दिल्ली दंगों के दौरान खुफिया कर्मी अंकित शर्मा हत्या मामले पर सुनवाई करते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट ने कहा कि उत्तर पूर्व दिल्ली में हुए दंगों के दौरान आम आदमी पार्टी के निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन के उकसावे पर मुस्लिम समाज के लोग हिंसक हो गए और उन्होंने उग्र होकर दूसरे समुदाय पर पथराव शुरू कर दिया था। कोर्ट की यह टिप्पणी फरवरी महीने में हुए दंगे में अंकित शर्मा की निर्मम हत्या के मामले में आरोपी ताहिर हुसैन के खिलाफ दायर चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए आई
दरअसल दिल्ली पुलिस ने अंकित शर्मा हत्या मामले में 50 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया है। इसमें ताहिर हुसैन समेत दस लोगों को आरोपी बनाया गया है। इस मामले के अन्य आरोपियों में अनस, फिरोज, जावेद, गुलफाम, शोएब आलम, सलमान, नजीम, कासिम और समीर खान शामिल हैं।
कड़कड़डूमा कोर्ट के महानगर दंडाधिकारी पुरुषोत्तम पाठक ने कहा कि दंगे सुनियोजित तरीके से हुए और इसके लिए पूरी तैयारी की गई थी। ताहिर हुसैन और अन्य आरोपियों द्वारा कथित तौर पर इसे बढ़ावा दिया गया जबकि ताहिर हुसैन ने अपनी इमारत की छत पर हिंसक भीड़ को जाने की सुविधा और अन्य सहायता प्रदान की ताकि बड़े पैमाने पर दंगे हो सकें। यह साफ है कि दंगा दूसरे समुदाय (हिंदू)को जानमाल का नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया।
अदालत ने कहा ताहिर हुसैन अपने घर से और 24 तथा 25 फरवरी को चांद बाग पुलिया के पास मस्जिद से भी भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। हुसैन ने कथित रूप से अपने समुदाय को उकसाया और दो समुदायों के बीच धर्म के आधार पर कटुता को बढ़ावा दिया कि हिंदू समुदाय के लोगों ने मुस्लिम लोगों को मार डाला है। इस पर भीड़ और ज्यादा हिंसक हो गई।
कोर्ट के समक्ष जांच अधिकारी ने कहा कि पार्षद ताहिर हुसैन और अन्य पर राजद्रोह की धाराओं में मुकदमा चलाने की अनुमति संबंधित आदेश सक्षम अधिकारी से अभी नहीं मिली है।
अदालत ने इस पर कहा कि मंजूरी प्राप्त करने में देरी से वह मकसद पूरा नहीं होगा, जिसके लिए विशेष अदालतें बनाई गई हैं। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी के अनुसार मौजूदा मामले में 22 जून को ही सक्षम प्राधिकार के पास एक पत्र भेजा गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि मंजूरी मिलने में कितना समय लगेगा? ऐसे में अदालत अन्य सभी अपराधों का संज्ञान लेना उचित समझती है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस को अभी तक मामले में आरोपी ताहिर हुसैन और दुसरे आरोपियों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए संबंधित विभागों यानी दिल्ली सरकार से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल पाई है जबकि इसके लिए मंजूरी हासिल करने के लिए पत्र भेज दिया गया था! मंजूरी कब तक मिल पाएगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि दिल्ली सरकार ने इस पर अपनी मंजूरी अब तक प्रदान नहीं की है।
कोर्ट ने माना कि पुलिस की जांच में सामने आए सबूत चार्जशीट पर संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त हैं और इस ओर इशारा करते हैं कि दंगों के लिए पहले साजिश रची गई और फिर सुनियोजित तरीके से दंगों को अंजाम दिया गया। इतना ही नहीं उग्र भीड़ को ताहिर हुसैन और दूसरे आरोपियों ने और उकसाया। कोर्ट ने मामले में आगे की सुनवाई के लिए ताहिर हुसैन समेत सभी आरोपियों को 28 अगस्त को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किए जाने का आदेश दिया।
गौरतलब हो कि खुफिया कर्मचारी अंकित शर्मा का शव पुलिस को एक नाले से मिला था और उनके शरीर पर धारदार हथियारों 50 से ज्यादा घाव थे। इस मामले में अंकित के परिजनों की तहरीर पर दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। बाद में कई दिनों तक फरार रहने के बाद दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में सरेंडर की कोशिश करते हुए पुलिस ने ताहिर हुसैन को गिरफ्तार किया था।
ऐसा नहीं है कि कोर्ट ने ताहिर हुसैन के खिलाफ पहली बार इस तरह की टिप्पणी की है। इससे पहले भी कोर्ट ने दिल्ली दंगे में आम आदमी पार्टी (AAP) के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन की भूमिका पर बहुत सख्त टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि ताहिर ने दंगाइयों को कथित तौर पर ‘मानव हथियार’ के रूप में इस्तेमाल किया और ताहिर हुसैन के एक इशारे पर दंगाई किसी की भी जान लेने पर उतारू थे।
राजद्रोह के मामलों मे सरकार की मंजूरी के जो प्रावधान है उसमे सुधार करके एक समय मर्यादा निश्चित कर देनी चाहिए। जैसे कि 60 दिनों के अंदर मजूरी दे या मंजूरी देनेसे इनकार करदे। यदि सरकार 60 दिन होजाने पर भी अनिर्णीत रहती है तो कोर्ट को मंजूरी मिल गयी है ऐसा मान कर ट्रायल शुरू कर देने की सत्ता होनी चाहिए।
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