, उसकी भारी कीमत तो चीन को चुकानी पड़ ही रही है.
इस महीने की शुरुआत में ही ताइवान ने चीन को चेतावनी दी थी कि वह सीमा का अतिक्रमण न करे. उसने सख्ती से कहा था कि वह शांति चाहता है लेकिन वह चीन के किसी भी हमले का जवाब देने में सक्षम है और अपने नागरिकों का बचाव करेगा.