अर्चना कुमारी महाराष्ट्र सरकार ने पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) से संबंध रखने के मामले में बरी करने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए मंगलवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने साईबाबा को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है।
उच्च न्यायालय ने साईबाबा (54) को सुनाई गई उम्र कैद की सजा भी रद्द कर दी और मामले में पांच अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत माओवादी-लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को बरी करने के फैसले के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग करने वाली महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया ।
पूर्व प्रोफेसर शारीरिक अशक्तता के कारण चलने-फिरने के लिए व्हील चेयर पर निर्भर साईबाबा, मामले में 2014 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं।
न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया। पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा।
अदालत कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई कानूनी साक्ष्य या आपत्तिजनक सामग्री पेश करने में विफल रहा है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत का फैसला कानून के स्तर पर खरा नहीं उतरता है, इसलिए हम उक्त निर्णय को रद्द करते हैं। सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।’
’ इसने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी ‘‘अमान्य’’ करार दिया। हालांकि, बाद में अभियोजन पक्ष ने मौखिक रूप से अदालत से अपने आदेश पर छह सप्ताह के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि वह उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर सके।
इस पर पीठ ने रोक लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को एक आवेदन दायर करने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने 14 अक्टूबर, 2022 को इस बात का संज्ञान लेते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही ‘‘अमान्य’’ थी।
महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।
शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले 54 वर्षीय साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद हैं।
सनद रहे वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र के गढचिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था। सत्र अदालत ने उन्हें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।