आईएसडी नेटवर्क। विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स का प्रभाव विश्व समुदाय पर व्यापक रुप से पड़ता हुआ दिख रहा है। अमेरिका के वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल कमीशन फॉर ह्यूमन राइट्स एन्ड रिलिजियस फ्रीडम नामक संगठन ने कश्मीर में हुए पंडितों के नरसंहार को मान्यता देने की घोषणा की है। गत रविवार को इस मामले पर सुनवाई के बाद ICHRRF ने सार्वजानिक रुप से इसकी घोषणा की।
रविवार को ICHRRF ने अपने वाशिंगटन स्थित कार्यालय पर कश्मीरी हिन्दू नरसंहार के विषय में एक विशेष जन-सुनवाई आमंत्रित की थी। सुनवाई में बारह कश्मीरी पंडित शामिल हुए और विस्तार से अपनी व्यथा बताई। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने पीड़ितों और हिंसा में बचे लोगों की गवाही के बाद अपना बयान दिया है।
आयोग ने कहा कि 1989-90 के समय हज़ारों कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर भागना पड़ा। आयोग ने कहा कि वे तीस वर्ष बाद भी अपने घर नहीं लौट सके हैं। आयोग के अनुसार कश्मीरी पंडितों पर हुआ अत्याचार जातीय और सांस्कृतिक नरसंहार की तरह था, ये मानवता के विरुद्ध एक अपराध था। आयोग की ओर से जारी की गई प्रेस रिलीज में कहा गया है कि ‘हजारों घर और मंदिर नष्ट कर दिए गए।
चार लाख से अधिक हिन्दू पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को इस्लामिक आतंकियों ने बंदूक की नोंक पर निर्वासित होने के लिए विवश किया। उनके घरों से उन्हें बेदखल कर दिया गया। महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। अब, यह संस्कृति 32 वर्षों के दौरान आत्म-समर्थन के बाद विलुप्त होने के कगार पर है। जिन लोगों ने अपनी मातृभूमि में रहना चुना, उन्होंने अपने पड़ोसियों की भलाई में विश्वास करते हुए ऐसा किया।
पीड़ितों और बचे लोगों ने आशा, शांति, अहिंसा और सुरक्षा की उम्मीद जताई। उन्हें कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा बलात्कार, प्रताड़ना और हत्या का सामना करना पड़ा। क्षत-विक्षत लाशों को सांस्कृतिक तरीके से अंतिम संस्कार के परंपराओं से वंचित कर दिया गया और बाकी लोगों के मन में भय पैदा करने का काम किया।’ सुनवाई में भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार से कश्मीरी हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचारों की पहचान करने और उन्हें मान्यता देने का आग्रह भी किया गया है।